शरद कटियार
पत्रकारिता लोकतंत्र (journalism democracy) का चौथा स्तंभ है। इसकी भूमिका सूचना देना भर नहीं, बल्कि जनहित के लिए सत्ता से सवाल पूछना, प्रशासन की जवाबदेही तय करना और भ्रष्टाचार (Corruption) के विरुद्ध आवाज उठाना भी है। पर जब पत्रकार की यही भूमिका उसे साजिश, हमले और फर्जी मुकदमों के बीच घसीटने लगे, तब यह केवल व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला होता है।
मैं, शरद कटियार, दैनिक यूथ इंडिया का प्रधान संपादक, पिछले कई वर्षों से उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता में सक्रिय हूं। मैंने कभी पत्रकारिता को मुनाफे का जरिया नहीं बनाया, बल्कि उसे समाज और राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व का माध्यम माना। पर अब जो हो रहा है, वह न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि प्रेस स्वतंत्रता पर सीधा आक्रमण भी है। जब एक सी ग्रेट सिटी का एसपी खवर रोकने का अप्रत्यक्ष दबाव झूठे मुकदमों और गुंडा एक्ट की कार्यवाही की धमकी दिलवा कर बनाए।
Hindustan Urvarak & Rasayan Limited (HURL) में व्याप्त घोर भ्रष्टाचार को उजागर करना मेरी पत्रकारिता का वह साहसिक कदम था, जिसने कई शक्तिशाली लोगों की नींद उड़ा दी। हमने खुलकर स्टेट हेड अरुणि कुमार की अनियमितताओं, भ्रष्ट ठेकेदारी तंत्र, सरकारी फंड के दुरुपयोग और कर्मचारियों के शोषण को उजागर किया।कुछ घोषित माफिया को बेनकाब किया तो
इन रिपोर्टों के बाद मेरे पास धमकी भरे कॉल आने लगे। मेरे करीबी सूत्रों ने बताया कि कुछ प्रशासनिक अधिकारियों और एक विधायक के साथ मिलकर मुझे सबक सिखाने की योजना बनाई जा रही है।
एक सुनियोजित दुर्घटना और प्रशासनिक चुप्पी:
22 मई की रात, जब मैं अपने दैनिक कार्यों के उपरांत वापस लौट रहा था, तो फतेहगढ़ में एक सुनसान रास्ते पर मेरी गाड़ी एक गिरे हुए पेड़ से टकरा गई। यह दुर्घटना कोई संयोग नहीं थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि वह पेड़ 24 घंटे से गिरा था, लेकिन प्रशासन ने उसे नहीं हटाया। इस हादसे के बाद रात 11 बजे मैंने फतेहगढ़ की एसपी श्रीमती आरती सिंह को कई बार फोन किया, पर कोई जवाब नहीं मिला।
क्या यह महज संयोग है कि जिस रास्ते पर मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ, वह 24 घंटे से बिना कोई बैरिकेडिंग या चेतावनी के खुला पड़ा था? क्या यह केवल प्रशासनिक लापरवाही थी, या एक सोची-समझी साजिश? सिर्फ यही नहीं, अब मुझे लगातार धमकियां दी जा रही हैं कि मुझ पर गुंडा एक्ट लगाया जाएगा। मेरी पूर्व में मिली सरकारी सुरक्षा हटा दी गई है। मेरी रिवाल्वर का वैध लाइसेंस प्रशासन नवीनीकृत नहीं कर रहा है।
मैं पूछता हूं—क्या एक पत्रकार जो सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है, उसे इस तरह जीने का अधिकार नहीं? क्या सच बोलना अब अपराध बन गया है? भारत सरकार द्वारा लागू प्रेस काउंसिल एक्ट, 1978 के अंतर्गत पत्रकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य करने का अधिकार प्राप्त है।
धारा 13 (2)(b) कहती है कि किसी भी पत्रकार को उसकी रिपोर्टिंग के कारण किसी प्रकार के उत्पीड़न, धमकी या दंडात्मक कार्रवाई से बचाया जाएगा। पर यहां न केवल प्रेस की स्वतंत्रता कुचली जा रही है, बल्कि नियमों को ठेंगा दिखाते हुए एक ईमानदार पत्रकार को षड्यंत्रों में फंसाने की कोशिश की जा रही है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 138 पत्रकारों पर हमले, धमकी या झूठे मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश का नाम शीर्ष 5 में शामिल है। यह स्थिति न केवल पत्रकारिता को खतरे में डालती है, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों को भी कमजोर करती है। मैंने कभी —मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी—से कोई विशेष सहायता नहीं मांगी। न कोई सरकारी विज्ञापन, न सम्मान, न ही कोई पुरस्कार। मेरी एकमात्र अपेक्षा रही है—सत्य की सुरक्षा।
मेरे दुर्घटनाकांड और संभावित षड्यंत्र की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।एचयूआरएल के भ्रष्ट स्टेट हेड अरुणि कुमार को तत्काल निलंबित किया जाए।फतेहगढ़ की एसपी आरती सिंह की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो। पत्रकारिता यदि डर और साजिश के बीच सांस ले रही हो, तो यह केवल एक पेशे की दुर्दशा नहीं है, बल्कि पूरे समाज के सूचना अधिकार की हत्या है।
यह घटना कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी चेतावनी है—कि अगर ईमानदार पत्रकार ऐसे ही चुप कराए जाते रहे, तो आने वाली पीढ़ी को लोकतंत्र की केवल किताबों में तस्वीरें ही मिलेंगी। शरद कटियार केवल एक पत्रकार नहीं, एक विचार है—सत्य का, साहस का और सेवा का। यदि इस विचार को संरक्षित नहीं किया गया, तो हम सब एक खतरनाक चुप्पी की ओर बढ़ेंगे। यह समय है, जब सरकार को यह तय करना होगा कि वह रामराज्य की परिकल्पना को केवल नारे तक सीमित रखेगी या उसे वास्तविकता में बदलने के लिए पत्रकारों की पुकार भी सुनेगी।
मुझे आशा है, यह आवाज अनसुनी नहीं जाएगी।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया