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Friday, June 27, 2025

दो पड़ोसी, दो रास्ते, एक पुराना संघर्ष

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शरद कटियार

भारत और पाकिस्तान, जिनका इतिहास 1947 के विभाजन से जुड़ा है, आज भी एक स्थायी असहजता की स्थिति में जी रहे हैं। कश्मीर से लेकर कारगिल तक, आतंकी घटनाओं से लेकर मिसाइल हमलों तक, दोनों देशों के बीच टकराव ने दक्षिण एशिया को बार-बार युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है। वर्ष 2025 की शुरुआत में पाकिस्तान द्वारा किए गए छह बैलिस्टिक मिसाइल हमलों और भारत पर तीन सैन्य ठिकानों पर हमले का आरोप इस संघर्ष को एक नए, खतरनाक मोड़ पर ले आया है।

फरवरी 2025 की एक सुबह पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि भारत ने नियंत्रण रेखा (LoC) के पास रावलकोट, मीरपुर और कोटली क्षेत्रों में स्थित उनके तीन सैन्य ठिकानों को टारगेट करते हुए अचानक हमला किया। इस कार्रवाई को “पूर्व-खतरे का जवाब” बताया गया। इसके प्रतिउत्तर में पाकिस्तान ने छह बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनमें तीन हत्फ-5 (Shaheen-V) मिसाइलें शामिल थीं। भारत ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने इसे “घुसपैठ और आतंकी प्रायोजक ठिकानों पर लक्षित कार्रवाई” बताया।

भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं, लेकिन उनकी सैन्य नीतियों में बड़ा अंतर है। भारत ‘No First Use’ (NFU) की नीति अपनाता है, जबकि पाकिस्तान ‘First Use’ के विकल्प को खुला रखता है। दोनों देशों के पास आधुनिक मिसाइल प्रणालियाँ हैं:

भारत ने 2024 में अपने बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम (BMD) के दूसरे चरण का परीक्षण पूरा किया, जिससे वह 5,000 किमी दूर से आने वाली मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर सकता है।

सैन्य संघर्षों में सबसे अधिक प्रभावित आम जनता होती है। पुंछ, केरन, उरी और सुंदरबनी सेक्टर में लगातार गोलीबारी के कारण स्कूल बंद कर दिए गए हैं, ग्रामीण पलायन कर रहे हैं और सैकड़ों परिवार राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, 2025 की शुरुआत में ही लगभग 42 नागरिक मारे जा चुके हैं और 120 से अधिक घायल हैं। खेत, मकान और पशुधन नष्ट हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान की ओर से आक्रोश बढ़ा, लेकिन भारत ने आंतरिक मुद्दा बताकर उसे ठुकरा दिया। 2025 में रक्षा बजट ₹6.21 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जिसमें ₹1.65 लाख करोड़ सिर्फ पूंजीगत खर्च के लिए है।

पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है—IMF से कर्ज, रुपये की गिरावट, राजनीतिक अस्थिरता और बलूचिस्तान तथा खैबर पख्तूनख्वा में लगातार आतंकी हमले उसकी सीमाओं को कमजोर कर रहे हैं। पाक सेना देश में छद्म सत्ता का संचालन कर रही है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थानों की भूमिका सीमित हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव, अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है। अमेरिका ने कहा कि “किसी भी तरह का युद्ध न केवल क्षेत्र के लिए, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी खतरा है।” रूस ने पाकिस्तान से आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने की सलाह दी जबकि फ्रांस और यूरोपीय संघ ने बातचीत को ही एकमात्र समाधान बताया।

भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे को बार-बार उठाया है और पाकिस्तान को आतंक का प्रायोजक करार दिया है। पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को उठाने का प्रयास किया लेकिन OIC के अधिकांश सदस्य भारत के खिलाफ नहीं आए।

भारत की नीति अब ‘प्रोएक्टिव स्ट्रैटेजी’ पर आधारित है जिसमें सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और डिफेंसिव डिप्लोमेसी प्रमुख हैं। भारत यह संकेत देना चाहता है कि वह अब केवल जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर पहले प्रहार की रणनीति भी अपनाएगा।

दूसरी ओर, पाकिस्तान कूटनीतिक अलगाव से बचने के लिए चीन और तुर्की का समर्थन जुटा रहा है। हालाँकि चीन ने इस बार तटस्थ बयान देकर भारत के प्रति कड़ा रुख नहीं दिखाया, जिससे पाकिस्तान की रणनीति को झटका लगा।
संघर्ष की स्थिति में दोनों देशों के नागरिकों में संदेह, नफरत और कट्टरता बढ़ती है। लेकिन जब क्रिकेट मैच, कला प्रदर्शन या व्यापार के अवसर सामने आते हैं, तब यही जनता पारस्परिक संबंधों की वकालत करती है। सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों के बुद्धिजीवी वर्ग लगातार शांति की अपील कर रहे हैं।

शांति के पक्षधर मानते हैं कि पाकिस्तान की जनता को सेना और आतंकवादियों की दोहरी मार से मुक्ति चाहिए, जबकि भारत के युवा रोजगार, शिक्षा और तकनीक में आगे बढ़ना चाहते हैं—न कि युद्ध में।

भारत को अपने सीमा निगरानी तंत्र को और मजबूत करना होगा, खासकर POK और पंजाब क्षेत्र में।पाकिस्तान को FATF जैसी संस्थाओं के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्यवाही के लिए मजबूर किया जाए। दोनों देशों की गैर-सरकारी संस्थाएं सांस्कृतिक, शैक्षणिक और पत्रकार स्तर पर संवाद कायम रखें। एक नई “न्यूक्लियर रिस्क रिडक्शन एग्रीमेंट” पर विचार किया जाए जिससे मिसअंडरस्टैंडिंग से बचा जा सके।

भारत और पाकिस्तान के बीच यह सैन्य संघर्ष फिर से यह साबित करता है कि दोनों देशों को एक नई सोच की आवश्यकता है। युद्ध न तो कोई स्थायी समाधान देता है, न ही आर्थिक-सामाजिक उन्नति का मार्ग है। 21वीं सदी में जब दुनिया चंद्रयान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हरित ऊर्जा की बात कर रही है, तब उपमहाद्वीप के दो प्रमुख देश आपसी संघर्ष में उलझे हुए हैं।

भारत को अपनी सुरक्षा नीतियों में कठोरता बनाए रखते हुए, मानवाधिकार और संवाद को साथ लेकर चलना होगा। पाकिस्तान को आतंकी संगठनों से दूरी बनाकर लोकतंत्र और विकास की राह पर चलने की आवश्यकता है।
दक्षिण एशिया तभी उन्नति कर सकता है जब उसकी दो बड़ी शक्तियां—भारत और पाकिस्तान—एक-दूसरे को दुश्मन नहीं, पड़ोसी और साझेदार मानें। हथियारों की दौड़ से कहीं अधिक ज़रूरत है दिलों की दूरी कम करने की।

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