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Monday, December 23, 2024

संसद में धक्का-मुक्की: लोकतंत्र के मंदिर में अनुशासनहीनता का चेहरा

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संसद (Parliament) को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। यह वह जगह है, जहां नीतियां तय होती हैं, राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस होती है, और देश की जनता के हित में फैसले लिए जाते हैं। लेकिन जब संसद में अनुशासनहीनता, हिंसा, और असंयमित व्यवहार सामने आता है, तो यह न केवल लोकतंत्र के आदर्शों को चोट पहुंचाता है, बल्कि आम नागरिकों में विश्वास की कमी भी पैदा करता है। हाल ही में संसद में हुई धक्का-मुक्की और सांसदों के घायल होने की घटना ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के गिरते स्तर पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

घटना के अनुसार, विपक्षी और सत्तारूढ़ दल के सांसदों के बीच तीखी बहस के दौरान स्थिति इतनी बिगड़ गई कि शारीरिक झड़प हो गई। इस दौरान फर्रुखाबाद से भाजपा सांसद मुकेश राजपूत सहित अन्य सांसद घायल हो गए। यह घटना इसलिए अधिक चिंताजनक है, क्योंकि यह न केवल संसद के भीतर की मर्यादा को तोड़ती है, बल्कि लोकतंत्र के लिए एक बुरा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

इस घटना का तुरंत प्रभाव यह हुआ कि विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया। सोशल मीडिया और जनता के बीच इस विषय पर तीखी बहस छिड़ गई। सवाल यह है कि ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं और इनके पीछे के कारण क्या हैं?

संसद, जो विचार-विमर्श और सहमति का मंच है, वह आज विवाद, आरोप-प्रत्यारोप और हिंसा का अखाड़ा बन गया है। यह स्थिति लोकतंत्र के आदर्शों के खिलाफ है। लोकतंत्र का मूल सिद्धांत यह है कि सभी पक्षों को अपने विचार रखने और मुद्दों पर चर्चा करने का समान अधिकार हो। लेकिन जब सांसद अपने मतभेदों को सुलझाने के बजाय शारीरिक हिंसा का सहारा लेते हैं, तो यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर सीधा हमला है। संसद में बढ़ती अनुशासनहीनता के कई कारण हो सकते हैं! आज की राजनीति में वैचारिक मतभेद तेजी से व्यक्तिगत दुश्मनी में बदल रहे हैं। सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच संवाद का अभाव इस ध्रुवीकरण को और बढ़ा रहा है।

सांसदों को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। लेकिन जब सांसद संसद के भीतर असंयमित व्यवहार करते हैं, तो यह दर्शाता है कि वे अपनी जिम्मेदारियों को समझने में विफल हो रहे हैं। आज के दौर में मीडिया और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरने की होड़ ने सांसदों को उत्तेजक और असंयमित व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है।

संसद के भीतर अनुशासन बनाए रखने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है। लेकिन जब नियमों का पालन कराने में विफलता होती है, तो सांसद अनुशासनहीनता करने से नहीं हिचकिचाते। संसद में हिंसा और असंयमित व्यवहार का सबसे बड़ा असर जनता के मनोबल पर पड़ता है। जब जनता अपने जनप्रतिनिधियों को असंयमित व्यवहार करते हुए देखती है, तो उनका लोकतंत्र पर विश्वास कमजोर हो जाता है।

सांसद समाज के लिए आदर्श होते हैं। लेकिन जब वे हिंसक या अनुशासनहीन व्यवहार करते हैं, तो समाज में भी ऐसे व्यवहार को मान्यता मिल सकती है। संसद में असंयमित व्यवहार का सीधा असर विधायी कार्यों पर पड़ता है। समय बर्बाद होता है, और जरूरी मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती।

इस समस्या का समाधान आसान नहीं है, लेकिन कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं!
सांसदों के लिए सख्त आचार संहिता लागू की जानी चाहिए। अनुशासनहीनता करने वाले सांसदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच संवाद बढ़ाने के लिए पहल की जानी चाहिए। विचार-विमर्श के माध्यम से ही मतभेदों को सुलझाया जा सकता है।

नए सांसदों के लिए संसदीय प्रक्रियाओं और आचरण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
कई बार विधायी समय की कमी के कारण सांसद उत्तेजित हो जाते हैं। सत्र का समय बढ़ाने से इस समस्या को कम किया जा सकता है। जनता को सांसदों के आचरण पर सवाल उठाने और उन्हें जवाबदेह बनाने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए।

संसद में धक्का-मुक्की और सांसदों का घायल होना न केवल शर्मनाक है, बल्कि लोकतंत्र के आदर्शों पर भी चोट करता है। यह समय है कि सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें और संसद की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।

संसद को विचार-विमर्श और सहमति का मंच बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। अगर इसे विवाद और हिंसा का मंच बनने दिया गया, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान देश की जनता को होगा। संसद को अपनी मर्यादा बनाए रखने के लिए एक नई शुरुआत की जरूरत है, ताकि यह फिर से लोकतंत्र का मंदिर बन सके, न कि संघर्ष का मैदान।

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