नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करते हुए लखनऊ के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को अंतरिम सुरक्षा प्रदान की है। उपाध्याय पर उत्तर प्रदेश प्रशासन में नियुक्तियों में जातिगत पक्षपात के संबंध में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करने के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि एक पत्रकार की रचना को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सुरक्षित है।
अभिषेक उपाध्याय ने ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ शीर्षक से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश प्रशासन में नियुक्तियों में जातिगत पक्षपात का मुद्दा उठाया था। इस लेख के बाद उन्हें धमकियों और अपशब्दों का सामना करना पड़ा, साथ ही उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और आईटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस बीच, कोर्ट ने उपाध्याय को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया है, जिससे उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकेगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार की आलोचना करने पर पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए, जिससे लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को प्रोत्साहन मिलेगा।