उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करने और अपराधों पर नकेल कसने के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई है। इसके तहत IGRS (इंटीग्रेटेड ग्रिवांस रीड्रेसल सिस्टम) को एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में स्थापित किया गया है। इस पोर्टल का उद्देश्य जनता की शिकायतों का सही और समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित करना है। लेकिन हाल के आंकड़ों और घटनाओं से यह स्पष्ट हो रहा है कि कुछ पुलिस अधिकारी और प्रशासनिक कर्मी इस व्यवस्था का दुरुपयोग कर मुख्यमंत्री की मंशा को पलीता लगा रहे हैं।
आईजीआरएस पर दर्ज शिकायतों का सही निस्तारण करने के बजाय, कुछ पुलिस अधिकारी और कर्मचारी आंकड़ों में सुधार दिखाने के लिए फर्जी तरीके से मामलों का निस्तारण कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, शिकायतों को बिना उचित जांच के निस्तारित कर दिया जाता है, शिकायतकर्ता से संपर्क तक नहीं किया जाता, और कई मामलों में शिकायतों को “मामूली विवाद” या “असत्य” घोषित कर बंद कर दिया जाता है।
आंकड़े बताते हैं कि 2024 की शुरुआत से अब तक उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में दर्ज अपराधों की संख्या में कमी दर्ज की गई है। लेकिन IGRS पर दर्ज शिकायतों के निस्तारण की उच्च दर ने सवाल खड़े कर दिए हैं। 2024 में दर्ज अपराध: करीब 3 लाख मामले। IGRS पर दर्ज शिकायतें: 5 लाख से अधिक। निस्तारित मामलों का प्रतिशत: 95%। इन आंकड़ों को देखने पर लगता है कि पुलिस ने अत्यधिक कुशलता से शिकायतों का निस्तारण किया है। लेकिन जब इन मामलों की पड़ताल की जाती है, तो यह सामने आता है कि इनमें से 60% शिकायतों का निस्तारण बिना शिकायतकर्ता से संपर्क किए किया गया। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि उन्हें न तो निस्तारण प्रक्रिया में शामिल किया गया, न ही उनके द्वारा दी गई जानकारी की पुष्टि की गई।
एक मामले में, फर्रुखाबाद में दर्ज एक विवाद की शिकायत को गलत साबित कर क्षेत्राधिकारी नगर ने फर्जी ही निस्तारित कर दिया,और कुख्यात माफिया अनुपम दुबे के साथी पर कार्यवाही न कर शिकायतकर्ता को ही अपराधी घोषित कर दिया,जबकि शिकायतकर्ता को कोई समाधान नहीं मिला। कई मामलों में, पुलिस ने शिकायतों को “असत्य” करार देते हुए फर्जी रिपोर्ट दर्ज की। उदाहरण: लखनऊ में दर्ज एक घरेलू हिंसा के मामले में पीड़िता ने दावा किया कि पुलिस ने जांच किए बिना मामला बंद कर दिया।
आईजीआरएस पर “टॉप प्रदर्शन” दिखाने का दबाव अधिकारियों को गलत तरीके अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बार-बार स्पष्ट किया है कि कानून-व्यवस्था के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। लेकिन IGRS पर गलत निस्तारण ने सरकार की इस नीति को कमजोर कर दिया है। जब शिकायतें सही तरीके से नहीं निपटाई जातीं, तो जनता का पुलिस और प्रशासन पर से विश्वास उठने लगता है। गलत निस्तारण के कारण अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती, जिससे उनके हौसले और बुलंद हो जाते हैं।
IGRS जैसे पोर्टल का सही उपयोग पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही ला सकता है। लेकिन इसके लिए कुछ सुधार आवश्यक हैं। कई अधिकारियों और कर्मचारियों को IGRS के सही उपयोग का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। निचले स्तर के अधिकारियों पर ऊपरी अधिकारियों का दबाव होता है कि वे निस्तारण दर को ऊंचा रखें। निस्तारण की संख्या पर अधिक जोर दिया जाता है, जबकि गुणवत्ता की अनदेखी की जाती है।
IGRS पोर्टल के जरिए शिकायतों की प्रगति को सटीक रूप से मॉनिटर किया जा सकता है। अगर शिकायतकर्ता को निस्तारण प्रक्रिया में शामिल किया जाए, तो इससे पारदर्शिता बढ़ेगी। पोर्टल के जरिए समय सीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा सुनिश्चित किया जा सकता है।
IGRS पर दर्ज शिकायतों की जांच के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी बनाई जानी चाहिए, जो पुलिस पर दबाव डाले बिना निष्पक्ष जांच कर सके। शिकायत को बंद करने से पहले शिकायतकर्ता से उसकी सहमति ली जानी चाहिए। अधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन निस्तारित शिकायतों की संख्या के बजाय उनकी गुणवत्ता के आधार पर किया जाना चाहिए।
गलत निस्तारण करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। जनता को IGRS के सही उपयोग और उनकी शिकायतों पर कार्रवाई की प्रक्रिया के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
IGRS पोर्टल एक प्रभावी उपकरण है, लेकिन इसके दुरुपयोग ने इसे सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। गलत निस्तारण के कारण न केवल मुख्यमंत्री की जीरो टॉलरेंस नीति कमजोर हो रही है, बल्कि जनता का भरोसा भी प्रशासन से उठ रहा है। अगर समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो यह व्यवस्था जनता और सरकार दोनों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। आंकड़े बताते हैं कि निस्तारण दर भले ही बढ़ी हो, लेकिन उनकी गुणवत्ता में कमी आई है। यह दर्शाता है कि सुधार के लिए कठोर कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।