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Monday, September 16, 2024

दबी कुचली मूक जनता की आवाज को बुलंद कर गये दुश्यंत कुमार

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यूथ इंडिया संवाददाता
कायमगंज। साहित्यिक संस्था साधना निकुंज और अनुगूंज के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी गजल के बेताज बादशाह दुष्यंत कुमार की जयंती पर कृष्णा प्रेस परिसर कायमगंज में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता फतेहगढ़ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री जवाहर सिंह गंगवार ने की, जबकि मुख्य अतिथि बार एसोसिएशन के महासचिव नरेश सिंह यादव थे। गोष्ठी का संचालन आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उप मंत्री मुन्ना यादव एडवोकेट ने किया।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने दुष्यंत कुमार की गज़लों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने कविता को हुस्न और इश्क के दायरे से बाहर निकालकर आम आदमी के सरोकारों से जोड़ा और सत्ता के मद में डूबे राजनेताओं पर तीखा व्यंग्य किया। उनकी गज़लों ने आधुनिक भारत के पुनर्जागरण का महामंत्र प्रस्तुत किया।
प्रख्यात गीतकार पवन बाथम ने दुष्यंत कुमार की लोकप्रिय गज़लों का पाठ किया और बताया कि उनके अल्प जीवनकाल में उन्होंने गज़ल की दशा और दिशा बदल दी। उन्होंने प्रसिद्ध गज़लों के कुछ शेर भी पढ़े:
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
मेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
अनुपम मिश्रा ने दुष्यंत कुमार को उनकी सदी का नायक बताते हुए कहा, रहे हमें झकझोरते वे जीवन पर्यंत, नायक अपनी सदी के, थे कविवर दुष्यंत। अध्यक्षीय भाषण में एडवोकेट जवाहर सिंह गंगवार ने दुष्यंत कुमार की कविताओं की महत्ता पर प्रकाश डाला, कहा कि उन्होंने दबी-कुचली मूक जनता की वेदना को शब्द दिए और बगावत के तेवर दिखाए।
संगोष्ठी में शायर बहार और राशिद अली राशिद ने दिलकश अंदाज में गज़लें प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम के अंत में संयोजक परम मिश्रा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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