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Wednesday, June 25, 2025

महाकुंभ में अव्यवस्था का तांडव: सरकार मेहमानों की मेजबानी में व्यस्त, जनता भगदड़ में कुचली

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– धीरेंद्र शास्त्री भी मौजूद, लेकिन उनकी भविष्यवाणी क्यों नहीं आई काम?
– मृतकों की संख्या पर संशय,वास्तविकता कोषों दूर

शरद कटियार

प्रयागराज। महाकुंभ 2025 (Maha Kumbh) का भव्य आयोजन सरकार के लिए एक प्रदर्शन का मंच बन गया, लेकिन जनता के लिए यह अव्यवस्था और मौत का मेला साबित हुआ। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक, सब वीआईपी मेहमानों की आवभगत में लगे रहे, जिम्मेदार अफसर ‘जी हुजूरी’ में व्यस्त रहे और इस बीच आम श्रद्धालु अव्यवस्थित भीड़ के बीच कुचलते रहे।

धर्मसभा के कई प्रमुख संतों के साथ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी प्रयागराज में मौजूद थे, लेकिन भगदड़ की इस विभीषिका को लेकर उनकी कोई भविष्यवाणी काम नहीं आई। धर्म और आस्था की बातें करने वाले संतों ने भी प्रशासन की अव्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या इन संतों को केवल सरकार की प्रशंसा करनी आती है?

सरकार ने प्रचार में झोंकी ताकत, लेकिन अव्यवस्था चरम पर

महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन बताया गया। सरकार ने इसे ‘भव्य और दिव्य महाकुंभ’ बनाने के लिए करोड़ों रुपये विज्ञापन और प्रचार पर खर्च किए। मगर, हकीकत यह रही कि मूलभूत सुविधाएं ठप थीं—भीड़ नियंत्रण फेल हुआ, पुलिस-प्रशासन मूकदर्शक बना रहा, और स्नान घाटों पर सुरक्षा इंतजाम पूरी तरह ध्वस्त दिखे।

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श्रद्धालु संगम स्नान के लिए घंटों से कतार में थे, लेकिन व्यवस्था इतनी कमजोर थी कि पोल नंबर 11 और 17 के बीच भगदड़ मच गई। सरकार और प्रशासन की लापरवाही की वजह से यह त्रासदी हुई, जिसमें 30 श्रद्धालु काल के गाल में समा गए और 60 से अधिक घायल हो गए।

जिम्मेदार अफसरों ने वीआईपी ड्यूटी निभाई, आम श्रद्धालु बेसहारा

महाकुंभ में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने वाली थी, यह पहले से तय था। लेकिन इसके बावजूद, पुलिस-प्रशासन आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा से ज्यादा मंत्रियों और वीआईपी मेहमानों की सेवा में लगा रहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री, सांसद और अन्य नेताओं के लिए विशेष सुविधाएं दी गईं, लेकिन आम श्रद्धालु घंटों धक्के खाते रहे।

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सरकार के दावों के बावजूद, भीड़ नियंत्रण, मेडिकल सहायता और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नदारद रहे। जब भगदड़ मची, तो पुलिस और सुरक्षाकर्मी मूकदर्शक बने रहे।

धीरेंद्र शास्त्री समेत कई संत थे मौजूद, लेकिन कोई आवाज नहीं उठी

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री भी महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में थे। लाखों भक्त उनकी भविष्यवाणियों और ‘दिव्य चमत्कारों’ पर भरोसा करते हैं। लेकिन जब इस भयावह घटना ने दर्जनों लोगों की जान ले ली, तब उनकी कोई भविष्यवाणी या समाधान सामने नहीं आया।

7 dead, 10 injured in Maha Kumbh mela stampede in Uttar Pradesh | Maha  Kumbha Stampede Updates

धार्मिक प्रवचनों में ‘सनातन रक्षा’ और ‘धर्म की जय’ की बातें करने वाले संत इस प्रशासनिक लापरवाही पर खामोश क्यों हैं? क्या संतों का काम सिर्फ सरकार के पक्ष में बोलना रह गया है?

सरकार की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना के बाद ट्वीट कर दुःख व्यक्त किया और मृतकों के परिजनों को 5 लाख रुपये तथा घायलों को 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की। लेकिन असली सवाल यह है कि जब पहले से ही भीड़ नियंत्रण के लिए योजनाएं बनाई गई थीं, तब इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई?

सरकार ने जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी है, लेकिन क्या यह जांच सिर्फ खानापूर्ति होगी या प्रशासन और लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई भी होगी?

Stampede at India's Maha Kumbh Mela Hindu Festival: Many Feared Dead - The  New York Times

महाकुंभ में हुई इस भगदड़ ने सरकार और प्रशासन के दावों की पोल खोल दी। सरकार ने सिर्फ भव्यता पर ध्यान दिया, लेकिन व्यवस्थाओं को मजबूत नहीं किया। धार्मिक संत और कथावाचक भी इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं।हालांकि ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जमकर सरकार पर हल्ला बोल और मुख्यमंत्री का इस्तीफा तक मांग लिया।

आखिर कब तक सत्ता और धर्म के नाम पर जनता की जान से खिलवाड़ किया जाता रहेगा? इस त्रासदी का असली दोषी कौन है—सरकार, प्रशासन, या वे संत, जो धर्म और आस्था के नाम पर सत्ता के साथ खड़े रहते हैं लेकिन जनता की पीड़ा पर खामोश रहते हैं?

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