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Wednesday, July 16, 2025

‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए JPC गठित, प्रियंका गांधी समेत 31 सदस्य शामिल

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नई दिल्ली। एक देश-एक चुनाव (One Nation One Election) के लिए संयुक्‍त संसदीय कमेटी (जेपीसी) का गठन हो गया है। 31 सदस्यों की जेपीसी में अनुराग ठाकुर और प्रियंका गांधी जैसे सांसदों का नाम शामिल है। इस कमेटी की अध्यक्षता बीजेपी सांसद पी. पी. चौधरी करेंगे। वन नेशन वन इलेक्शन बिल को लोकसभा में स्वीकार कर लिया गया है। अब इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया है।

जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी। चूंकि वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा बिल संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहमत की आवश्यकता होगी। अनुच्छेद 368 (2) के तहत संविधान संशोधनों के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक सदन में यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देनी होगी।

जेपीसी में शामिल ये नाम

1- पी.पी.चौधरी (बीजेपी)
2- डॉ. सीएम रमेश (बीजेपी)
3- बांसुरी स्वराज (बीजेपी)
4- परषोत्तमभाई रूपाला (बीजेपी)
5- अनुराग सिंह ठाकुर (बीजेपी)
6- विष्णु दयाल राम (बीजेपी)
7- भर्तृहरि महताब (बीजेपी)
8- डॉ. संबित पात्रा (बीजेपी)
9- अनिल बलूनी (बीजेपी)
10- विष्णु दत्त शर्मा (बीजेपी)
11- प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस)
12- मनीष तिवारी (कांग्रेस)
13- सुखदेव भगत (कांग्रेस)
14- धर्मेन्द्र यादव (समाजवादी पार्टी)
15- कल्याण बनर्जी (TMC)
16- टी।एम। सेल्वागणपति (DMK)
17- जीएम हरीश बालयोगी (TDP)
18- सुप्रिया सुले (NCP-शरद गुट)
19- डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना- शिंदे गुट)
20- चंदन चौहान (RLD)
21- बालाशोवरी वल्लभनेनी (जनसेना पार्टी)

क्या करेगी जेपीसी?

सरकार ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा है। JPC का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष कहते हैं, ‘JPC की जिम्मेदारी है कि वह व्यापक परामर्श करे और भारत के लोगों की राय को समझे।’

One Nation One Election बिल पर चर्चा क्यों हो रही?

यह बिल भारत के संघीय ढांचे, संविधान के मूल ढांचे, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर बड़े पैमाने पर कानूनी और संवैधानिक बहस छेड़ चुका है। आलोचकों का कहना है कि राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और सत्ता के केंद्रीकरण की स्थिति बनेगी। कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव संविधान की बुनियादी विशेषताओं, जैसे संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व, को प्रभावित करता है

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