मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar ) अपने रूटीन हेल्थ चेकअप के बाद दिल्ली से पटना लौट आए हैं, लेकिन उनका तय कार्यक्रम से एक दिन पहले लौटना और दिल्ली में हुए घटनाक्रम बिहार की राजनीति में नए कयासों को जन्म दे रहे हैं। बिहार के सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि नीतीश कुमार के मन में आखिर क्या चल रहा है। क्या यह किसी बड़े सियासी फैसले की भूमिका है या फिर महज एक सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम?
नीतीश कुमार को उनकी राजनीतिक शैली और चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाना जाता है। चाहे एनडीए से महागठबंधन में जाना हो या फिर महागठबंधन से वापस एनडीए में लौटना, उनके हर कदम ने राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचाई है। ऐसे में दिल्ली दौरे के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात न करना और तय कार्यक्रम से पहले पटना लौट आना कई सवाल खड़े कर रहा है।
नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात का कार्यक्रम तय था। बताया गया कि यह मुलाकात सोमवार शाम 4:30 बजे होनी थी। लेकिन, मुलाकात रद्द हो गई और सीएम सोमवार देर शाम ही पटना लौट आए।
पटना लौटते ही नीतीश कुमार सबसे पहले राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अरलेकर के विदाई समारोह में शामिल हुए। इस कार्यक्रम को उनकी अचानक वापसी का कारण बताया जा रहा है।
बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के अभ्यर्थियों का मुद्दा बिहार की राजनीति में केंद्र बिंदु बना हुआ है। प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव और पप्पू यादव जैसे नेताओं ने इस मामले में नीतीश सरकार को अल्टीमेटम दिया है।
नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे और पटना लौटने के घटनाक्रम को लेकर अलग-अलग तरह की चर्चाएं हो रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी का मानना है कि यह एक “पॉलिटिकल शिगूफा” है, जिसे जानबूझकर फैलाया गया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह कहीं नहीं जाने वाले हैं।
दूसरी ओर, वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का कहना है कि नीतीश कुमार के हालिया फैसले चौंकाने वाले हैं। उनका दिल्ली जाना और किसी एनडीए नेता से न मिलना कई सवाल खड़े करता है। भेलारी ने यह भी जोड़ा कि नीतीश कुमार का रिकॉर्ड दिखाता है कि वह अप्रत्याशित फैसले लेने में माहिर हैं।
नीतीश कुमार को भारतीय राजनीति में एक रणनीतिकार और समीकरणों के मास्टरमाइंड के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई बार ऐसे फैसले लिए हैं, जिनसे न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति प्रभावित हुई है।
2005: पहली बार एनडीए की सरकार बनाकर लालू यादव के 15 वर्षों के शासन को चुनौती दी।
2015: महागठबंधन का नेतृत्व कर भाजपा को हराया।
2017: अचानक महागठबंधन छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई।
2022: भाजपा से फिर दूरी बनाकर महागठबंधन में लौटे।
यह साफ दिखाता है कि नीतीश कुमार के फैसले अक्सर अप्रत्याशित होते हैं, जो उन्हें “राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक” के रूप में पहचान दिलाते हैं।
नीतीश कुमार के पटना लौटने के बाद सबसे ज्यादा चर्चाएं बीपीएससी अभ्यर्थियों को लेकर हो रही हैं। बिहार में करीब 5 लाख अभ्यर्थी बीपीएससी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इनमें से 20,000 से अधिक छात्रों ने पटना में प्रदर्शन किया है।
सरकार पर आरोप:
परीक्षा प्रक्रिया में देरी।
परिणामों में गड़बड़ी।
प्रशासनिक उदासीनता।
नीतीश कुमार ने इस मामले पर अब तक कोई ठोस बयान नहीं दिया है, लेकिन उम्मीद है कि वह जल्द ही छात्रों से बातचीत करेंगे।
नीतीश कुमार और एनडीए के बीच संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 2022 में महागठबंधन में लौटने के बाद से भाजपा और जदयू के रिश्ते में तल्खी बढ़ी है।
दिल्ली दौरे के दौरान जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात न करना इन अटकलों को हवा देता है कि नीतीश कुमार भाजपा से नाराज हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने इन चर्चाओं को खारिज किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय में
उनकी प्राथमिकता बिहार में स्थिरता बनाए रखना है। नीतीश कुमार के हालिया कदम चौंकाने वाले हैं नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा सियासी से ज्यादा प्रशासनिक था। वह केंद्र सरकार से फंडिंग को लेकर दबाव बना सकते हैं।
शराबबंदी कानून: 2016 में लागू।
60% महिलाएं इस कानून के पक्ष में।
बिहार में बेरोजगारी दर: 10.6% (राष्ट्रीय औसत से अधिक)।
नीतीश सरकार का दावा: 20 लाख रोजगार सृजित किए गए। पंचायती राज संस्थाओं में 50% आरक्षण। छात्राओं के लिए साइकिल योजना का लाभ।
नीतीश कुमार के अगले कदम में
जल्द ही सरकार छात्रों के साथ बातचीत कर सकती है।
नीतीश कुमार फिलहाल भाजपा से दूरी बनाए रख सकते हैं, लेकिन भविष्य की रणनीति पर नजर रहेगी।
तेजस्वी यादव के साथ रिश्ते को मजबूत करना उनकी प्राथमिकता होगी।
नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा और पटना लौटने के घटनाक्रम ने बिहार की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। हालांकि, उनके अगले कदम को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। बीपीएससी छात्रों का मुद्दा, एनडीए से रिश्ते, और महागठबंधन में स्थिति जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकताओं में रहेंगे।
नीतीश कुमार की राजनीतिक शैली को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि उनका अगला कदम क्या होगा। लेकिन यह साफ है कि उनकी हर चाल बिहार की राजनीति को नई दिशा देने की क्षमता रखती है।