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Thursday, April 24, 2025

धर्म और राजनीति का समन्वय: अखिलेश यादव की मां पीतांबरा दरबार यात्रा

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राजनीति और धर्म का भारतीय समाज में गहरा संबंध रहा है। समय-समय पर नेता धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का संदेश देते हैं और समाज में अपनी स्वीकार्यता को और मजबूत करते हैं। इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कन्नौज के सांसद अखिलेश यादव ने कन्नौज में आयोजित 1108 मां पीतांबरा मृत्युंजय महायज्ञ में भाग लेकर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक संकेत दिया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने यज्ञ में आहुतियां अर्पित कीं, धार्मिक संतों का आशीर्वाद लिया और अपने समर्थकों में नई ऊर्जा का संचार किया।
बुधवार दोपहर करीब 12:40 बजे, अखिलेश यादव कार्यकर्ताओं के भारी हुजूम और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच यज्ञ मंडप पहुंचे। यज्ञ स्थल पहले से ही श्रद्धालुओं और कार्यकर्ताओं से भरा हुआ था। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता गुड्डू सक्सेना, जय कुमार तिवारी बउअन, राकेश तिवारी, अरविंद प्रताप सिंह आदि ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
सपा प्रवक्ता विजय द्विवेदी ने अखिलेश यादव को पीला पटका पहनाकर सम्मानित किया और यज्ञ मंडप तक ले गए। यह आयोजन पूरी तरह से धार्मिक भावना और अनुशासन के साथ संपन्न हो रहा था, और अखिलेश यादव की मौजूदगी ने इसमें एक नई राजनीतिक दृष्टि जोड़ दी।

अखिलेश यादव की इस धार्मिक यात्रा को केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं होगा, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक निहितार्थ भी मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में धार्मिक स्थलों की यात्राएं अब केवल आस्था का विषय नहीं रह गई हैं, बल्कि यह एक रणनीतिक कदम बन चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा लंबे समय से हिंदू धार्मिक स्थलों को अपनी राजनीतिक पहचान का हिस्सा बनाया गया है। ऐसे में सपा जैसे दलों के नेता भी इस रणनीति को अपनाते हुए दिख रहे हैं।

अखिलेश यादव पहले भी धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेते रहे हैं, लेकिन इस बार का आयोजन कई मायनों में खास था। यह उनकी कन्नौज संसदीय सीट की जनता से सीधे जुड़ने और धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करने की पहल थी।
अखिलेश यादव की मौजूदगी से सपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। उनके आगमन से पहले ही समर्थकों की भारी भीड़ यज्ञ मंडप के समीप एकत्रित हो गई थी। युवा कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता, सभी उन्हें देखने और आशीर्वाद लेने के लिए आतुर नजर आए।

इस यात्रा से साफ संकेत गया कि समाजवादी पार्टी अब हिंदुत्व के मुद्दे को केवल भाजपा के प्रभाव में छोड़ने के मूड में नहीं है। यह यात्रा राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश भी मानी जा रही है, जिसमें अखिलेश यादव समाजवादी मूल्यों और धार्मिक आस्थाओं को एक साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
यज्ञ स्थल पर अखिलेश यादव ने यज्ञाधीश एवं पीठाधीश्वर स्वामी रामदास महाराज की कुटिया में पहुंचकर विशेष रूप से हवन में आहुतियां अर्पित कीं। यह न केवल उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि संत समाज से बेहतर संबंध स्थापित करने की एक रणनीति भी हो सकती है।

उत्तर प्रदेश में संत समाज का प्रभाव व्यापक है, खासकर ग्रामीण और धार्मिक मतदाताओं पर। ऐसे में अखिलेश यादव का संतों से मिलना और धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेना एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा सकता है।
करीब 45 मिनट तक मां पीतांबरा माई के दरबार में रुकने के बाद अखिलेश यादव छिबरामऊ के रामलीला मैदान और विशुनगढ़ में श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में शामिल होने के लिए रवाना हो गए। यह उनकी यात्रा का दूसरा महत्वपूर्ण चरण था, जहां वे धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं से संवाद भी कर सकते थे।
इस यात्रा के माध्यम से अखिलेश यादव ने यह संदेश दिया कि वे केवल एक सेक्युलर नेता नहीं हैं, बल्कि हिंदू धार्मिक परंपराओं में भी विश्वास रखते हैं। इससे भाजपा द्वारा उन्हें मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से घेरने की संभावना कम हो सकती है।

समाजवादी पार्टी की राजनीति अब यादव, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) तक सीमित नहीं रहना चाहती। धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर वह ब्राह्मण, क्षत्रिय और अन्य हिंदू जातियों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लंबे समय से हिंदुत्व को अपनी राजनीति का मुख्य आधार बना रही है। ऐसे में अखिलेश यादव द्वारा धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेना भाजपा की एकाधिकारवादी धार्मिक राजनीति को चुनौती देने जैसा है।

चुनावी माहौल में इस तरह के धार्मिक आयोजनों में भाग लेने से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता है और संगठनात्मक मजबूती भी मिलती है।

संत समाज के कुछ हिस्सों ने अखिलेश यादव की इस यात्रा को सकारात्मक रूप से लिया, जबकि कुछ इसे केवल राजनीतिक कदम मान रहे हैं। संत समाज का एक वर्ग मानता है कि राजनीतिक नेताओं को धर्म से दूर रहना चाहिए, जबकि दूसरा वर्ग मानता है कि अगर कोई नेता धार्मिक आयोजनों में भाग लेकर सामाजिक समरसता का संदेश देता है, तो यह स्वागतयोग्य है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव की यह धार्मिक यात्रा आगामी चुनावों में कितना असर डालती है। क्या इससे समाजवादी पार्टी को नए मतदाता मिलेंगे? या यह केवल एक सांकेतिक यात्रा बनकर रह जाएगी?
भाजपा इस यात्रा को कैसे देखती है, यह भी महत्वपूर्ण होगा। क्या वह इसे राजनीतिक नौटंकी कहकर खारिज करेगी, या फिर इसे अपनी रणनीति के लिए एक नई चुनौती मानेगी?
अगर अखिलेश यादव संत समाज के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त करने में सफल होते हैं, तो यह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

अखिलेश यादव की मां पीतांबरा दरबार यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन में भागीदारी थी, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत भी थी। यह देखना बाकी है कि समाजवादी पार्टी इस रणनीति को कितनी दूर तक ले जा सकती है और यह मतदाताओं के बीच कितनी प्रभावी साबित होती है।
इस यात्रा ने निश्चित रूप से यह संकेत दिया है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब केवल परंपरागत जातीय समीकरणों पर निर्भर नहीं रहेगी, बल्कि धर्म और आस्था भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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