प्रशांत कटियार
उरई। वरिष्ठ पत्रकार और नेशनल जनमत के संपादक नीरज भाई पटेल (Neeraj Bhai Patel) ने अपने यशस्वी दिवंगत पिता स्वर्गीय राजेंद्र निरंजन को श्रद्धांजलि देने के लिए समाज में एक अनूठा और प्रेरणादायक कदम उठाया। उन्होंने परंपरागत गंगा में अस्थि विसर्जन की बजाय उनके अवशेषों को मिट्टी में समाधि दी और उस स्थान पर एक पौधा रोपित किया। उन्होंने नदियों की स्वच्छता पर जोर दिया, इस प्रयास ने समाज में एक नई जागरूकता पैदा की है और कुरीतियों से मुक्ति का संदेश दिया है।
भारतीय समाज में अस्थि विसर्जन और मृत्यु भोज जैसी परंपराएं सदियों से प्रचलित हैं। इन परंपराओं का न केवल पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी गरीब परिवारों के लिए बड़ा बोझ बनती हैं। नीरज भाई ने इन परंपराओं को चुनौती देते हुए पर्यावरण और सामाजिक उत्थान का मार्ग अपनाया।
उनके पिता की अस्थियों को मिट्टी में समाधि देकर पौधारोपण करने का यह कदम एक जीवन चक्र का प्रतीक बना। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया, बल्कि समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि परंपराएं समय के साथ बदली जा सकती हैं।
उरई में आयोजित आदरांजलि सभा में नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद और पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य सहित प्रदेश के कई गणमान्य लोग उपस्थित हुए। इस अवसर पर देशभर से 500 से अधिक गणमान्य लोग शामिल हुए।
सभा में आए लोगों ने इस प्रयास की सराहना की और इसे समाज सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने मृत्यु भोज जैसी परंपराओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सभा में 200 से अधिक युवाओं ने कुरीतियों के खिलाफ काम करने और समाज को सुधारने का संकल्प लिया। युवाओं ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी परंपराएं, जो आर्थिक और सामाजिक बोझ बनती हैं, उन्हें समाप्त करना चाहिए।
पौधारोपण के माध्यम से नीरज भाई ने यह संदेश दिया कि मृत्यु भी एक नई शुरुआत हो सकती है। उन्होंने कहा, “हमारी नदियां पवित्र हैं, उन्हें गंदा करने के बजाय हमें अपनी परंपराओं में बदलाव लाना चाहिए। पौधा रोपण जीवन का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।”
मृत्यु भोज का विरोध सभा का एक प्रमुख विषय रहा। वक्ताओं ने इसे एक कुरीति बताया, जो समाज के गरीब वर्ग पर भारी आर्थिक बोझ डालती है। आंकड़ों के अनुसार:
70% गरीब परिवार मृत्यु भोज के कारण आर्थिक संकट का सामना करते हैं।
50% परिवार कर्ज लेकर इस परंपरा को निभाते हैं।
इससे स्पष्ट है कि इस परंपरा का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नीरज भाई पटेल की इस पहल ने समाज में जागरूकता का संचार किया है। प्रदेशभर में इस कदम की सराहना की जा रही है। उनकी यह पहल दिखाती है कि एक व्यक्ति का प्रयास समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।
यह पहल केवल एक शुरुआत है। अगर समाज नीरज भाई के विचारों को अपनाता है, तो न केवल पर्यावरण का संरक्षण होगा, बल्कि समाज में आर्थिक और मानसिक बोझ भी कम होगा। यह उदाहरण युवाओं और अन्य समाजसेवियों को प्रेरित करता है कि वे भी बदलाव के लिए कदम उठाएं।
नीरज भाई पटेल का यह कदम न केवल परंपराओं को नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है, बल्कि समाज सुधार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है। कुरीतियों को खत्म करने और समाज को एक नई दिशा देने के लिए इस प्रकार के प्रयासों की आवश्यकता है।