सगे चाचा कौशल किशोर को चाची सहित मैनपुरी के बेबर में 16 गोलियों से भून डाला था, इंस्पेक्टर राम निवास हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा पाकर मथुरा जेल में है बंद, पुलिस ने 2005 के मामले में फिर शुरू की जांच, चचेरी बहन ने दर्ज कराया था मुकदमा
यूथ इण्डिया (शरद कटियार)
फर्रूखाबाद। उत्तर प्रदेश का फर्रुखाबाद जिला पिछले तीन दशकों से अपराध की आंधी में झूलता रहा है। इस अंधेरे साम्राज्य का बेताज बादशाह कोई और नहीं बल्कि कुख्यात माफिया अनुपम दुबे है। अपने भाइयों के साथ मिलकर उसने फर्रुखाबाद और आसपास के इलाकों में ऐसा आतंक फैलाया कि लोग उसके नाम से ही कांपने लगे। हत्या, रंगदारी, लूट, सरकारी ठेकों पर कब्जा और राजनैतिक साजिशें—यह सब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुके थे।
2005 का वो काला दिन जब गोलियों से दहला मैनपुरी
6 अगस्त 2005 की शाम, बेवर कस्बे की गलियां गोलियों की आवाज़ से गूंज उठीं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, अनुपम दुबे और उसके गुर्गों ने अपने ही सगे चाचा-चाची कौशल किशोर दुबे और उनकी पत्नी कृष्णा देवी पर ताबड़तोड़ 16 गोलियां बरसाईं। यह हमला इतने सुनियोजित तरीके से किया गया था कि किसी को बचने का मौका तक नहीं मिला। घटना के बाद इलाके में सनसनी फैल गई, लोग घरों में दुबक गए और पुलिस भी सहम गई थी। इस मामले में अनुपम की चचेरी बहन और मृतक दंपत्ति की पुत्री राधिका दुबे ने आरोप लगाया था कि गत वर्ष उसके चाचा लक्ष्मी नारायण की हत्या कर दी गई थी। जिसमें उसके पिता कौशल किशोर दुबे को अभियुक्त बनाया गया था। उसके पिता ने उच्च न्यायालय से गिरफ्तारी से बचने के लिए स्टे प्राप्त कर लिया था। उसके ताऊ महेश दुबे के पुत्र अनुपम दुबे और अनुराग दुबे डब्बन ने उसके पिता को चाचा की हत्या में झूठा फंसाया था। उच्च न्यायालय से स्टे ले आने के बाद से ही यह लोग पिता से रंजिश मानने लगे थे। घटना वाली शांम माता पिता भाई शिवम व प्रियंका नबीगंज में सर्वेश के मकान पर गये थे। यह सभी लोग घर के बाहर बैठे थे। तभी उसका भाई डब्बन साथी सरोज शर्मा पुत्र ओम प्रकाश निवासी सनोज थाना मोहम्मदाबाद, बॉबी जाटव निवासी कर्नलगंज और निजी अंगरक्षक लालू व नरेन्द्र पुत्रगण जितेन्द्र पाण्डेय हाल निवासी दाल मंडी फतेहगढ़ बंदूकों व रायफलों से लैस होकर आये और गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इसमें उसके पिता की मौके पर ही मौत हो गई। मां कृष्णा देवी को मैनपुरी जिला अस्पताल में मृत घोषित किया गया।
यह कोई पहला मामला नहीं था—अनुपम का आपराधिक इतिहास पहले से ही लहूलुहान था।
थर्रा उठा था मैनपुरी और फर्रूखाबाद
6 अगस्त 2005 की वह शाम दहलाने वाली थी। दोनो जिला थर्रा गये थे, उस वक्त मैनपुरी के एसपी सत्यनारायण, एएसपी एमपी वर्मा, सीओ भोगांव श्रवण कुमार भी हस्तप्रत थे।
इस जघन्य हत्या के मामले में हाल ही में मैनपुरी में दोबारा जांच के आदेश हुए हैं। वर्षों बाद जब पीडि़त परिवार ने न्याय की गुहार लगाई, तब जाकर पुलिस ने मामले की दोबारा जांच शुरू की। यह दर्शाता है कि किस तरह अपराध और राजनीति की साठगांठ के चलते वर्षों तक यह केस दबा रहा।
चचेरे भाई सीतूू को मिली सुरक्षा
चाचा चाची की हत्या के मामले में वर्षो वाद दोबारा हुए जांच के आदेश के बाद माफिया अनुपम दुबे के चचेरे भाई सीतू दुबे को फतेहगढ़ पुलिस ने एक दरोगा और चार सिपाही की बड़ी सुरक्षा का कबच दिया है। जिला प्रशासन इस मामले में पूरी निष्पक्षता के साथ काम कर रहा है।
