15 अगस्त वो तारीख है जब भारत ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से आजादी हासिल की थी। विदेशी ताकतों ने भारत के नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंपी थी। लेकिन इस आजादी के पीछे सैकड़ों लोगों का संघर्ष था। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन कुर्बान कर दिया। लेकिन उनमें से एक सेनानी को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा हासिल है। आइए जानते हैं कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को सबसे पहले राष्ट्रपिता किसने कहा था।
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। अपने अहिंसावादी विचारों से उन्होंने पूरे विश्व की सोच बदल दी। गांधी जी द्वारा स्वतंत्रता और शांति के लिए शुरू की गई पहल ने भारत और दक्षिण अफ्रीका में कई ऐतिहासिक आंदोलनों को नई दिशा दिखाई। उनका पहला सत्याग्रह 1917 में बिहार के चंपारण जिले से शुरू हुआ था। उसके बाद से भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी एक अहम शख्सियत बन गए।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को राष्ट्रपिता किसने कहा?
आम राय है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सबसे पहले महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को राष्ट्रपिता कहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, गांधी जी के देहांत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे’। लेकिन उनसे पहले दूसरे कांग्रेस नेता ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा था। यह थे सुभाष चंद्र बोस। दिलचस्प बात है कि नेताजी बोस के कांग्रेस से इस्तीफा देने की मूल वजह अप्रत्यक्ष रूप से महात्मा गांधी थे।
नेताजी बोस की जीत को महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हार माना गया
जनवरी 1939 को कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद का चुनाव होना था। पिछली बार यानी 1938 में सुभाष चंद्र बोस निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे। इस बार भी वो अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहे थे। हालांकि, महात्मा गांधी इससे सहमत नहीं थे। वो चाहते थे कि जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष पद के लिए अपना नाम आगे करें। नेहरू के मना करने के बाद उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद से आग्रह किया। लेकिन मौलाना स्वास्थ्य कारणों से पीछे हट गए। अंत में महात्मा गांधी ने आंध्र प्रदेश से आने वाले पट्टाभि सीतारमैय्या को अध्यक्ष पद के लिए आगे किया।
गांधी जी (Mahatma Gandhi) के समर्थन के बाद भी 29 जनवरी, 1939 को हुए चुनाव में पट्टाभि सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले। जबकि नेताजी बोस को 1580 मिले। उस समय तक जवाहर लाल नेहरु के अपवाद को छोड़कर किसी अध्यक्ष को लगातार दूसरा कार्यकाल नहीं मिला था। पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को गांधी की हार की तरह देखा गया।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। अगले महीने 20-21 फरवरी 1939 को कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक वर्धा में हुई। स्वास्थ्य कारणों से सुभाष बाबू इसमें नहीं पहुंच पाए। उन्होंने पटेल से वार्षिक अधिवेशन तक बैठक टालने को कहा। इस पर पटेल, नेहरू समेत 13 सदस्यों ने सुभाष बाबू पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए वर्किंग कमेटी से इस्तीफा दे दिया। उनका आरोप था कि बोस अपनी अनुपस्थिति में कांग्रेस के सामान्य कार्य को संचालित नहीं होने दे रहे।
चुनाव जीते, लेकिन फिर भी इस्तीफा दिया
इसके बाद 8 से 12 मार्च, 1939 तक त्रिपुरी (जबलपुर) में कांग्रेस का अधिवेशन रखा गया। इसमें आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के 160 सदस्यों की तरफ से एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें लिखा था कि कांग्रेस गांधी के रास्ते पर ही आगे बढ़ेगी। इसने वर्किंग कमेटी चुनने का अधिकार भी अध्यक्ष से छीन लिया गया, जो कांग्रेस के संविधान में दिया हुआ था।
निर्वाचित अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस शक्ति विहीन हो चुके थे। पंडित नेहरु ने उनसे वर्किंग कमेटी के सदस्यों को ‘हीन बुद्धि कहने’ के लिए माफी मांगने को कहा। लेकिन सुभाष बोस झुकने को तैयार नहीं थे। नेहरु ने उनसे कार्यकाल पूरा करने को कहा। मगर उन्होंने इस्तीफा देना बेहतर समझा।
मतभेद के बाद भी राष्ट्रपिता माना
सुभाष बोस गांधी जी का बहुत आदर करते थे। लेकिन उनके लिए गांधी जी की इच्छा अंतिम फैसला नहीं था। 1940 में कांग्रेस की योजनाओं से अलग रहकर काम करते सुभाष बाबू गिरफ्तार हो गए। 9 जुलाई 1940 को सेवाग्राम में गांधी जी ने कहा,’सुभाष बाबू जैसे महान व्यक्ति की गिरफ्तारी मामूली बात नहीं है, लेकिन सुभाष बाबू ने अपनी लड़ाई की योजना बहुत समझ-बूझ और हिम्मत से बनाई है।’
अंग्रेजों के चंगुल से बचकर जुलाई 1943 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से जापान के नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे थे। 4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया।
सुभाष बोस ने कहा, ’भारत की आजादी की आखिरी लड़ाई शुरु हो चुकी है। ये हथियारबंद संघर्ष तब तक चलेगा, जब तक ब्रिटिश को देश से उखाड़ नहीं देंगे।’ थोड़ी देर रुककर उन्होंने कहा ‘राष्ट्रपिता , हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में हम आपका आशीर्वाद मांगते हैं।’
गांधी जी (Mahatma Gandhi) ने सुभाष बोस की विमान दुर्घटना की मृत्यु की खबर पर कहा था,’उन जैसा दूसरा देशभक्त नहीं, वह देशभक्तों के राजकुमार थे।’ 24 फरवरी 1946 को अपनी पत्रिका ‘हरिजन’ में लिखा,’आजाद हिंद फौज का जादू हम पर छा गया है। नेताजी का नाम सारे देश में गूंज रहा है। वे अनन्य देश भक्त थे। उनकी बहादुरी उनके सारे कामों में चमक रही है।