शरद कटियार
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने प्रयागराज महा कुंभ में स्नान कर धार्मिक आस्था व्यक्त की।इस कदम को हिंदू वोट बैंक में पैठ मजबूत बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। वहीं राजनैतिक पंडित बीजेपी की हिंदू वोट बैंक पर पकड़ को चुनौती देने की रणनीति करार दे रहे हैं।
गणतंत्र दिवस पर महा कुंभ में स्नान करना सिर्फ एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि इसके कई राजनीतिक संदेश हैं। अखिलेश यादव का यह कदम न केवल उनकी पार्टी की छवि को नई दिशा देने का प्रयास है, बल्कि हिंदू वोट बैंक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा भी है।पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी को मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण के लिए जाना जाता रहा। लेकिन हाल के वर्षों में, पार्टी ने अपनी राजनीति का दायरा बढ़ाने और बहु-जातीय वोट बैंक को साधने का प्रयास पीडीए के जरिए बहुजातीय पिछड़ों,दलितों,वंचितों को भी साधने का प्रयास किया है। अखिलेश यादव का कुंभ स्नान इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
समाजवादी पार्टी ने हाल के वर्षों में अपनी रणनीति में बदलाव किया है, जिसमें मंदिर दौरे, पूजा-पाठ, और धार्मिक आयोजनों में शामिल होना शामिल है।प्रयागराज महा कुंभ जैसे आयोजन में हिस्सा लेकर अखिलेश यादव ने यह संकेत दिया है कि उनकी पार्टी हिंदू धार्मिक भावनाओं का सम्मान करती है और इसे अपनी राजनीति का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहती है।
बीजेपी ने हिंदुत्व को अपने राजनीतिक एजेंडे का केंद्र बिंदु बनाया है, जिससे उसकी हिंदू वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनी हुई है।हालांकि पिछड़ों संग भेदभाव ने बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को खासा झटका दे, समाजवादी पार्टी को सहारा दे दिया था जिसके बाद बीजेपी सदमे में पहुंची,और पिछड़े वर्ग के नेताओं को जनता के बीच सार्वजनिक लाने लगी,हालांकि बीजेपी का यह प्रयोग सफल होता नहीं दिख रहा है क्योंकि पिछड़े और दलित वर्ग से जिन नेताओं को मंत्री के रूप में बीजेपी ने आगे किया उनका समाज में वास्तविक कोई योगदान ही नहीं वह महेश पार्टी के गुलाम नेताओं में खुद को शुमार किए हैं यह बात हर कोई जानता है बेचैन कुर्मी लोधी अथवा शाक्य जाति से ही क्यों ना ताल्लुक रखते हो या फिर बीजेपी के घटक दल अपना दल की बात हो जहां अनुप्रिया प्रदेश में सजातियों में पेट बनाने में फेल नेता साबित हुई भाई उनके पति आशीष पटेल को उनके ही सजातियों ने सिरे से खारिज कर दिया।उधर समाजवादी पार्टी का यह कदम बीजेपी की इस पकड़ को चुनौती देने का व्यापक प्रयास है।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हिंदू वोट का लगभग 50% समर्थन मिला था। 2022 में यह आंकड़ा थोड़ा कम होकर 47% पर आ गया। वहीं, समाजवादी पार्टी ने अपने वोट प्रतिशत को 21% से बढ़ाकर 32% कर लिया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में धार्मिक आयोजनों का सीधा असर चुनावों पर पड़ता है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रयागराज कुंभ में पीएम नरेंद्र मोदी के गंगा स्नान को बीजेपी की बड़ी सफलता के रूप में देखा गया। अब अखिलेश यादव का यह कदम 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक मजबूत रणनीति हो सकता है।
हिंदू वोट बैंक के भीतर ओबीसी और दलित वर्ग की धार्मिक भावनाओं को साधने की कोशिश भी समाजवादी पार्टी की रणनीति का हिस्सा है।
अखिलेश यादव का कुंभ स्नान उस पुरानी बहस को भी फिर से जीवंत करता है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता और हिंदुत्व के बीच संतुलन साधने की कोशिश की जाती है।
समाजवादी पार्टी पर अक्सर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं। कुंभ में स्नान और धार्मिक आयोजनों में भागीदारी इस छवि को बदलने का प्रयास हो सकता है।
बीजेपी इसे “छद्म हिंदुत्व” का नाम देकर कटाक्ष कर सकती है, लेकिन अखिलेश यादव का यह कदम निश्चित रूप से राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनेगा। यह देखा जाना बाकी है कि अखिलेश यादव की यह रणनीति कितनी सफल होती है। लेकिन यह साफ है कि वह अपनी पार्टी को केवल एक जातीय आधार तक सीमित नहीं रखना चाहते। अगर समाजवादी पार्टी धार्मिक आयोजनों में भागीदारी बढ़ाती है, तो बीजेपी के लिए हिंदू वोट बैंक को एकजुट रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
अखिलेश यादव का महा कुंभ में डुबकी लगाना एक धार्मिक आयोजन मात्र नहीं, बल्कि इसका गहरा राजनीतिक संदेश है। यह कदम उनकी पार्टी की छवि को बदलने और बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे को चुनौती देने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। आंकड़े बताते हैं कि हिंदू वोट बैंक पर पकड़ बनाना आसान नहीं होगा, लेकिन यह रणनीति यूपी की राजनीति में समाजवादी पार्टी के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल सकती है।