शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है। यह केवल परीक्षा पास करने या अंक अर्जित करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, ज्ञान और नैतिकता का समावेश भी करती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि कई छात्र कक्षाओं में नियमित रूप से उपस्थित नहीं होते, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए डमी स्कूलों में नामांकन कर लेते हैं। यह न केवल शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों को बाधित करता है, बल्कि इससे स्कूलों की भूमिका भी सीमित हो जाती है।
इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक बड़ा निर्णय लिया है। 2025 की परीक्षाओं से 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए 75% न्यूनतम उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई है। साथ ही, डमी स्कूलों पर भी शिकंजा कसा गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्र वास्तविक रूप से कक्षा में पढ़ाई करें।
इस नए नियम की पृष्ठभूमि, इसके संभावित प्रभाव और इसके औचित्य पर विस्तार से चर्चा करना आवश्यक है। यह लेख CBSE के इस निर्णय का विश्लेषण करेगा और इस नीति के दूरगामी प्रभावों पर प्रकाश डालेगा।
भारत में शिक्षा को सदैव एक पवित्र कार्य माना गया है। स्कूल केवल परीक्षा केंद्र नहीं होते, बल्कि ये छात्रों के बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक विकास के केंद्र भी होते हैं। लेकिन आधुनिक समय में यह देखा गया है कि कुछ छात्र और उनके माता-पिता परीक्षा प्रणाली को महज एक औपचारिकता मानते हैं और कक्षाओं में उपस्थिति को महत्व नहीं देते।
डमी स्कूलों का चलन इसी मानसिकता का परिणाम है। छात्र बोर्ड परीक्षा के लिए स्कूलों में नामांकन तो करा लेते हैं, लेकिन नियमित रूप से कक्षा में शामिल नहीं होते। वे निजी कोचिंग संस्थानों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त रहते हैं। इससे न केवल शिक्षा का मूल उद्देश्य प्रभावित होता है, बल्कि इससे उन छात्रों के साथ अन्याय होता है जो पूरी मेहनत और अनुशासन के साथ नियमित कक्षाओं में भाग लेते हैं।
CBSE का नया नियम इस अनुशासनहीनता पर रोक लगाने का प्रयास करता है। 75% उपस्थिति की अनिवार्यता सुनिश्चित करेगी कि छात्र स्कूलों में नियमित रूप से आएं और शिक्षकों के मार्गदर्शन में सीखें।
डमी स्कूल वे संस्थान होते हैं जो केवल नामांकन के लिए होते हैं, जहां छात्रों की उपस्थिति की कोई बाध्यता नहीं होती। ऐसे स्कूल केवल बोर्ड परीक्षा के समय सक्रिय होते हैं। कई माता-पिता अपने बच्चों को इन स्कूलों में दाखिला दिलाकर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पूरी तरह कोचिंग संस्थानों पर निर्भर हो जाते हैं।
CBSE ने इन डमी स्कूलों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। अब ऐसे छात्रों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) की परीक्षा देनी होगी, जिससे वे CBSE की परीक्षा में सीधे शामिल नहीं हो सकेंगे। इससे डमी स्कूलों की संख्या में गिरावट आने की संभावना है, जिससे शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और गुणवत्ता बढ़ेगी।
यह कदम उन छात्रों को भी फायदा पहुंचाएगा जो स्कूलों में नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं। जब सभी छात्र एक समान नियमों का पालन करेंगे, तो शिक्षा प्रणाली में प्रतिस्पर्धा भी स्वस्थ होगी और पढ़ाई का स्तर भी बेहतर होगा।
CBSE का नया नियम केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक ठोस कदम है जो शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा। इस नियम के तहत, किसी भी छात्र को बोर्ड परीक्षा में शामिल होने के लिए कम से कम 75% उपस्थिति रखनी होगी।
हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट भी दी गई है। यदि कोई छात्र गंभीर बीमारी, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में भागीदारी या अन्य महत्वपूर्ण कारणों से कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो पाता, तो उसे 25% तक की छूट दी जा सकती है। इसके लिए अभिभावकों को उचित दस्तावेज जमा करने होंगे।
इस नियम से छात्रों में अनुशासन बढ़ेगा। वे केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए स्कूल आएंगे। स्कूलों का भी यह दायित्व होगा कि वे छात्रों की उपस्थिति का सही रिकॉर्ड रखें और सुनिश्चित करें कि छात्र नियमित रूप से कक्षाओं में भाग लें।
इस नीति को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षकों और स्कूलों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। CBSE ने सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे छात्रों की उपस्थिति का सटीक रिकॉर्ड रखें और इसे समय-समय पर बोर्ड के साथ साझा करें।
बोर्ड के अधिकारी औचक निरीक्षण भी कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुपस्थित छात्रों को अवैध रूप से परीक्षा में शामिल नहीं किया जा रहा है। यदि कोई स्कूल ऐसा करता पाया गया, तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है।
इससे स्कूलों पर भी जिम्मेदारी बढ़ेगी कि वे छात्रों को कक्षाओं में नियमित रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित करें।
छात्रों और अभिभावकों को भी यह समझना होगा कि स्कूल केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण व्यक्तित्व विकास का स्थान है।
अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को नियमित स्कूल जाने के लिए प्रेरित करें, न कि केवल कोचिंग संस्थानों पर निर्भर रहने दें। शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि जीवन के लिए तैयार करना है।
CBSE के इस फैसले से कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं: जब छात्र नियमित रूप से कक्षा में उपस्थित होंगे, तो वे बेहतर तरीके से विषयों को समझ पाएंगे। इससे केवल उन्हीं छात्रों को बोर्ड परीक्षा में बैठने का मौका मिलेगा जो वास्तव में स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। छात्र केवल परीक्षा के समय नहीं, बल्कि पूरे साल पढ़ाई को गंभीरता से लेंगे। जब सभी छात्र समान नियमों का पालन करेंगे, तो यह शिक्षा में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाएगा।
CBSE द्वारा 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए 75% उपस्थिति अनिवार्य करने और डमी स्कूलों पर सख्ती का निर्णय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। यह न केवल छात्रों को अनुशासन में लाएगा, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को भी बढ़ाएगा।
हालांकि, इस नियम को सफल बनाने के लिए स्कूलों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को मिलकर काम करना होगा। यदि यह नियम सही ढंग से लागू हुआ, तो यह भारत में एक मजबूत और प्रभावी शिक्षा प्रणाली की ओर एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
शिक्षा केवल परीक्षा पास करने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए जो छात्रों को न केवल विषयों में बल्कि जीवन में भी सफल बनाए। CBSE का यह निर्णय इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है।