भारत सरकार द्वारा पेश किया गया केंद्रीय बजट 2025 (Budget) कई मायनों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है। यह बजट ऐसे समय में आया है जब देश आर्थिक अस्थिरता, वैश्विक मंदी की आशंका, और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों से गुजर रहा है। मध्यम वर्ग, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लंबे समय से कर राहत की उम्मीद कर रहा था। इस बार सरकार ने उनकी मांगों को सुनते हुए आयकर छूट की सीमा में महत्वपूर्ण वृद्धि की है, जिससे लाखों करदाताओं को राहत मिलेगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बजट वास्तव में मध्यम वर्ग के हित में है, या फिर यह महज आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया एक लोकलुभावन प्रयास है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट में आयकर की नई व्यवस्था के तहत 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय को कर मुक्त कर दिया है। पहले यह सीमा केवल 7 लाख रुपये थी, जिससे लाखों वेतनभोगी और छोटे व्यवसायी कर दायरे से बाहर हो जाएंगे।
इसके अलावा, 18 लाख रुपये तक की आय वालों को 70,000 रुपये की कर छूट और 12 लाख रुपये तक के करदाताओं को 80,000 रुपये की छूट देने की घोषणा की गई है। यह पहली बार है जब सरकार ने मध्यम वर्ग को इतनी बड़ी राहत दी है।
वर्तमान में सरकार ने नया कर ढांचा लागू किया है जिसमें स्लैब को और सरल बनाया गया है:
इससे यह साफ है कि सरकार करदाताओं को राहत देकर उनकी खर्च योग्य आय को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। लेकिन इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या यह राहत दीर्घकालिक है या सिर्फ आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए लागू की गई है?
अगर इस बजट को विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने इस बार मध्यम वर्ग को लुभाने की पूरी कोशिश की है। उदाहरण के लिए:
अगर किसी व्यक्ति की आय 12 लाख रुपये सालाना है, तो वह 80,000 रुपये तक की बचत कर सकता है।
18 लाख रुपये कमाने वाले व्यक्ति को 70,000 रुपये की कर छूट मिलेगी।
20 लाख रुपये कमाने वाले करदाता को 90,000 रुपये का फायदा होगा।
25 लाख रुपये तक की आय वालों को 1.1 लाख रुपये तक का लाभ मिलेगा।
यह बदलाव वेतनभोगी और स्वरोजगार दोनों ही वर्गों के लिए राहत भरा साबित हो सकता है।
सरकार ने इस बार वरिष्ठ नागरिकों के लिए ब्याज आय पर कर छूट की सीमा को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया है। इससे उन वरिष्ठ नागरिकों को फायदा मिलेगा जो अपनी बचत और एफडी (Fixed Deposit) पर मिलने वाले ब्याज से अपना जीवनयापन करते हैं।
इसके अलावा, किराए पर रहने वाले लोगों के लिए भी राहत दी गई है। पहले किराए पर दिए गए घरों पर 2.4 लाख रुपये की आय पर टीडीएस लागू होता था, जिसे अब 6 लाख रुपये कर दिया गया है। इससे छोटे मकान मालिकों को फायदा होगा, जिससे किराये के बाजार को भी राहत मिल सकती है।
भारत में छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में सरकार ने इस बजट में स्टार्टअप और छोटे उद्यमियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएँ की हैं,जैसे छोटे उद्यमों और स्टार्टअप्स को कर में छूट देने की योजना बढ़ाई गई है, जिससे नए व्यवसायों को प्रोत्साहन मिलेगा। छोटे उद्योगों को आसान ऋण उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने क्रेडिट गारंटी फंड को और मजबूत किया है। स्टार्टअप्स को पूंजी निवेश में छूट देने की योजना बनाई गई है, जिससे नए व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा।यह सभी कदम दर्शाते हैं कि सरकार चाहती है कि अर्थव्यवस्था का विकास जारी रहे और नए अवसर पैदा हों।हालांकि यह बजट आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सुधारों को दर्शाता है, लेकिन इसका एक राजनीतिक पहलू भी है। अगले साल लोकसभा चुनाव 2026 होने वाले हैं, और यह बजट सरकार की छवि को मजबूत करने के लिए बनाया गया लगता है।
2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब शून्य कर सीमा 2.5 लाख रुपये थी, जिसे 2019 में 5 लाख रुपये और 2023 में 7 लाख रुपये किया गया था। अब इसे बढ़ाकर 12 लाख रुपये करना सरकार की रणनीतिक चाल हो सकती है ताकि मध्यम वर्ग को अपने पाले में रखा जा सके।
इसके अलावा, सरकार ने कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास के लिए भी कई घोषणाएँ की हैं, जिससे ग्रामीण मतदाताओं को साधने की कोशिश की गई है।इस बजट में जहां मध्यम वर्ग के लिए बड़ी राहत दी गई है, वहीं कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां सुधारों की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया:सरकार ने कर छूट जरूर दी है, लेकिन महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए। बजट में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की बात कही गई है, लेकिन सरकारी और निजी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। भारत जैसे देश में स्वास्थ्य और शिक्षा सबसे जरूरी मुद्दे हैं, लेकिन इस बजट में इन दोनों क्षेत्रों को अपेक्षित प्राथमिकता नहीं दी गई।बजट 2025 को एक ऐतिहासिक बजट कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा राहत दी गई है। सरकार ने कर छूट बढ़ाकर आम आदमी की जेब में ज्यादा पैसा छोड़ने की कोशिश की है, जिससे खपत बढ़े और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले।
लेकिन, क्या यह राहत दीर्घकालिक है? यह बड़ा सवाल है। चुनावी साल में बजट हमेशा लोकलुभावन होता है, और इस बार भी यही होता दिख रहा है। यदि सरकार इन नीतियों को स्थायी बनाए रखे और महंगाई, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों पर भी उतना ही ध्यान दे, तो यह बजट वास्तव में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
अब देखना यह होगा कि सरकार इन वादों को कितनी गंभीरता से लागू करती है और क्या यह बजट केवल चुनावी राजनीति तक ही सीमित रहेगा, या वास्तव में मध्यम वर्ग को दीर्घकालिक लाभ देगा।