– गरीब, ओबीसी, शिक्षा, स्वास्थ्य, मीडिया सब पर उठते सवाल; क्या तानाशाही की ओर बढ़ रहा है लोकतंत्र?
बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा रचित भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा और सशक्त लोकतांत्रिक दस्तावेज है। पर आज की परिस्थितियाँ देखकर लगता है कि इस संविधान के मूल भावों को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। कानून व्यवस्था की हालत डांवाडोल है, न्याय का आधार ‘मुंहदेखी पंचायत’ जैसी स्थिति में बदलता जा रहा है। जिसकी सत्ता है, उसकी सुनवाई होती है — बाकी को बस सहना पड़ता है।
हर रोज कहीं न कहीं हिंसा, अत्याचार, जातीय भेदभाव, धार्मिक उन्माद, आरक्षण विरोध जैसी घटनाएँ सामने आती हैं। ओबीसी समाज को धीरे-धीरे हाशिए पर ढकेला जा रहा है। जब यह वर्ग रोजगार की मांग करता है तो उन्हें लाठी मिलती है, लेकिन यदि कोई धार्मिक आयोजन करे तो फूल बरसाए जाते हैं।
देश में शिक्षा ऑनलाइन हो गई है, मगर गरीब के पास मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट तक नहीं है। ऐसे में शिक्षा एक विशेष वर्ग की जागीर बनती जा रही है। आज बिजली, मोबाइल और इंटरनेट के बिना पढ़ाई संभव नहीं, और गरीब का बच्चा इन साधनों के बिना कैसे टिके?
सरकारी अस्पतालों में गरीबों को कोई पूछता नहीं और प्राइवेट में डॉक्टर सिर्फ पैसा देखते हैं। दवा महंगी, जांच और महंगी। एक आम गरीब परिवार इलाज कराए तो खाए क्या? डॉक्टरों की फीस अलग, कमीशन के लिए महंगी दवा अलग — ये कैसा तंत्र है? क्या गरीब की जान की कोई कीमत नहीं?
गरीब न घर खरीद सकता है, न इलाज करवा सकता है। यदि सड़क किनारे रहता है तो उसे भी चैन से नहीं रहने दिया जाता। कोई पूछे कि आखिर जाए तो जाए कहाँ? सरकार और प्रशासन की योजनाएँ सिर्फ कागजों में रह जाती हैं।
आज जो मीडिया सच दिखाना चाहता है, उसे दबा दिया जाता है। धमकी, हमला और मुकदमा जैसे हथकंडे अपनाए जाते हैं ताकि आम जनता को सच्चाई न दिखे। यह लोकतंत्र की हत्या नहीं तो और क्या है? हर आवाज को कुचल देने की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक नहीं, तानाशाही प्रतीत होती है।
सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स ने संस्कृति को गला घोंट दिया है। इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर पर आज धार्मिक, सामाजिक, संवेदनशील बातें नहीं चलतीं — अश्लीलता, झूठ, नकारात्मकता और भटकाव का बोलबाला है। आज बच्चे मोबाइल से संस्कार नहीं, भ्रम और भटकाव सीख रहे हैं।
देश के वरिष्ठ नेतृत्व, नीति निर्माताओं, समाजसेवियों और जागरूक नागरिकों को अब गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है। क्या हम संविधान के रास्ते से भटक चुके हैं? क्या यह वही भारत है जिसकी कल्पना स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी?
अब भी समय है — हमें संविधान की आत्मा को बचाना होगा, लोकतंत्र को मजबूत करना होगा, और समाज को समरसता की राह पर लाना होगा।
– कुर्मी सौरभ भानु कटियार
युवा प्रदेश मीडिया प्रभारी मंत्री, कूर्मि क्षत्रिय सभा, लखनऊ