पीलीभीत। धार्मिक स्थलों की आत्मिक गरिमा तब और अधिक निखर जाती है, जब वहां आस्था के साथ-साथ जनसेवा और आत्मीय संवाद का भाव भी जुड़ता है। बीते दिन खमरिया पुल स्थित श्रीपरमअक्रियधाम में कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला, जब बरखेड़ा विधायक एवं महामंडलेश्वर महाराज ने मंदिर प्रांगण में न केवल दर्शन-पूजन किया, बल्कि आम भक्तों से आत्मीय संवाद भी स्थापित किया। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि जनप्रतिनिधि और आमजन के बीच सेतु बनती सामाजिक सहभागिता का उदाहरण भी बना।
अलखेश्वरनाथ महादेव मंदिर में महाराज द्वारा किए गए पूजन में क्षेत्र की समृद्धि, विकास और शांति के लिए की गई प्रार्थना, एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि की उस सोच को दर्शाती है, जो केवल सत्ता तक सीमित नहीं, बल्कि अध्यात्म और जनकल्याण की गहराई से जुड़ी हुई है। यह एक ऐसा संतुलन है, जो राजनीति को सेवा और संवाद की नई दिशा देता है।
आयोजन में भाग लेने आए भक्तों के साथ प्रसाद-भोजन करना, उनके घर-परिवार की कुशलक्षेम पूछना, और फिर बैठाकर सभी को प्रसाद वितरित करना – यह सब केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक जनसंवेदनशीलता की मिसाल है। ऐसे आयोजनों में जनप्रतिनिधियों की भागीदारी न केवल सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देती है, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी दृढ़ करती है।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि श्रीपरमअक्रियधाम जैसे धार्मिक स्थल केवल भक्ति का केंद्र नहीं हैं, बल्कि क्षेत्रीय चेतना और सामाजिक समरसता के केंद्र भी बनते जा रहे हैं। इन स्थलों पर जनप्रतिनिधियों की सहभागिता से यह संदेश भी जाता है कि धर्म और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, न कि विरोधाभासी।
आज की राजनीति जहां प्रायः वाद-विवाद, टकराव और प्रचार तक सिमटी हुई दिखाई देती है, वहीं विधायक महाराज की यह पहल एक अलग ही दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है—जहां सेवा, संवाद और संवेदना को प्राथमिकता मिलती है। इससे न केवल जनता से प्रत्यक्ष जुड़ाव होता है, बल्कि स्थानीय समस्याओं और जनभावनाओं को समझने का अवसर भी मिलता है।
श्रीपरमअक्रियधाम का यह आयोजन केवल एक धार्मिक उत्सव न होकर, जनता और जनप्रतिनिधि के बीच आत्मीयता और उत्तरदायित्व का प्रतीक बन गया है। ऐसे आयोजनों से क्षेत्रीय एकता, सांस्कृतिक चेतना और सकारात्मक नेतृत्व को बढ़ावा मिलता है, जिसकी आज न केवल आवश्यकता है, बल्कि अपेक्षा भी।