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Saturday, July 12, 2025

भारतीय सेना और IIT कानपुर का संयुक्त प्रयास: हिमस्खलन में दबे जवानों को बचाएगी नई स्वचालित प्रणाली

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– AAVDS तकनीक से बढ़ेगी जवानों की जान बचाने की संभावना, आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम

लखनऊ/कानपुर (यूथ इंडिया डेस्क)| भारतीय सेना और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर ने स्वदेशी तकनीक आधारित एक नई स्वचालित प्रणाली विकसित करने की दिशा में हाथ मिलाया है। यह प्रणाली हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में दबे जवानों की तत्काल पहचान और बचाव में क्रांतिकारी भूमिका निभाएगी।

11 जुलाई को भारतीय सेना की सूर्या कमान और IIT कानपुर के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके तहत स्वचालित हिमस्खलन पीड़ित पहचान प्रणाली (AAVDS) का विकास किया जाएगा। इस पहल का नेतृत्व लखनऊ स्थित सूर्या कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता के मार्गदर्शन में किया गया।

कैसे काम करेगी AAVDS प्रणाली?

AAVDS तकनीक में एक विशेष प्रकाशमान द्रव (illuminating fluid) का प्रयोग होगा, जिसे सैनिक द्वारा पहने गए एक छोटे उपकरण के माध्यम से सक्रिय किया जाएगा। यह द्रव बर्फ में दबे सैनिक के सटीक स्थान का पता लगाने में मदद करेगा, जिससे राहत और बचाव कार्यों की गति कई गुना तेज हो सकेगी।

इस परियोजना की प्रगति और निगरानी मुख्यालय मध्य कमान की एक आयुध रखरखाव कंपनी द्वारा की जाएगी, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल पीयूष धारीवाल कर रहे हैं।

वरिष्ठ अधिकारियों ने क्या कहा:

लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने इस समझौते को “हिमस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में जवानों की जान बचाने की दिशा में एक मील का पत्थर” बताया।

वहीं सूर्या कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल नवीन सचदेवा ने कहा कि, “यह कदम रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता की ओर भारतीय सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

IIT कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर और परियोजना प्रमुख डॉ. सुब्रमण्य ने आशा जताई कि, “यह सहयोग भारतीय अनुसंधान संस्थानों को सेना की परिचालन क्षमताओं में सीधे योगदान का अवसर देगा।”

हाल ही में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास माणा दर्रे में हुई भीषण हिमस्खलन की घटना, जिसमें सीमा सड़क संगठन (BRO) के 50 से अधिक जवान बर्फ में फँस गए थे, इस परियोजना की प्रासंगिकता को और भी गंभीर बना देती है।

यह तकनीक पर्वतारोहण, ट्रैकिंग और साहसिक पर्यटन से जुड़े नागरिकों के लिए भी उपयोगी हो सकती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां हिमस्खलन की आशंका अधिक रहती है। इससे समग्र सुरक्षा मानकों में सुधार होगा।

यह साझेदारी भारतीय सेना के आधुनिक अनुसंधान को परिचालन वास्तविकताओं से जोड़ते हुए मिशन रेडी फोर्स तैयार करने और कठिन इलाकों में तैनात जवानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम है।

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