विजय गर्ग
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हवा में भी डीएनए मौजूद होता है, जो हमें महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है। आयरलैंड की राजधानी डबलिन में किए गए एक अध्ययन में विज्ञानियों ने पौधों, जानवरों और सूक्ष्म जीवों की आनुवंशिक सामग्री को शहर के वातावरण में बहते हुए पाया। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने शहर की हवा में अवैध नशीली दवाओं के निशान भी खोजे । आसपास के वातावरण में मौजूद आनुवंशिक सामग्री को पर्यावरणीय डीएनए या एनवायरनमेंटल डीएनए (डीएनए) कहा जाता है। हवा में मौजूद डीएनए में जीवन के सुराग छिपे हैं।
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में वन्यजीव रोग विज्ञान के प्रोफेसर डेविड डफी पिछले काफी समय से ईडीएनए का अध्ययन कर रहे हैं। उनकी टीम ने सबसे पहले पानी, रेत और मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण करके समुद्री कछुओं की आबादी का अध्ययन करने के लिए ईडीएनए उपकरण विकसित किए थे।
डफी ने कहा कि पर्यावरणीय डीएनए में उपलब्ध जानकारी के स्तर को देखते हुए हमने मनुष्यों, वन्यजीवों और अन्य प्रजातियों में इसके संभावित अनुप्रयोगों के बारे में विचार करना शुरू कर दिया है। फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में स्थित एक प्रयोगशाला ने हवा सहित लगभग हर वातावरण से डीएनए निकालने और उसका विश्लेषण करने के अपने तरीकों को व्यापक बनाया है। यह डीएनए केवल सतह पर नहीं रहता, बल्कि हवा में भी स्वतंत्र रूप से मौजूद रहता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि घंटों या कई दिनों तक चलने वाले साधारण एयर फिल्टर बड़ी मात्रा में सूचनात्मक आनुवंशिक सामग्री एकत्र कर सकते हैं। इस विधि से एक क्षेत्र में सभी प्रजातियों का एक साथ अध्ययन किया जा सकता है। डफी की प्रयोगशाला ने डबलिन में हवाई डीएनए संग्रह उपकरण स्थापित किए।
उपकरण के फिल्टर ने शहर की हवा में तैर रहे सैकड़ों मानव रोगाणुओं के निशान एकत्र किए, जिनमें वायरस और बैक्टीरिया शामिल हैं। इस तरह की निगरानी बीमारी के प्रकोप का जल्दी पता लगाने या आबादी के माध्यम से फैलने वाले संक्रमण को समझने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
इस तरीके से मौजूदा तकनीकों की तुलना में पर्यावरणीय एलर्जी का भी अधिक सटीक रूप से पता लगाया जा सकता है। एलर्जी का पता लगाने की क्षमता डाक्टरों द्वारा रोगियों को सलाह देने के तरीके या सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियों द्वारा चेतावनी जारी करने के तरीके को बदल सकती है। डफी की टीम ने फ्लोरिडा के जंगलों में भी अपनी विधि का परीक्षण किया। वहां एयर फिल्टर ने छोटे जीव-जंतुओं के डीएनए के नमूने एकत्र किए। खास बात यह थी कि डीएनए ने न केवल इन जानवरों की उपस्थिति का पता लगाया, बल्कि यह भी बताया कि वे कहां से आए थे। विज्ञानियों का कहना है कि इस तरह की सटीकता से जानवरों के संरक्षण के लिए बेहतर उपाय खोजने में मदद मिल सकती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब