यूथ इंडिया संवाददाता
फर्रुखाबाद। हिंदी साहित्य के जानेमाने साहित्यकार डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन ने आम आदमी की पीड़ा के साथ साथ प्रकृति चित्रण के अनूठे विम्ब अपने साहित्य के जरिये बनाये। इसके साथ ही वे स्वतंत्रता संग्राम के रणवाकुरों का सहयोग करने में भी पीछे नहीं रहे। जिस कारण से उन्हे ततकालीन समय में जेल भी जाना पड़ा था।
जयंती पर उन्हे नमन करते हुए अभिव्यंजना के समनवयक भूपेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि सुमन का साहित्य उन्हे सदैव अमर रखेगा।
शिवमंगल सिंह सुमन का कार्यक्षेत्र अधिकांशत शिक्षा जगत से संबद्ध रहा। वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में हिंदी के व्याख्याता, माधव महाविद्यालय उज्जैन के प्राचार्य और फिर कुलपति रहे।
डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण वह था जब उनकी आँखों पर पट्टी बांधकर उन्हे एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। जब आँख की पट्टी खोली गई तो वह हतप्रभ थे। उनके समक्ष स्वतंत्रता संग्राम के महायोद्धा चंद्रशेखर आज़ाद खड़े थे। आज़ाद ने उनसे प्रश्न किया था, क्या यह रिवाल्वर दिल्ली ले जा सकते हो। सुमन जी ने बेहिचक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। आज़ादी के दीवानों के लिए काम करने के आरोप में उनके विरुद्ध वारंट ज़ारी हुआ। उनकी काव्य रचनाएँ-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय-सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, पर आँखें नहीं भरीं, विंध्य हिमालय, मिट्टी की बारात, वाणी की व्यथा, कटे अगूठों की वंदनवारें हैं। उनकी गद्य रचनाएँ-महादेवी की काव्य साधना, गीति काव्य: उद्यम और विकास, नाटक, प्रकृति पुरुष कालिदास हैं। जिन्होंने सुमनजी को सुना है वे जानते हैं कि सरस्वती कैसे बहती है। सरस्वती की गुप्त धारा का वाणी में दिग्दर्शन कैसा होता है।