शरद कटियार
लोकतंत्र में सत्ता किसी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि जनता की जिम्मेदारी है। लेकिन आजकल सत्ता के नशे में चूर लोग इसे भूल जाते हैं। पद के स्वाद ने उन्हें इतना मदहोश कर दिया है कि वे सोचते हैं, मैं अजेय हूँ, मैं अनछूता हूँ। लेकिन इतिहास हमेशा उनका हिसाब किताब रखता है। सच दबाने की कोशिश करने वाले, चाहे कितने ही बड़े क्यों न हों, समय के अंधेरों में खो जाते हैं। और वही सच, जो दबाने की हर कोशिश के बावजूद बचा रहता है, अंततः उन्हें उनके कर्मों की सजा देता है।कहावत है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। यह सिर्फ कविताई वाक्य नहीं, बल्कि कायर, भ्रष्ट और शक्तिशाली लोगों के लिए चेतावनी है। सत्ता का गलत इस्तेमाल करने वाला चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो, समय का पहिया उसे सबक सिखाने से पीछे नहीं हटता। इतिहास इसकी गवाही देता है हिटलर, तानाशाहों की फौजें, भ्रष्ट नेताओं की गिरती सत्ता, या लोकतंत्र में सत्ता के दुरुपयोग से गिरती सरकारें सबने यही सिखाया कि शक्ति का नशा हमेशा घातक होता है।अभिमान का नशा, पद का नशा गलत है और अगर आप इसका दुरुपयोग करते हैं तो आपका पतन निश्चित है। हमारे देश में भी वही कहानी दोहराई जाती है। सत्ता का गलत इस्तेमाल करने वाले अदालतों के कटघरों में हैं, जबकि सच्चाई और न्याय की राह चुनने वाले भले अस्थायी रूप से दबे हों, लेकिन अंततः वही सम्मान और पहचान पाते हैं। यह प्रकृति का कानून है अन्याय और छल लंबे समय तक नहीं टिकते।
अब सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे लोग इसे समझते हैं पद का अर्थ केवल शक्ति दिखाना, दबाना और अहंकार नहीं है। यह जिम्मेदारी है, जनसेवा का वचन है। जो इसे भूल जाते हैं, इतिहास उनके नाम को सिर्फ चेतावनी के तौर पर दर्ज करता है समाज और शासन को यह हमेशा याद रखना चाहिए न्याय चाहे देर से आए, पर आएगा जरूर। और समय का पहिया किसी को नहीं छोड़ता। इसलिए, सत्ता और पद का इस्तेमाल अपने स्वार्थ में नहीं, जनता की भलाई में होना चाहिए। यही लोकतंत्र की असली ताकत और उसकी वास्तविक परिभाषा है।
लेखक दैनिक यूथ इंडिया के प्रधान संपादक हैं





