दुनिया भर में भगवान शिव के अनगिनत मंदिर है और हर मंदिर की अपनी एक कहानी और रहस्य है। भगवान शिव का एक ऐसा ही मंदिर ( Triyuginarayan temple) है उनके विवाह की कहानी जुड़ी हुई है। कहा जाता है की भगवान शिव ने इसी स्थान पर माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे।
इस मंदिर ( Triyuginarayan temple) में पूरे साल देश-विदेश से लोग शादी करने के लिए भी आते हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन को भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिल सके।
कहां है यह मंदिर?
भगवान शिव के इस मंदिर को त्रियुगीनारायण ( Triyuginarayan temple) के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक में स्थित है। समुद्रतल से 6495 फीट की ऊंचाई पर केदारघाटी में स्थित जिले की सीमांत ग्राम पंचायत का त्रियुगीनारायण नाम इसी मंदिर के कारण पड़ा। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी।
शिव-पार्वती का हुआ था विवाह
माता पार्वती राजा हिमावत पुत्री थी। भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने कठोर तप किया था। जिसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। उनके विवाह के दौरान जलाई गई अग्नि आज भी जल रहीं पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान और शिव और माता पार्वती की विवाह हुआ तब भगवान विष्णु माता पार्वती का भाई बनकर उनके विवाह में शामिल हुए थे और सभी रीतियों का पालन किया था।
ब्रह्मा जी बने थे पुजारी
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराने के लिए ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। इसलिए विवाह स्थान को ब्रह्म शिला भी कहा जाता है, जो मंदिर के ठीक सामने स्थित है। उस समय बहुत से संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। इस महान और दिव्य स्थान का जिक्र हिंदू पुराणों में किया गया है।
यहां स्थित है तीन जलकुंड
विवाह से पहले सभी देवी देवताओं के स्नान करने के लिए यहां तीन जल कुंड का निर्माण किया गया था। जिन्हें रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। धार्मिक कथा का अनुसार, सरस्वती कुंड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नासिका से हुई थी। इसलिए यह मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से संतान सुख मिलता है।
विष्णु जी ने लिया था वामन अवतार
पुराणों के अनुसार, त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेता युग से यहां पर स्थापित है। जबकि केदारनाथ वा बद्रीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थान पर ही भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। कथा के अनुसार, इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से वहा 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर यज्ञ रोक दिया और बलि का यज्ञ भंग हो गया। इसलिए यहां भगवान विष्णु को वामन देवता के रूप में पूजा जाता है।