– बढ़पुर ब्लॉक में प्रधानों के बहिष्कार पर गरमाई राजनीति, मनरेगा भुगतान पर उठा विवाद
फर्रुखाबाद। बढ़पुर ब्लॉक में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की वर्चुअल उन्मुखीकरण बैठक का ग्राम प्रधानों द्वारा सामूहिक बहिष्कार अब एक बड़ी प्रशासनिक बहस का विषय बन गया है। मंडलायुक्त की अध्यक्षता में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में एक भी ग्राम प्रधान के न जुड़ने से हड़कंप मच गया है। जब इस बहिष्कार के कारणों की तह में जांच हुई, तो मामला मनरेगा के तहत पक्के कार्यों के भुगतान से जुड़ा निकला।
ग्राम प्रधानों का आरोप है कि खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) अमरेश चौहान जानबूझकर योजनाओं की फीडिंग रोक रहे हैं, जिससे विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है। लेकिन बीडीओ चौहान ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए नियमों और तकनीकी प्रावधानों का हवाला देकर अपना पक्ष मजबूती से सामने रखा है।
बीडीओ चौहान के अनुसार, मनरेगा के अंतर्गत 60% राशि कच्चे कार्यों और 40% राशि पक्के कार्यों पर खर्च करने का अनुपात सुनिश्चित किया जाना अनिवार्य है। वर्तमान में ब्लॉक स्तर पर यह अनुपात असंतुलित हो गया है। ऐसे में फीडिंग रोकना नियमानुसार आवश्यक है जब तक कि जिला स्तर से विशेष अनुमति प्राप्त न हो।
खंड विकास अधिकारी ने इस स्थिति को लेकर मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) को एक औपचारिक पत्र भेजा है, जिसमें ब्लॉक की वास्तविक स्थिति और भुगतान में आई तकनीकी बाध्यता का उल्लेख करते हुए विशेष स्वीकृति की मांग की गई है। उन्होंने कहा कि नियमों की अनदेखी कर कोई कार्य करना न केवल अनुचित होगा बल्कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना पर भी प्रश्नचिह्न लगेगा।
बीडीओ चौहान ने यह भी कहा कि उन्हें एक राजनीतिक मोहरा बनाकर निशाना बनाया जा रहा है। “मैं ग्राम प्रधानों का सम्मान करता हूं, लेकिन सरकारी धनराशि के भुगतान में नियम सर्वोपरि हैं। दुर्भाग्यवश मुझे बिना कारण राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है।
इस विवाद में एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि कमालगंज क्षेत्र के एक मनरेगा कार्मिक ने प्रधानों को यह कहकर भ्रमित किया कि 60:40 अनुपात केवल ज़िला स्तर पर लागू होता है, और बीडीओ द्वारा भुगतान रोकना गलत है। इसी आधार पर प्रधानों ने बैठक का बहिष्कार किया।
बाद में कुछ ग्राम प्रधानों ने गोपनीयता की शर्त पर यह स्वीकार किया कि उन्हें इस तकनीकी जानकारी की पहले जानकारी नहीं थी और वे गलतफहमी के शिकार हो गए थे। “शुरुआत में लगा कि बीडीओ जानबूझकर भुगतान रोक रहे हैं, लेकिन अब समझ आया कि मामला नियमों और अनुपात की बाध्यता का है,” एक प्रधान ने कहा।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विकास कार्यों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण है। जहां जनप्रतिनिधि विकास की गति चाहते हैं, वहीं अधिकारियों पर नियमों और जवाबदेही का बोझ होता है। इस टकराव में संवाद और समझदारी ही समाधान का रास्ता है।