यूथ इंडिया संवाददाता
फर्रुखाबाद। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत चल रहे विकास कार्यों में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका सामने आई है। ग्राम सभाओं में प्रधानों की आईडी के जरिए जनपद के हर ब्लॉक की सूची का सत्यापन किया जा रहा है, जिससे मनरेगा के तहत किए गए कामों की वास्तविकता का पता लगाया जा सके।
हाल ही में ब्लॉक स्तर पर सत्यापन का काम शुरू किया गया है, जहां प्रधानों, सचिवों और खंड विकास अधिकारियों की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सत्यापन के दौरान पता चला कि कई जगहों पर कागजों पर ही काम दिखाकर मजदूरी और सामग्री का भुगतान कर दिया गया है, जबकि जमीनी हकीकत में वह कार्य अधूरा या बिलकुल भी नहीं हुआ है।
रोड़ों का काम अधूरा: मनरेगा के तहत सडक़ों पर पड़े रोड़ों का सत्यापन किया गया तो 50% से अधिक मामलों में रोड़ अधूरे पड़े हैं, जबकि भुगतान पूरा हो चुका है।
फर्जी मजदूरों के नाम: कई जगहों पर फर्जी मजदूरों के नाम पर भुगतान किया गया है। यहां तक कि एक ही परिवार के सभी सदस्यों के नाम मजदूरी में जोड़े गए हैं, जो पूरी तरह से अवैध है। सामग्री में गड़बड़ी: निर्माण कार्यों के लिए सामग्री की आपूर्ति में भी कम गुणवत्ता और अधिक कीमत दिखाकर भ्रष्टाचार किया गया है।ग्राम प्रधान और सचिवों की मिलीभगत: प्रारंभिक जांच में यह भी संकेत मिले हैं कि ग्राम प्रधान और सचिवों की मिलीभगत से यह अनियमितताएं हो रही हैं।
200 से अधिक ग्राम प्रधानों पर गड़बड़ी के आरोप हैं। जिले के सभी खंड विकास अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है।
इस सत्यापन प्रक्रिया के बाद जिला प्रशासन ने दोषी प्रधानों, सचिवों और खंड विकास अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। प्रशासन का कहना है कि भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि को बख्शा नहीं जाएगा, और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।
जनपद के कई क्षेत्रों में ग्रामीणों ने भी इन गड़बडिय़ों की शिकायत की थी, जिससे इस व्यापक जांच की शुरुआत की गई। मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) ने बताया कि यह अभियान अब और भी गंभीरता से चलाया जाएगा, ताकि मनरेगा जैसी योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।
यह सत्यापन प्रक्रिया अगर ईमानदारी से पूरी की गई तो इससे ग्राम पंचायतों में पारदर्शिता आएगी और गांवों का वास्तविक विकास संभव हो पाएगा।