भीमराव अंबेडकर, भारतीय समाज के एक महान नेता और संविधान के निर्माता, ने अपने जीवन में जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। उनकी पुण्यतिथि पर, हमें याद करना चाहिए कि उन्होंने दलितों और पिछड़ों के अधिकारों के लिए जो संघर्ष किया, वह आज भी प्रासंगिक है।
हाल के वर्षों में, नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे पर भेदभाव और असमानता की नई परतें सामने आई हैं। आरक्षण का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को समान अवसर प्रदान करना है, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी कई लोग इसे गलत तरीके से समझते हैं। आरक्षण का लाभ उठाने वाले व्यक्तियों के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव बढ़ गया है, जिससे उनके लिए नौकरी पाना और भी कठिन हो गया है।
यह स्थिति चिंताजनक है और हमें इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। जब अंबेडकर ने आरक्षण की बात की, तो उनका उद्देश्य था कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके। लेकिन आज, इस अधिकार का उपयोग करने वालों को समाज में नीचा दिखाने की प्रवृत्तियाँ बढ़ी हैं। यह एक गंभीर समस्या है, जो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी असमानता को बढ़ावा देती है।
इस पुण्यतिथि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अंबेडकर के सिद्धांतों को अपनाएँगे और जातिवाद एवं भेदभाव के खिलाफ खड़े रहेंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षण का लाभ उठाने वाले व्यक्तियों को न केवल अवसर मिले, बल्कि उन्हें गरिमा और सम्मान के साथ समाज में स्वीकार किया जाए।आइए, हम सब मिलकर यह प्रयास करें कि बाबा साहब अंबेडकर के सपनों को साकार करें। हमें एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ हर व्यक्ति को उसके हक का पूरा सम्मान मिले और जहाँ भेदभाव का कोई स्थान न हो। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए, हम अपने कर्तव्यों का पालन करें और एक समान और समरस समाज की स्थापना के लिए कार्य करें।
(लेखक दैनिक यूथ इंडिया के स्टेट हेड है)