शरद कटियार
फर्रुखाबाद जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जनपद में यदि श्रमिकों के शोषण और कानून की धज्जियां उड़ने की घटनाएं सामने आएं, तो यह न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि एक गहरी प्रशासनिक और सामाजिक विफलता का संकेत भी है। हाल ही में जिले में संचालित हो रहे ईंट भट्टों को लेकर जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं।
जिले में लगभग 150 से अधिक ईंट भट्टे सक्रिय हैं, जिनमें से अधिकांश बिना वैध लेबर लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं। इससे भी अधिक शर्मनाक तथ्य यह है कि इन भट्टों पर प्रतिवर्ष 800 से 1000 मजदूरों को बाहरी जनपदों व प्रदेशों से लाकर अवैध रूप से कार्य कराया जा रहा है।
यह न केवल श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन है, बल्कि मानवीय गरिमा के विरुद्ध भी एक घिनौना अपराध है। इन मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से भी वंचित किया जा रहा है, उन्हें कोई स्वास्थ्य सुविधा, कोई बीमा कवर, और न ही कोई सुरक्षा गारंटी उपलब्ध कराई जा रही है।
भारत का संविधान और श्रम कानून श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। चाहे वह श्रम कानून 1970 (Contract Labour Regulation and Abolition Act) हो या श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश, सभी स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि किसी भी प्रकार का श्रम कार्य करवाने के लिए मालिक को वैध लाइसेंस लेना अनिवार्य है।
‘Inter-State Migrant Workmen (Regulation of Employment and Conditions of Service) Act, 1979’ के तहत यदि किसी मजदूर को एक राज्य से दूसरे राज्य में कार्य के लिए लाया जाता है, तो उसका पंजीकरण और सुविधाएं सुनिश्चित करना अनिवार्य है। लेकिन फर्रुखाबाद के इन भट्टों पर ऐसा कुछ भी पालन नहीं किया जा रहा।
नगर क्षेत्र की घनी बस्तियों के बीच संचालित ये अवैध भट्टे न केवल श्रमिकों के लिए बल्कि स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन चुके हैं।
वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ऐसे उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लेना अनिवार्य है, साथ ही विशेष प्रदूषण नियंत्रण तकनीक अपनाना भी।
लेकिन इन भट्टों पर न तो धुएं के लिए फिल्टर लगाए गए हैं और न ही राख के प्रबंधन की कोई व्यवस्था है। नतीजा यह है कि आसपास की आबादी दमा, फेफड़ों के संक्रमण, त्वचा रोग जैसे गंभीर बीमारियों से जूझ रही है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन अवैध भट्टों में से कई संचालक राजनीतिक संरक्षण, विशेषकर भाजपा से जुड़े कुछ नेताओं के प्रभाव का हवाला देते हुए बेखौफ अवैध कारोबार चला रहे हैं।
भाजपा जैसी पार्टी, जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देती है, उसके नाम का दुरुपयोग करना न केवल निंदनीय है, बल्कि पार्टी की साख को भी नुकसान पहुंचाता है। यदि शीर्ष नेतृत्व इस पर गंभीरता नहीं दिखाता तो यह सीधे-सीधे उनके मूल सिद्धांतों को चुनौती देगा।
शासन स्तर पर जिलाधिकारी ने इस पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट मांगी है। यह स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या केवल रिपोर्ट तैयार करना और कुछ औपचारिक कार्यवाही करना पर्याप्त होगा?
क्या ऐसे संचालकों पर कठोर कार्रवाई होगी जो सालों से न केवल गरीब मजदूरों का खून चूस रहे हैं, बल्कि कानून का भी मजाक बना रहे हैं? या फिर हमेशा की तरह मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
सभी भट्टों का भौतिक सत्यापन कराए।
दोषी संचालकों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, श्रम कानून, और पर्यावरण कानूनों के तहत सख्त कार्रवाई कर उन्हें जेल भेजे।
प्रभावित मजदूरों को मुआवजा और उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए विशेष स्वास्थ्य शिविर लगाए।
भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों की स्थिति नारकीय है। उन्हें धूप, गर्मी, धूल और जहरीले धुएं के बीच दिन-रात बिना किसी सुरक्षात्मक उपायों के काम करना पड़ता है।
भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत मजदूरों को निर्धारित वेतन मिलना चाहिए, लेकिन इन अवैध भट्टों में यह भी सपना मात्र बनकर रह गया है।
श्रमिकों को मजदूरी के साथ-साथ स्वास्थ्य बीमा, कार्यस्थल पर दुर्घटना बीमा, आवासीय सुविधा, और उनके बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था भी मिलनी चाहिए, जो कि एक आदर्श लोकतंत्र की बुनियादी अपेक्षा है।
इस गंभीर मामले में शासन-प्रशासन से जनमानस मांग करता है कि अविलंब सख्त कार्रवाई कर सभी अवैध भट्टों को सील किया जाए। मजदूरों को उनके अधिकार दिलाए जाएं और भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों इसके लिए एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था लागू की जाए।
हम समाज से भी अपील करते हैं कि वे जागरूक बनें, इस तरह के अवैध और अमानवीय कृत्यों का बहिष्कार करें और जहां भी इस प्रकार का शोषण देखें, उसकी सूचना संबंधित अधिकारियों या मीडिया संस्थानों तक पहुंचाएं। देश तभी सच्चे अर्थों में आगे बढ़ेगा जब हम अपने सबसे कमजोर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करेंगे। अगर कानून का राज बनाना है, तो सबसे पहले गरीबों के हक की रक्षा करनी होगी।