यूथ इंडिया संवाददाता
फर्रुखाबाद। जिले में शिक्षा विभाग से जुड़े एक गंभीर मामले में जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) पटल प्रभारी और डीआईओएस नरेंद्र पाल सिंह पर गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि उन्होंने मजिस्ट्रियल कमेटी की जांच को झुठलाते हुए शिक्षा निदेशक महेंद्र देव और कानपुर के ज्वाइंट डायरेक्टर को गलत जानकारी दी। इस भ्रामक जानकारी के आधार पर उन्होंने हाई कोर्ट को भी गुमराह किया।
मजिस्ट्रियल कमेटी द्वारा की गई जांच में कई अनियमितताएं सामने आई थीं, जिनका विवरण डीआईओएस पटल प्रभारी और नरेंद्र पाल सिंह ने जानबूझकर छिपा दिया। इस मामले में आरोप यह भी है कि उन्होंने अपनी मनमानी करते हुए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया, जिससे निदेशक और ज्वाइंट डायरेक्टर भी भ्रमित हो गए। इसके परिणामस्वरूप हाई कोर्ट को गलत दिशा में ले जाया गया और मामले की सच्चाई को दबाने का प्रयास किया गया।
इस घटना ने जिले की शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक अधिकारियों की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक तरफ मजिस्ट्रियल कमेटी ने जांच में अनियमितताओं की पुष्टि की थी, वहीं दूसरी तरफ डीआईओएस पटल प्रभारी और डीआईओएस नरेंद्र पाल सिंह ने उच्च अधिकारियों को गुमराह कर जांच के नतीजों को गलत साबित करने की कोशिश की। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार की कितनी आवश्यकता है।
हाई कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में दी गई भ्रामक जानकारी के चलते अब इस मामले पर पुन: जांच की मांग उठ रही है। शिक्षा निदेशक महेंद्र देव और ज्वाइंट डायरेक्टर कानपुर, जो इस मामले में खुद भी भ्रमित हो चुके थे, अब इस पूरे प्रकरण की सच्चाई जानने के लिए नए सिरे से कार्रवाई कर सकते हैं।
यह मामला जिले की शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता को उजागर करता है। इन अधिकारियों की लापरवाही के कारण, शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है, जो छात्रों के भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक है। इस तरह की घटनाएं न केवल शिक्षा व्यवस्था की साख को गिराती हैं, बल्कि आम जनता का विश्वास भी तोड़ती हैं।