प्रशांत कटियार ✍️
भारत की बहुभाषी संस्कृति में हिंदी एक महत्वपूर्ण भाषा रही है, जो न केवल हमारी पहचान को दर्शाती है, बल्कि हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी समेटे हुए है। लेकिन आज के युग में, अंग्रेजी शिक्षा के बढ़ते प्रभाव ने हमें हमारी मूल संस्कृति से दूर कर दिया है।
सेंट लारेंस , सेंट एंथनी,सेंट जेवियर्स जैसे कई अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का उदय, न केवल शिक्षा प्रणाली को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह हमारी राज भाषा हिंदी की स्थिति को भी कमजोर कर रहा है।अंग्रेजी का बढ़ता चलन इस बात का संकेत है कि हम अपनी भाषाई पहचान को भूलते जा रहे हैं। कई लोग अंग्रेजी में बात करके अपनी काबिलियत का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन क्या यह जरूरी है कि हम अपनी मातृभाषा को छोड़ दें? यह सच है कि उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेजी का प्रयोग होता है, लेकिन क्या यह सही है कि वादी और प्रतिवादी को निर्णय की सही जानकारी न हो? न्याय का अर्थ केवल कानून का पालन करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि सभी पक्षों को समझ में आए।हाल ही में सरकार ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कुछ कानूनों में बदलाव किया है, जो स्वागत योग्य है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हमारी राज भाषा हिंदी के प्रति भी कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे? हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। जब हम अपनी भाषा को महत्व नहीं देंगे, तब हम अपनी पहचान को भी खो देंगे।सरकार को चाहिए कि वह हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए ठोस नीतियाँ बनाए। स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य किया जाए, और सरकारी कार्यों में हिंदी का प्रयोग बढ़ाया जाए। इसके अलावा, हमें समाज में भी इस बात को समझाना होगा कि हिंदी में बात करना कोई कमतरता नहीं, बल्कि गर्व का विषय है।हमें अपनी भाषा, संस्कृति और पहचान को सहेजने का प्रयास करना चाहिए। हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। यह केवल एक भाषा का सवाल नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक एकता और पहचान का सवाल है।