शरद कटियार
1976 और 2005 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड की समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से एनडीए सरकार ने मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड संशोधन बिल संसद में पेश किया है। इस बिल को लेकर देश की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। एनडीए सरकार वक़्फ़ बोर्ड के कमजोर प्रबंधन और भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए वक़्फ़ एक्ट की धारा 14 और 19 में संशोधन की कोशिश कर रही है, जबकि विपक्ष इस बिल को वक़्फ़ संपत्तियों को हड़पने की साजिश के रूप में देख रहा है। इस विवाद के बीच, सरकार ने बढ़ते विरोध के कारण बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का फैसला किया है। अब देखना यह होगा कि जेपीसी इस विवादास्पद बिल के बारे में क्या निर्णय लेती है।
जेपीसी कमेटी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से आठ, कांग्रेस से तीन, और समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड समेत अन्य विपक्षी पार्टियों से एक-एक सदस्य शामिल किए गए हैं।
सरकार का पक्ष
एनडीए सरकार वक़्फ़ बोर्ड पर मौजूदा कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए नए संशोधित बिल को लागू करने की पुरजोर कोशिश कर रही है। सरकार ने तिरुपपुर में 216 लोगों की 93 संपत्तियों, तिरुचिरापल्ली में 1500 साल पुराने मंदिर, तिरुपेंथूरेई मंदिर की 369 एकड़ जमीन और सूरत म्युनिसिपल काउंसिल मुख्यालय पर वक़्फ़ बोर्ड के दावों को सामने रखते हुए वक़्फ़ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं।
इसके साथ ही, सरकार का तर्क है कि मौजूदा वक़्फ़ बोर्ड में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता, जबकि नए बिल में दो महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य की गई है। सरकार का कहना है कि वक़्फ़ बोर्ड की संपत्तियों पर अनियमितता और अवैध खरीद-बिक्री के कई मामले सामने आए हैं, जिनका समाधान आज तक नहीं हुआ है। सरकार ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वक़्फ़ की संपत्तियों का प्रबंधन ठीक से नहीं हुआ, जिसके कारण गरीब और पिछड़े मुस्लिम समाज को उनके अधिकार से वंचित होना पड़ा।
सच्चर कमेटी ने यह भी पाया कि वक़्फ़ की 14.9 लाख संपत्तियों से केवल 162 करोड़ रुपये की आय हो रही है, जो कि बहुत कम है। इसके अलावा, सरकार का कहना है कि सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और स्टेट वक़्फ़ बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है, और वक़्फ़ बोर्ड के प्रतिनिधियों का दायरा भी बढ़ाना चाहिए।
मौजूदा वक़्फ़ बोर्ड की व्यवस्था
वर्तमान में वक़्फ़ बोर्ड में महिलाओं की कोई भागीदारी नहीं है। प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी वक़्फ़ कमिश्नर होते हैं, और हर राज्य में राज्य वक़्फ़ बोर्ड का गठन होता है। वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष का चुनाव हर तीन साल में होता है, जिसमें दो सांसद और दो विधायक सरकार के नामित सदस्य होते हैं। सरकारी अधिकारी वक़्फ़ बोर्ड के सीईओ के रूप में कार्य करते हैं।
मौजूदा वक़्फ़ बोर्ड के अधिकार
वक़्फ़ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर दावा करने का असीमित अधिकार है। विवाद की स्थिति में दूसरे पक्ष को अपना अधिकार साबित करना होता है, और वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
नए बिल में प्रस्तावित संशोधन
नए संशोधित बिल में वक़्फ़ की संपत्तियों का सरकारी मूल्यांकन और राजस्व की जांच, सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और स्टेट वक़्फ़ बोर्ड में दो महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी, वक़्फ़ एक्ट की धारा 14 और 19 में बदलाव, और वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील का प्रावधान शामिल हैं।
इस बिल को लेकर देशभर में सियासत गरमाई हुई है। सत्ता और विपक्ष के बीच यह संघर्ष केवल कानून और व्यवस्थाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मुस्लिम समाज के हकों और उनके भविष्य को लेकर भी एक बड़ी बहस का मुद्दा बन गया है। अब इस बिल का क्या हश्र होगा, यह आने वाले समय में जेपीसी की सिफारिशों और संसद की कार्यवाही पर निर्भर करेगा।