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Thursday, April 24, 2025

गौशालाओं पर सियासत: सुगंध बनाम दुर्गंध की राजनीति?

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ये कन्नौज में अखिलेश यादव का बड़ा बयान, गौ माता के सम्मान पर उठाए सवाल

शरद कटियार

कन्नौज। उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय गौशालाओं की स्थिति पर बहस तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बार फिर मौजूदा सरकार की नीतियों पर हमला बोलते हुए गौशालाओं की बदहाली और गौ माता के प्रति सरकारी उदासीनता को लेकर सवाल खड़े किए हैं। कन्नौज में आयोजित “दिव्य विश्व कल्याणात्मक 1108 मां पीतांबरा मृत्युंजय महायज्ञ” में पहुंचे अखिलेश यादव ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि “हम सुगंध वाले हैं, इसलिए हमने इत्र पार्क बनाया था, लेकिन यह सरकार दुर्गंध वाली है, इसलिए केवल गौशालाओं के नाम पर राजनीति कर रही है।”

गौशालाओं को लेकर अखिलेश यादव के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है। उनका आरोप है कि भाजपा सरकार गौ माता की सेवा के नाम पर सिर्फ प्रचार कर रही है, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि गौशालाएं बदहाल हैं और सड़कों पर बेसहारा घूम रहे गौवंश की हालत दयनीय है।

हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में गौशालाओं को लेकर कई विवाद सामने आए हैं। सड़कों पर घूमते आवारा पशु, गौ माता की उचित देखभाल की कमी और गौशालाओं में हो रही वित्तीय अनियमितताएं सरकार की गौ रक्षा नीति पर सवाल खड़े करती हैं। सपा प्रमुख ने इन मुद्दों को उठाते हुए कहा कि जब उनकी सरकार आएगी तो गौशालाओं को “मंदिर की तरह पवित्र स्थल बनाया जाएगा, जहां श्रद्धा और समर्पण के साथ गौ माता की सेवा होगी।”

यह पहली बार नहीं है जब गौ माता के मुद्दे को लेकर राजनीति गर्माई है। 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा सरकार ने गौशालाओं के विकास को प्राथमिकता देने की बात कही थी, लेकिन जमीनी स्तर पर इनकी स्थिति वैसी नहीं दिखी जैसी सरकार ने वादा किया था।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गौ माता का सम्मान केवल चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है?
समाजवादी पार्टी और भाजपा की गौशालाओं को लेकर नीतियों में बड़ा अंतर है। जहां भाजपा सरकार इसे धार्मिक आस्था से जोड़कर देखती है, वहीं अखिलेश यादव इसे प्रशासनिक कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार से जुड़ा मुद्दा मानते हैं।
अखिलेश यादव ने अपने बयान में कहा, “हमने जब इत्र पार्क बनाया, तो यह खुशहाली और रोजगार का प्रतीक था। लेकिन भाजपा केवल गौशालाओं के नाम पर प्रचार कर रही है और स्थिति यह है कि गायें या तो भूखी मर रही हैं या सड़क हादसों का शिकार हो रही हैं।”

दूसरी ओर, भाजपा सरकार का दावा है कि उसने गौशालाओं के विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट दिया है और गौ रक्षा को लेकर कई कड़े कानून बनाए हैं।

गौशालाओं की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि सिर्फ बयानबाजी से गौ माता की स्थिति नहीं सुधर सकती। अखिलेश यादव का यह कहना कि “समाजवादी सरकार आएगी तो गौशालाओं को मंदिर की तरह बनाया जाएगा,” एक अच्छी बात हो सकती है, लेकिन इसके लिए ठोस योजना और कड़े क्रियान्वयन की जरूरत होगी।
सरकार कोई भी हो, जरूरत इस बात की है कि गौशालाओं का सही ढंग से संचालन हो, पशुओं के लिए चारा-पानी की उचित व्यवस्था हो और गौ माता की सेवा को केवल चुनावी मुद्दा न बनाया जाए।

अखिलेश यादव का यह बयान कि “हम सुगंध वाले हैं और भाजपा दुर्गंध फैला रही है,” निश्चित रूप से भाजपा पर एक तीखा राजनीतिक हमला था। लेकिन असली सवाल यह है कि गौशालाओं और गौ माता की स्थिति में सुधार के लिए वास्तविक काम कौन करेगा? क्या यह मुद्दा सिर्फ सियासी बयानों तक ही सीमित रहेगा, या फिर जमीन पर कुछ ठोस बदलाव भी देखने को मिलेंगे?

जनता के लिए यह सोचने का समय है कि गौ रक्षा के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं से सवाल पूछें और असल में जो काम हो रहा है, उसी के आधार पर अपने नेता का चुनाव करें।

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