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Thursday, November 21, 2024

बांग्लादेश में आरक्षण विवाद: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इसके प्रभाव

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 56% से घटाकर 7% कर दी है। इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को 5% और शेष 2% में एथनिक माइनोरिटी, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग शामिल होंगे। कोर्ट का कहना है कि 93% नौकरियां मेरिट के आधार पर मिलेंगी।

हिंसा और उसके परिणाम

इस फैसले के बाद देशभर में हिंसा भड़क उठी है। न्यूज एजेंसी AFP की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक हिंसा में 115 लोगों की मौत हो चुकी है। हालात काबू में करने के लिए सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया है और प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। पुलिस की जगह सेना तैनात कर दी गई है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ था। उसी साल से आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें विभिन्न कैटेगरी के लिए 80% कोटा निर्धारित किया गया था:

  • स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए: 30%
  • पिछड़े जिलों के लिए: 40%
  • महिलाओं के लिए: 10%
  • सामान्य छात्रों के लिए: 20%

1976 में पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण घटाकर 20% कर दिया गया और 1985 में इसे 10% कर दिया गया। अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया, जिससे सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं।

2009 में स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी आरक्षण में शामिल कर लिया गया और 2012 में विकलांग छात्रों के लिए 1% कोटा जोड़ा गया, जिससे कुल कोटा 56% हो गया।

वर्तमान स्थिति

बांग्लादेश में बढ़ते तनाव के चलते 978 भारतीय छात्रों ने अपने घर लौटने का फैसला किया है। ढाका यूनिवर्सिटी को अगले आदेश तक के लिए बंद कर दिया गया है और छात्रों को हॉस्टल खाली करने के निर्देश दिए गए हैं।

निष्कर्ष

बांग्लादेश में आरक्षण की व्यवस्था में किए गए इस बदलाव ने देश में व्यापक स्तर पर असंतोष और हिंसा को जन्म दिया है। यह फैसला एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में उभर रहा है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट को इस स्थिति को समझदारी से संभालने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सके।

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