चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने सद्गुरु (Sadhguru) को पद्म विभूषण देने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि सद्गुरु को यह पुरस्कार देने में अनियमितताएं हुई हैं। अदालत ने याचिका को व्यक्तिगत हित से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता का उद्देश्य किसी व्यक्ति को निशाना बनाना था, न कि जनहित की सेवा करना।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में कहा कि सद्गुरु के दशकों के सामाजिक कार्यों को मान्यता देने के बाद उन्हें यह पुरस्कार दिया गया। उन्होंने बताया कि सद्गुरु (Sadhguru) को पद्म विभूषण के लिए नामित करते समय सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया और उनके खिलाफ कोई निगेटिव जानकारी या शिकायत भी नहीं पाई गई है।
ईशा फाउंडेशन के खिलाफ लगातार दायर हो रही याचिकाएं
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने यह भी बताया कि इस तथाकथित जनहित याचिका को एक ऐसे समूह ने दायर किया है जो नियमित रूप से ईशा फाउंडेशन के खिलाफ विभिन्न मामलों में याचिकाएं दायर करता रहा है। उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि पूर्व में भी ईशा फाउंडेशन के खिलाफ इसी समूह द्वारा दायर मामलों में हाई कोर्ट ने इनके उद्देश्य में व्यक्तिगत लाभ की संभावना जताई थी।
ईशा फाउंडेशन का बयान
हाई कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए ईशा फाउंडेशन ने कहा कि यह फैसला पुरस्कार प्रक्रिया की पारदर्शिता को मजबूत करता है और उनके जनहित कार्यों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। फाउंडेशन ने यह भी कहा कि ऐसे हमलों के बावजूद वे जनहित के लिए कार्य करते रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला
पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने भी ईशा फाउंडेशन के खिलाफ एक अन्य याचिका को खारिज किया था। एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियां ईशा फाउंडेशन में उनकी मर्जी के खिलाफ रह रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि दोनों महिलाएं अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस प्रकार की कार्यवाही का उद्देश्य संस्थाओं और व्यक्तियों को बदनाम करना नहीं होना चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि सद्गुरु को पद्म विभूषण देने की प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं थी, और यह याचिका केवल व्यक्तिगत कारणों से प्रेरित थी।