– एक अंतहीन दहशतगर्दी का चक्र
पाकिस्तान में एक के बाद एक आतंकियों की हत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं। हाल ही में लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष नेता और 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साले मौलाना काशिफ अली की हत्या ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान अपने ही बोए आतंक के बीज का कटु फल चख रहा है। खैबर पख्तूनख्वा में काशिफ अली की गोली मारकर हत्या कर दी गई, और इस वारदात के पीछे कौन है, इसका स्पष्ट खुलासा नहीं हो सका है। लेकिन यह अकेला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई कुख्यात आतंकियों को पाकिस्तान में ही मौत के घाट उतारा जा चुका है, जिससे यह सवाल उठता है कि आखिर इस सिलसिले के पीछे कौन-सी ताकतें काम कर रही हैं।
यह सिलसिला हाल ही में शुरू नहीं हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में कई कुख्यात आतंकियों को पाकिस्तान में ही मार दिया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं:
8 सितंबर 2023 – लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष आतंकी मोहम्मद रियाज उर्फ अबू कासिम को पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) के रावलकोट में एक मस्जिद के अंदर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। वह ढांगरी (जम्मू-कश्मीर) आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था।
11 अक्टूबर 2023 – जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष कमांडर शाहिद लतीफ को सियालकोट में एक मस्जिद के अंदर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। लतीफ 2016 पठानकोट एयरबेस हमले का मास्टरमाइंड था।
अब मौलाना काशिफ अली की हत्या के बाद पाकिस्तान में आतंकी संगठनों में खलबली मच गई है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सब आपसी रंजिश और गुटबाजी का परिणाम है, या फिर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां ही इन हत्याओं को अंजाम दे रही हैं?
इस तरह की घटनाओं को देखते हुए एक बड़ी संभावना यह बनती है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई खुद ही इन आतंकियों का सफाया कर रही है। इसकी वजहें कई हो सकती हैं।
पाकिस्तान लंबे समय से एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की निगरानी में रहा है। उस पर आतंकियों को पनाह देने के गंभीर आरोप लगे हैं और इसे लेकर उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेलनी पड़ी है। अमेरिका, भारत और अन्य देशों का दबाव भी लगातार बढ़ रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देना बंद करे। ऐसे में यह संभव है कि पाकिस्तान खुद को बचाने के लिए अपने ही आतंकियों को मारकर यह दिखाने की कोशिश कर रहा हो कि वह आतंक के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है।
पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने लंबे समय से आतंकवादी संगठनों को अपनी रणनीति के तहत पाला-पोसा है। लेकिन अब ये संगठन पाकिस्तान के ही नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं। तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता में वापसी के बाद से पाकिस्तान में आतंकवाद की घटनाओं में तेजी आई है। टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) और अन्य कट्टरपंथी गुट पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ ही हथियार उठा रहे हैं। ऐसे में, आईएसआई आतंकियों के चुनिंदा सफाए की रणनीति अपना सकता है।
पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी तेज हो गई है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और आईएस-के (इस्लामिक स्टेट-खुरासान) जैसे कई गुट पाकिस्तान में सक्रिय हैं और इनमें आपसी संघर्ष चलता रहता है। ऐसे में, यह भी संभव है कि ये हत्याएं आतंकी संगठनों की आपसी दुश्मनी का नतीजा हों।
आतंकियों के सफाए की ये घटनाएं भारत के लिए सकारात्मक मानी जा सकती हैं, लेकिन इससे यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ईमानदारी से लड़ाई लड़ रहा है। दरअसल, पाकिस्तान अभी भी आतंक को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बनाए हुए है।
कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को लगातार समर्थन दिया जा रहा है।
पाकिस्तानी सेना की शह पर आतंकवादी घुसपैठ की कोशिशें जारी हैं।
पाकिस्तान के आतंकी संगठन भारत विरोधी नफरत फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
यानी आतंकियों की हत्याएं भले ही हो रही हों, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि पाकिस्तान अब आतंकवाद का समर्थन नहीं कर रहा है।
आज पाकिस्तान जिस स्थिति में है, वह पूरी तरह से उसकी खुद की बनाई हुई नीतियों का नतीजा है। आतंकवाद को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाली नीति ने अब उसे ही कमजोर कर दिया है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। विदेशी कर्ज चुकाने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं और महंगाई चरम पर पहुंच गई है। चीन और सऊदी अरब जैसे देश भी अब उसे मदद देने से पहले कई शर्तें लगा रहे हैं।
पाकिस्तान में इस समय राजनीतिक अस्थिरता भी चरम पर है। इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के बाद भी सेना और राजनीतिक दलों में खींचतान जारी है।
पाकिस्तान को अब अपने ही पाले हुए आतंकवादी सबसे बड़ा खतरा बनकर दिखाई दे रहे हैं। टीटीपी और अन्य गुट अब पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ हमले कर रहे हैं।
भारत के लिए यह समय सतर्क रहने का है। पाकिस्तान में आतंकी संगठनों के सफाए की खबरें भले ही आ रही हों, लेकिन इससे भारत को बेफिक्र नहीं होना चाहिए।
सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहना होगा, क्योंकि जब पाकिस्तान में आतंकी संगठनों पर दबाव बढ़ता है, तो वे कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में हमला करने की कोशिश करते हैं।
भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को बेनकाब करने का अभियान जारी रखना चाहिए।
आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बनाए रखने से पाकिस्तान को आतंकवाद को समर्थन देने की नीति छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
पाकिस्तान अब उसी आतंकवाद का शिकार बन रहा है, जिसे उसने दशकों तक भारत और अन्य देशों के खिलाफ इस्तेमाल किया था। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी जैसे संगठनों के आतंकी अब खुद पाकिस्तान की शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे बन गए हैं।
आतंकवाद को हथियार बनाकर चलने की पाकिस्तान की नीति अब पूरी तरह विफल हो चुकी है। मौलाना काशिफ अली की हत्या हो या अन्य आतंकियों का सफाया, यह संकेत है कि पाकिस्तान अपने ही बनाए दहशतगर्दी के जाल में बुरी तरह उलझ चुका है।
अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह इस गंदे खेल से बाहर निकलने की कोशिश करता है या फिर उसी में फंसकर खुद ही बर्बाद हो जाता है।