इंस्पेक्टर रामनिवास यादव की हत्या—अनुपम की दहशत का सबसे बड़ा उदाहरण
1996 में फर्रुखाबाद के कसरट्टा मोहल्ले में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे प्रदेश में खलबली मचा दी। इंस्पेक्टर रामनिवास यादव, जो अपनी निडर छवि के लिए जाने जाते थे, उन्हें सरेआम गोलियों से भून दिया गया। पुलिस पर हमले की यह घटना उत्तर प्रदेश के आपराधिक इतिहास में दर्ज हो गई। इसके बाद भी अनुपम का आतंक कम नहीं हुआ, बल्कि वह सत्ता और अपराध के गठजोड़ का जीता-जागता उदाहरण बनता चला गया। 27 साल बाद, 2023 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन इतने लंबे समय तक उसने राजनीति और प्रशासनिक लूपहोल्स का फायदा उठाकर अपना दबदबा बनाए रखा।
अनुपम दुबे का आपराधिक इतिहास—डर का दूसरा नाम
अनुपम दुबे के खिलाफ कुल 82 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, हत्या के प्रयास, फिरौती, अवैध हथियार रखने और सरकारी टेंडरों में धांधली जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इनमें से 22 मामले हत्या और हत्या के प्रयास से जुड़े हैं, जबकि 12 मामले रंगदारी और जमीन कब्जाने के हैं। वर्ष 2000 से 2015 के बीच उसने प्रशासन और पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए राजनीतिक ताकत भी हासिल कर ली।
दुबे बंधुओं का क्राइम सिंडिकेट
अनुपम दुबे अकेला नहीं था। उसके तीन भाई—अनुराग, अमित और अभिषेक—भी अपराध की दुनिया में उसी की तरह कुख्यात रहे।
अनुराग दुबे (डब्बन)- जमीन कब्जाने और धोखाधड़ी के मामलों में फरार, सुप्रीम कोर्ट तक उसकी जमानत याचिका पहुंच चुकी है।
अमित दुबे (बब्बन)- मोहम्मदाबाद का पूर्व ब्लॉक प्रमुख, जो फिलहाल हरदोई जेल में बंद है।
अभिषेक दुबे (जीतू)- कई आपराधिक मामलों में वांछित और अभी भी फरार।
इन चारों भाइयों ने मिलकर पुलिस, प्रशासन और राजनीति में अपनी पकड़ बना रखी थी। इनके इशारे पर सरकारी ठेके, भू-माफियागिरी, सुपारी किलिंग और रंगदारी वसूली होती थी।
कानूनी शिकंजा—113 करोड़ की संपत्ति जब्त, गैंग का खात्मा?
हाल के वर्षों में प्रशासन ने इस गैंग पर नकेल कसने के लिए कड़े कदम उठाए। पुलिस ने अनुपम की 113 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति जब्त कर ली, जिसमें कई होटल, फार्महाउस और व्यापारिक प्रतिष्ठान शामिल थे। इसके अलावा, 27 सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया और 34 बैंक खातों को फ्रीज किया गया।
अनुपम दुबे का नेटवर्क और राजनीतिक पकड़
अनुपम दुबे का नेटवर्क सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं था, बल्कि उसका प्रभाव राजनीति में भी मजबूत था। उसने तीन बार जिला पंचायत चुनाव लड़ा, जिसमें एक बार विजयी भी रहा। उसकी पहुंच कई बड़े राजनेताओं तक थी, जिससे उसे पुलिस और प्रशासन में संरक्षण मिलता रहा। सूत्रों के अनुसार, 2017 से पहले की सरकारों में उसे खुलेआम संरक्षण मिला था और उसकी अवैध गतिविधियों पर कार्रवाई करने से पुलिस भी बचती थी।
अनुपम दुबे और उसके भाइयों का आतंक दशकों तक इस क्षेत्र के माथे पर एक कलंक की तरह रहा है। लेकिन अब जब प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है, तो फर्रुखाबाद के लोग एक नए भविष्य की उम्मीद कर सकते हैं। क्या यह शहर अब अपराधमुक्त हो पाएगा? या फिर एक नए माफिया की एंट्री इस जगह को फिर से अपराध की दलदल में धकेल देगी?अब देखना यह है कि कानून की यह कार्रवाई कितनी दूर तक जाती है और क्या फर्रुखाबाद सच में भयमुक्त हो पाएगा या नहीं।