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Thursday, November 21, 2024

पौराणिकता और और परंपराओं का एक विशिष्ट पर्व: गुरुपूर्णिमा

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जहां शिष्य गुरुओं को श्रद्धानवत करते नमन

शरद कटियार: गुरुपूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। गुरुपूर्णिमा का उल्लेख पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जिसमें गुरु के महत्व और उनकी वंदना का विशेष उल्लेख है। गुरुपूर्णिमा का सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक संदर्भ महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास से जुड़ा हुआ है। वेदव्यास जी को आदिगुरु माना जाता है, जिन्होंने वेदों का विभाजन और महाभारत की रचना की । इस दिन को उनके जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास ने ज्ञान के प्रसार में अपना जीवन समर्पित कर दिया था, और उन्होंने अपने शिष्यों को भी ज्ञान का महत्व समझाया था।
भारतीय परंपरा में गुरु-शिष्य का संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। गुरु वह होता है जो शिष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है । यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसमें गुरु की भूमिका सर्वोपरि मानी जाती है।
उपनिषदों में कहा गया है
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के रूप में देखा गया है, जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार करते हैं। गुरु को परब्रह्म का साक्षात् स्वरूप माना गया है और उन्हें नमस्कार किया गया है।
गुरुपूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करते हैं। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। विभिन्न आश्रमों और गुरुकुलों में भी इस दिन विशेष कार्यक्रम होते हैं, जिसमें शिष्य अपने गुरु को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हैं।
आधुनिक समय में भी गुरु का महत्व वही है जो प्राचीन काल में था। आज भी शिक्षक, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत के रूप में गुरु की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षा के क्षेत्र में, जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान करने वाले व्यक्ति को गुरु का दर्जा दिया जाता है । गुरुपूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो हमें अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाता है कि ज्ञान और मार्गदर्शन का स्रोत हमेशा हमारे गुरु ही होते हैं। इस पवित्र दिन पर, हमें अपने गुरु के प्रति समर्पित रहकर उनकी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए और समाज में ज्ञान और सद्भावना का प्रसार करना चाहिए।
(लेखक यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप के मुख्य संपादक हैं)

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