शरद कटियार
हर वर्ष 21 जून को समस्त विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। यह दिन न केवल भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता की महत्ता को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करता है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता को संतुलित, स्वस्थ और सजग जीवन की राह भी दिखाता है। इस वर्ष का योग दिवस और भी अधिक ऐतिहासिक बन गया जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन में 21 हजार से अधिक लोगों के साथ योग कर समाज को एक प्रेरक संदेश दिया।
योग भारत की हजारों वर्षों पुरानी जीवनशैली और चिंतनधारा का अभिन्न अंग रहा है। यह केवल एक व्यायाम पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। उपनिषदों, महाभारत और पतंजलि योगसूत्र जैसे ग्रंथों में वर्णित योग दर्शन, आत्मा के परमात्मा से मिलन की प्रक्रिया का प्रतिपादन करता है।
जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा और 177 देशों ने उसका समर्थन किया, तो यह भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की जीत थी।
गोरखपुर का महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन, न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है, बल्कि योग के प्रचार-प्रसार के लिए भी एक सशक्त मंच बन चुका है। इस बार के योग दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 21 हजार लोगों ने सामूहिक रूप से योग किया, जो पूर्वांचल की आध्यात्मिक चेतना और सामाजिक सहभागिता का प्रमाण है।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रातः 6:30 बजे वैदिक मंत्रों के उच्चारण और सूर्य नमस्कार से हुई। ताड़ासन, त्रिकोणासन, वज्रासन, भुजंगासन, प्राणायाम, और ध्यान जैसी क्रियाओं ने हजारों उपस्थितजनों को न केवल शारीरिक ऊर्जा दी, बल्कि मानसिक स्थिरता का भी अनुभव कराया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं योग के प्रबल साधक हैं। वे योग को केवल स्वास्थ्य का नहीं, राष्ट्र निर्माण का भी माध्यम मानते हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहा,
“योग ने पूरी दुनिया को भारत की आध्यात्मिक शक्ति से परिचित कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से 2015 से संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया और आज यह 180 से अधिक देशों में मनाया जाता है।”
मुख्यमंत्री का यह कथन सत्य भी है। आज विश्व के कोने-कोने में लोग योग से शारीरिक और मानसिक आरोग्यता प्राप्त कर रहे हैं।
इस विशाल आयोजन की सफलता केवल राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके पीछे एक विस्तृत प्रशासनिक, स्वास्थ्य और सुरक्षा व्यवस्था कार्यरत रही। इन सबने कार्यक्रम को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आधुनिक विज्ञान ने भी योग की उपयोगिता को प्रमाणित किया है। योग न केवल रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग और अवसाद जैसी बीमारियों से बचाव करता है, बल्कि इसकी नियमित साधना से एकाग्रता, स्मृति और मानसिक संतुलन में वृद्धि होती है।
सामाजिक स्तर पर योग लोगों को जोड़ता है। वर्ग, जाति, धर्म, लिंग जैसी सीमाओं को भुलाकर योग एक समरसता और समभाव का संदेश देता है। गोरखपुर में स्कूली बच्चे, बुजुर्ग, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी सभी एक पंक्ति में बैठकर योग करते देखे गए। यही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने योग को विद्यालयों और सरकारी संस्थानों में अनिवार्य रूप से शामिल करने की योजना का संकेत देकर एक दूरदर्शी कदम उठाया है। बच्चों को प्रारंभिक अवस्था से योग की शिक्षा देना उनके शारीरिक विकास के साथ-साथ नैतिक और मानसिक मजबूती का भी आधार बनेगा।
आज योग एक बड़ा वैश्विक उद्योग बन चुका है। भारत की पारंपरिक योग पद्धति के अनुसार प्रशिक्षित योग गुरुओं की मांग विदेशों में लगातार बढ़ रही है। यदि सरकार नियोजित तरीके से योग पर्यटन, योग चिकित्सा और योग प्रशिक्षण को बढ़ावा दे तो यह देश के लिए एक बड़ा रोजगार का स्रोत बन सकता है।
योग अब केवल एक दिवस तक सीमित आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली साधना और चेतना का आंदोलन बन चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश न केवल योग का सांस्कृतिक केंद्र बनता जा रहा है, बल्कि इसे समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने का अभियान भी बन रहा है।
यदि प्रत्येक नागरिक दिन में केवल 30 मिनट योग को समर्पित करे, तो न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि एक समर्थ, स्वस्थ और संतुलित भारत का निर्माण होगा।