21 मार्च 2025 की दोपहर, उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले के जलालपुर तहसील के अराई गांव में एक घटना घटी, जिसने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया। प्रशासन ने अवैध कब्जे का आरोप लगाते हुए कई झोपड़ियों को बुलडोज़र से ढहा दिया। इन झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों के लिए यह न केवल उनके आशियानों का विनाश था, बल्कि उनके सपनों और भविष्य की संभावनाओं का भी। इसी मलबे में दबे सपनों में से एक थी आठ वर्षीय अनन्या यादव की कहानी, जिसने अपनी किताबों को सीने से लगाकर भागते हुए यह संदेश दिया कि शिक्षा और सपने किसी भी परिस्थिति में जीवित रह सकते हैं।
अनन्या यादव, एक साधारण परिवार की बेटी है, जो सरकारी प्राइमरी स्कूल, अराई में कक्षा 1 की छात्रा है। उसके पिता, अभिषेक यादव, एक मेहनती मजदूर हैं, जिन्होंने अपनी सीमित आय में से भी अनन्या की शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने का प्रयास किया। अनन्या का सपना है कि वह बड़ी होकर एक आईएएस अधिकारी बने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाए। उसकी यह आकांक्षा न केवल उसके परिवार, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणादायक है।
जब प्रशासन का बुलडोज़र अराई गांव में पहुंचा, तो वहां के निवासियों को यह अंदाजा नहीं था कि उनके आशियाने पल भर में मलबे में तब्दील हो जाएंगे। प्रशासन का दावा था कि यह भूमि सरकारी संपत्ति है और यहां अवैध कब्जा किया गया था। जलालपुर तहसीलदार न्यायालय के आदेश के अनुसार, इन झोपड़ियों को हटाया गया। हालांकि, अनन्या के दादा, 70 वर्षीय राम मिलन यादव, का दावा है कि उनका परिवार पिछले 50 वर्षों से इस भूमि पर रह रहा है। उन्होंने बताया कि जब वे प्रशासन से अपनी बात कह रहे थे, तभी एक झोपड़ी में आग लग गई, जिससे स्थिति और भी भयावह हो गई।
प्रशासन का कहना था कि यह भूमि सरकारी संपत्ति है और यहां अवैध कब्जा किया गया था। जलालपुर तहसीलदार न्यायालय के आदेश के अनुसार, इन झोपड़ियों को हटाया गया। हालांकि, अनन्या के दादा, 70 वर्षीय राम मिलन यादव, का दावा है कि उनका परिवार पिछले 50 वर्षों से इस भूमि पर रह रहा है। उन्होंने बताया कि जब वे प्रशासन से अपनी बात कह रहे थे, तभी एक झोपड़ी में आग लग गई, जिससे स्थिति और भी भयावह हो गई।
इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें अनन्या अपनी किताबों को बचाने के लिए भागती हुई दिखाई दी। यह मार्मिक दृश्य पूरे देश को झकझोर देने वाला था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लिया और न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “एक वीडियो में देखा गया कि छोटी झोपड़ियों को बुलडोज़र से गिराया जा रहा है और एक छोटी बच्ची अपनी किताबों को लेकर भाग रही है। यह दृश्य सभी को झकझोर देने वाला है।”
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना पर ट्वीट करते हुए लिखा, “उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर में एक प्रशासनिक अधिकारी अपनी शान दिखाने के लिए लोगों की झोपड़ियाँ गिरा रहा है और एक बच्ची अपनी किताबें बचाने के लिए भागने पर मजबूर है। ये वही भाजपाई लोग हैं, जो कहते हैं: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!”
अनन्या का सपना और आगे की राह
अनन्या का सपना है कि वह आईएएस अधिकारी बने और समाज में बदलाव लाए। वह कहती है, “मेरी किताबें ही मेरी दुनिया हैं। मैं पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती हूँ ताकि मेरे परिवार को कभी इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े।” आज, अनन्या की यह दृढ़ता और साहस हमें यह सिखाता है कि सपनों की कोई उम्र नहीं होती और संघर्षों के बावजूद, यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
यह घटना प्रशासनिक संवेदनहीनता और सामाजिक असमानता का प्रतीक है। जब प्रशासनिक मशीनरी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मानवीय मूल्यों को नजरअंदाज करती है, तो समाज में असंतोष और अविश्वास बढ़ता है। अनन्या जैसी बच्चियों के सपनों को कुचलना न केवल उनके भविष्य के साथ अन्याय है, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा उत्पन्न करता है।
सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जिनका उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। लेकिन जब जमीनी स्तर पर ऐसी घटनाएँ घटती हैं, तो इन योजनाओं की प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। यह आवश्यक है कि सरकारी योजनाएँ केवल कागजों तक सीमित न रहें, बल्कि उनका वास्तविक लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में संज्ञान लेना सकारात्मक कदम है। न्यायालय को चाहिए कि वह इस मामले की गहन जांच करे और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे। साथ ही, भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों, इसके लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार आवश्यक है। भूमि अधिग्रहण और बेदखली की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
समाज का प्रत्येक सदस्य इस प्रकार की घटनाओं के प्रति संवेदनशील हो और जरूरतमंदों की सहायता के लिए आगे आए। अनन्या की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद, यदि समाज साथ दे, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। हमें अपने आसपास के लोगों की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए और सामाजिक न्याय की स्थापना में योगदान देना चाहिए।
अनन्या यादव की कहानी केवल एक बच्ची की संघर्षगाथा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की संरचना, प्रशासनिक तंत्र की संवेदनशीलता और शिक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है।