यूथ इंडिया संवाददाता
कंपिल। ऐतिहासिक एवं पौराणिक धर्मस्थली कंपिल की रामलीला में अहंकार और बुराई का प्रतीक रावण मारा गया। अनाचार पर सदाचार की, बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। रावण वध के पहले लक्ष्मण को शक्ति लगने, लक्ष्मण मेघनाद युद्ध, कुंभकर्ण और मेघनाद वध के बाद राम रावण युद्ध और अंत में रावण वध का मंचन किया गया।
नगर के बाई पास मार्ग पर गौशाला के निकट रामलीला कमेटी कंपिल की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शनिवार को राम-रावण युद्ध का मंचन हुआ। कुंभकर्ण और मेघनाद वध के बाद रावण युद्ध के लिए आता है। राम और रावण के बीच घोर युद्ध होता है। राम के बाण से रावण के सिर और भुजाएं कट जाती हैं, लेकिन तुरंत ही दूसरे निकल आते हैं। तब विभीषण राम को रावण वध का उपाय बताते हैं। विभीषण बताते हैं कि रावण की नाभि में अमृत है। इस दौरान कपटी रावण के कई रूप देखने को मिले। लंबे चले युद्ध में भगवान राम ने आखिरकार रावण का वध कर डाला। इसके बाद आतिशबाजी के साथ रावण एवं कुंभकरण के विशाल पुतलों का दहन किया गया। तत्पश्चात विभीषण का राज्यभिषेक और भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के अयोध्या वापसी दृश्य का मंचन हुआ। रामलीला तथा रावण का पुतला दहन देखने के लिए दर्शकों की खूब भीड़ जुटी। इस दौरान सीओ जय सिंह परिहार , थाना प्रभारी विश्वनाथ आर्या पुलिस बल के साथ मौजूद रहे। कमेटी अध्यक्ष बबलू शुक्ला व सदस्य नन्हे मिश्रा, राजन मिश्रा, मोनू मिश्रा, महावीर यादव , नन्हे राठौर, सुरेन्द्र सैनी , ओमशक्ति सैनी, महेश शाक्य , सुधीर शाक्य ने सहयोग किया।
घर क्यों लायी जाती है रावण के पुतले की जली लकडिय़ा
पौराणिक किवदंतियों के अनुसार श्रीराम सेना विजय के प्रतीक के रूप में लंका की राख अपने साथ लाई थी, यही कारण है कि आज भी रावण के पुतले की अस्थियों (लकडिय़ों) को घर लाया जाता है। साथ ही यह मान्यता भी प्रचलित है कि धनपति कुबेर ने जिस स्वर्णलंका का निर्माण किया था उसका राख घर की तिजोरी में रखने से स्वयं कुबेर का वास होता है। इसलिए घर में सुख-समृद्धि के लिए आज तक रावण का पुतला जलने के बाद लकडिय़ों को घर लाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो जाता है।