विजय गर्ग
रोजमर्रा की जीवनशैली में जिंदगी की जरूरतों से उलझते – सुलझते हम कई बार मुख्यधारा की स्थापनाओं या धारणाओं से इस कदर दब जाते हैं कि जो दुनिया सोच-समझ या कर रही होती है, उसी के सुर में सुर मिला कर वैसा ही करने लगते हैं। जीवन की गतिविधियों के इस पहलू की व्यापकता तो काफी बड़े दायरे में फैली हुई है, लेकिन इस बार हम अपने जीवन में महत्त्वकांक्षाओं और सपनों के यथार्थ से टकराव के एक नतीजे पर गौर करते हैं।
आकलन का आधार
मसलन, अगर हमारे घर में स्कूल जाने वाले बच्चे हैं तो उनकी मुख्य उपलब्धि हमारे लिए क्या होती है ? पढ़ाई- लिखाई की गुणवत्ता को हमारा बच्चा अपने भीतर किस स्तर पर समाहित करता है, इस पर गौर करने के बजाय उसके बारे में हमारे आकलन का आधार मुख्य रूप से यह होता है कि परीक्षा में उसने कितने अंक प्राप्त किए। अगर उसने ऊंचे अंक हासिल किए, तब हम खुश हो जाते हैं, बच्चे को पुरस्कार स्वरूप तोहफे देते हैं, उसके बारे में अपने नाते-रिश्ते में सबको खुश होकर बताते हैं । लेकिन ठीक इसके विपरीत जब किन्हीं वजहों से उसे अपेक्षा से कम अंक आता है, तो हम न केवल खुद शर्म और अफसोस से भर जाते हैं, बल्कि अपने बच्चे को भी अलग-अलग तरह से अपमानित और प्रताड़ित करने लगते हैं। सवाल है कि क्या ऐसा करने से हम अपने बच्चे के व्यक्तित्व और भविष्य को बेहतर कर पाते हैं? इसका स्पष्ट जवाब है- नहीं बल्कि ऐसा करके हम बच्चे के व्यक्तित्व को और ज्यादा नुकसान ही पहुंचाते हैं।
अगर किसी बच्चे ने अपनी मेहनत से साठ फीसद अंक हासिल किए हैं, उस पर डांट-फटकार या अपमानित किए जाने, अपने माता- पिता के शर्म करने का नतीजा यह होता है कि बच्चा और ज्यादा हीन भावना से भर जाता है। ज्यादा अंक लाने पर जोर देने या ज्यादा अंक लाने वाले को ही बेहतर मानने की बात ऐसे बच्चों के आत्मविश्वास को कमजोर कर देती है और इसके बाद वह अगली परीक्षा में और भी खराब परिणाम ला सकता है। योग्यता या गुणवता हकीकत यह है कि अव्वल तो ज्यादा अंक हासिल करना किसी की स्कूल या फिर प्रतियोगिता परीक्षा में अंकों के आधार पर मापी गई योग्यता या गुणवत्ता आधारित शिक्षा से लैस होने का सूचक नहीं हो सकती। कई बार कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे भी ज्यादा या नब्बे फीसद या इसके करीब अंक लाने वाले के मुकाबले ज्यादा बुद्धिमान और कुशल होते हैं। उनका व्यक्तित्व ज्यादा अंक लाने वालों के मुकाबले ज्यादा सशक्त हो सकता है। वह विचार के स्तर पर बेहतर हो सकता है।
बराबर सम्मान
इसके अलावा, अगर अभिभावकों को इस बात की फिक्र है कि उनका बच्चा ज्यादा अंक हासिल करे तो यह जरूरी है कि कम अंक लाने पर भी बच्चों को बराबर स्तर पर सम्मान करें, उनकी क्षमता को खुश होकर स्वीकार करें और उसे इतने पर भी प्रोत्साहित करें। एक छोटा प्रोत्साहन बच्चे को बेहतर से बेहतर करने के लिए प्रेरित कर सकता है, नई ऊर्जा से भर दे सकता है। इस तरह का प्रोत्साहन और स्वीकार कई बार बच्चों के भीतर किसी कोने में छिपी क्षमता और आत्मविश्वास को बाहर ला दे सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब