प्रशांत कटियार
गो अपशिष्ट (Cow Waste), जैसे गोबर और गोमूत्र, भारतीय कृषि में सदियों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। हाल के वर्षों में, इन अपशिष्टों का उपयोग आधुनिक कृषि पद्धतियों में बढ़ता जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हो रही है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि हो रही है। अब यह माना जाने लगा है कि गो आधारित खेती केवल एक पारंपरिक पद्धति नहीं, बल्कि यह आधुनिक खेती के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। इस लेख में हम गो अपशिष्ट के उपयोग से जुड़ी तकनीकों और उनके लाभों के बारे में चर्चा करेंगे।
गो आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई राज्य सरकारें और संस्थाएं प्रयास कर रही हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गो आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। उनका कहना है कि इस प्रकार की खेती से न केवल जैविक उत्पादों की प्राप्ति होती है, बल्कि किसान अपनी लागत भी कम कर सकते हैं। इस खेती के माध्यम से किसान प्रति एकड़ 10,000 से 12,000 रुपये तक की बचत कर सकते हैं, जो कि पारंपरिक कृषि पद्धतियों की तुलना में काफी लाभकारी है।
गो आधारित खेती में गोबर और गोमूत्र का उपयोग जैविक उर्वरक के रूप में किया जाता है, जो मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करता है। यह प्राकृतिक विधि रासायनिक उर्वरकों का विकल्प बन रही है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा, यह जल संरक्षण में भी मदद करता है, क्योंकि जैविक उर्वरक मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाते हैं।
गोबर और गोमूत्र के प्रसंस्करण से जैविक उर्वरकों का निर्माण होता है, जो रासायनिक उर्वरकों की तुलना में सस्ते और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, गोबर से बने जैविक उर्वरकों के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता में 30-40% तक की कमी आई है। इस पद्धति से किसानों की लागत में कमी आती है, और वे अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गो आधारित खेती में जैविक उर्वरक के उपयोग से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी खेती की जा सकती है। जल की बचत के कारण, किसानों को सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है, जो जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। इस पद्धति से गोवंश की संख्या बढ़ती है, जिससे उनके संरक्षण और संवर्धन में मदद मिलती है।
उत्तर प्रदेश में गोवंश की संख्या लगभग दो करोड़ है, और यदि हर किसान एक गाय पालता है, तो यह समस्या का समाधान हो सकता है। गोवंश को बढ़ावा देने से न केवल गो पालन करने वाले किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि इससे पर्यावरण को भी लाभ होगा।
मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: गोबर और गोमूत्र का उपयोग मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह मिट्टी की संरचना को सुधारता है, जिससे उपजाऊ भूमि की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके परिणामस्वरूप, किसान को बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है। गो आधारित खेती में किसान को रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे उनकी लागत में 30-40% की कमी होती है। इसके अलावा, जैविक उर्वरक और प्राकृतिक तकनीकों के उपयोग से कृषि का खर्च और भी कम हो जाता है।गो आधारित खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। इससे मिट्टी, जल और वायु में प्रदूषण कम होता है, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है। गो आधारित खेती में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण किसानों की आय में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा, किसानों को सरकारी योजनाओं और प्रशिक्षण का लाभ भी मिल रहा है, जिससे वे इस पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। गो आधारित खेती से उत्पादित जैविक खाद्य सामग्री के सेवन से लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी आती है। रासायनिक उर्वरकों से मुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद होता है।गो आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थाएं और सरकारें किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर रही हैं। उदाहरण के लिए, लोकभारती जैसी संस्थाएं किसानों को गो आधारित प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षण दे रही हैं। अब तक लगभग 25,000 किसानों को इस पद्धति का प्रशिक्षण दिया जा चुका है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा, राज्य सरकार भी किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है, ताकि वे गो आधारित खेती को अपनाएं।
भारत में गो आधारित खेती के कुछ उदाहरण हैं, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने गो आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गो पालन और गो आधारित खेती के महत्व को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। इस राज्य में भी गो आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को गो आधारित खेती के लिए प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता मिल रही है।इन राज्यों में भी गो आधारित खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहां किसानों को गो पालन के लाभ समझाए जा रहे हैं और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
गो अपशिष्ट का उपयोग आधुनिक खेती में वरदान साबित हो रहा है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ा रहा है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सरकार और संस्थाओं की संयुक्त प्रयासों से गो आधारित खेती को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे कृषि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि आ रही है। इस प्रक्रिया से किसानों को न केवल लाभ हो रहा है, बल्कि यह भारतीय कृषि के लिए एक लंबी अवधि तक चलने वाली समाधान हो सकती है।