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Thursday, June 26, 2025

पढ़ाई की भाषा

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विजय गर्ग

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने जुलाई से शुरू होने वाले शैक्षिक वर्ष 2025-26 से बच्चों की शुरुआती शिक्षा उनकी मातृभाषा में कराने का निर्णय लिया है। प्रारंभिक शिक्षा को बुनियादी चरण माना गया है, जिसमें दूसरी कक्षा तक के बच्चे शामिल हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के लागू होने के पश्चात इस बुनियादी चरण की शुरुआत हुई है। इससे पहले की शिक्षा नीति में केंद्रीय विद्यालयों में विद्यार्थियों को कक्षा एक से पढ़ाना शुरू होता था, किंतु अब उनका सीधे पहली कक्षा में नामांकन नहीं होता। इससे पहले बच्चों को तीन वर्ष ‘प्री-प्राइमरी’ यानी पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई कराई जाती है । उसके बाद पहली कक्षा में प्रवेश मिलता है । इस तरह पांच वर्ष बुनियाद बनाने में लगते हैं, जिसमें प्री- प्राइमरी स्कूल के तीन वर्ष तथा कक्षा एक और दो के दो वर्ष । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 5 जमा 3 जमा 3 जमा 4 का प्रारूप शामिल किया गया है। दूसरी कक्षा तक पहला चरण पांच वर्ष का, तीसरी कक्षा से पांचवीं तक तीन वर्ष का दूसरा, कक्षा छह से आठ तक तीन वर्ष का तीसरा और नौवीं से बारहवीं कक्षा तक चार वर्ष का चौथा चरण है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 से पहले शिक्षा नीति- 1986 लागू थी । उसमें 10 जमा 2 जमा 3 का प्रारूप था। पहली कक्षा में सीधे प्रवेश दिए जाने का उसमें प्रावधान था । तब प्री- प्राइमरी का चरण नहीं था । जबसे विद्यालयों में इस नए चरण की शुरुआत हुई है, तब से लगभग तीन वर्ष के बच्चे भी पढ़ने के लिए विद्यालय जाने लगे हैं ।

हम जानते हैं कि ऐसे सुकोमल, मासूम और अबोध नन्हे बच्चे- बच्चियों का मन पढ़ाई में जल्दी से नहीं लगता। उनका मन घर में धमा- चौकड़ी मचाने, खेलने-कूदने, मौज- मस्ती करने में ज्यादा रमता है। कंधे पर बस्ता लटकाए विद्यालय जाते हुए उनके मन में घबराहट बनी रहती है । जब वे कक्षा में पढ़ना शुरू करते हैं और उन्हें शिक्षक उनकी मातृभाषा की जगह अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं, तब वे परेशान हो जाते हैं । जो पढ़ाया जाता है, उसे वे समझ नहीं पाते । जब उन्हें समझ ही नहीं आएगा, तो वे नया सीखेंगे भी कैसे। ऐसे में बच्चों की मनोस्थिति, उनकी सोचने-समझने व ग्रहण करने की सामर्थ्य और सीमाओं का नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पूरा ध्यान रखा गया है। उनकी पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी की जगह उनकी मातृभाषा रखने का व्यावहारिक और सराहनीय निर्णय लिया गया है ।

वर्तमान में पूरे देश में तीस हजार से अधिक विद्यालय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध हैं और इनमें से अधिकांश में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है। नन्हे बच्चों को सबसे मुश्किल अंकगणित लगता है, लेकिन जब वे अंकों की पहचान, उनकी गिनती, जोड़ना, घटाना आदि अपनी मातृभाषा में सीखेंगे – पढ़ेंगे, तब उनके मन से गणित का भय दूर हो जाएगा और उनमें गणित सीखने की रुचि जागृत होगी । राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को आठवीं कक्षा तक पढ़ाई मातृभाषा, क्षेत्रीय या राज्य भाषा में कराने पर जोर दिया गया है। साथ ही कहा गया है कि बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई का विकल्प होना चाहिए, ताकि वे अंग्रेजी भाषा के दबाव से मुक्त रह कर अपनी रुचि से पढ़ सकें ।

विश्व में जितनी भी भाषाएं हैं, वे मातृभाषा भी हैं। मां की बराबरी मां के अलावा कोई नहीं कर सकता, वैसे ही मातृभाषा की बराबरी भी कोई दूसरी भाषा नहीं कर सकती । केंद्रीय विद्यालयों में आरंभिक पढ़ाई मातृभाषा में कराए जाने का निर्णय निश्चित रूप से विद्यार्थियों के शैक्षणिक विकास के लिए लाभकारी तथा क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाला है। मगर अंग्रेजी मोह में डूबे अभिभावक रुकावट डाल सकते हैं, इसलिए उन्हें समझाना जरूरी है। नगरों – महानगरों से लेकर गांव-ढाणियों तक अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल फैल गए हैं। अधिकतर अभिभावकों की यह मानसिकता बनी हुई है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ा कर ही वे अपने अधूरे सपने बच्चों के माध्यम पूरे कर सकेंगे । हिंदी या मातृभाषा के माध्यम से पढ़ेंगे तो वे पिछड़ जाएंगे।

अभिभावकों को समझना होगा कि आरंभिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने से बच्चे सहजता से सीख लेंगे। पढ़ते, लिखते और सीखते उन्हें आनंद की अनुभूति होगी, मानसिक परेशानी नहीं। दरअसल, अंग्रेजी उनके लिए पराई भाषा है, मातृभाषा अपनी भाषा । यह ठीक है कि बच्चों को अंग्रेजी ही क्यों, अन्य भाषाएं भी सीखने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जितनी भाषाओं से उनका सरोकार बनेगा, उतने ही वे मानसिक और शैक्षणिक स्तर पर समृद्ध होंगे। पर, मातृभाषा में आरंभिक पढ़ाई कराने का तात्पर्य अंग्रेजी भाषा की उपेक्षा करना नहीं, वरन बच्चों में पढ़ने के प्रति रुचि पैदा करना है। अभिभावकों को मातृभाषा में पढ़ाई के महत्त्व को लेकर जागरूक करने के साथ ही अंग्रेजी माध्यम के निजी विद्यालयों में आरंभिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। तभी बच्चे शुरुआती पढ़ाई अपनी मातृभाषा में कर सकेंगे और आगे चलकर अपने भविष्य को संवार सकेंगे ।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब

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