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Sunday, August 24, 2025

बड़ी चुनौती है फैक्ट्री के धमाकों को रोकना

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अशोक मधुप
(वरिष्ठ पत्रकार)

तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के पासमैलारम फेज एक इलाके में सोमवार को एक केमिकल फैक्टरी में हुए विस्फोट में 34 कर्मचारियों की मौत हो गई । 35 से अधिक कर्मचारी घायल हो।तीन दिन पहले उत्तर प्रदेश के नोएडा के थाना फेस वन क्षेत्र स्थित डी-93 सेक्टर-दो स्थित शाम पेंट इंडस्ट्रीज केमिकल की कंपनी में भीषण आग लग गई। आग इतनी भयावह थी कि लपटें आसमान तक छूती नजर आई। करीब ढाई घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। फायर ब्रिगेड टीम ने इस आग की घटना में किसी प्रकार के जानमाल के नुकसान न होने की बात कही है। इसी 16 जून को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के रजबपुर थाना क्षेत्र के गांव अतरासी से करीब दो किलोमीटर दूर यह फैक्ट्री चार महिलाओं की मौत हो चुकी थी। नौ घायल मजदूरों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।आरोप है कि फैक्ट्री संचालक ने पटाखे बनाने के लिए आसपास की रहने वाली महिलाओं को कम मजदूरी पर रखा था। उन्हें केवल 300 रुपये दिहाड़ी दी जाती थी। मजदूरों को न कभी ट्रेनिंग दिलाई और नही आपातस्थित से निपटने का कोई प्रशिक्षण दिया गया। फैक्ट्री में दुर्घटनाएं होने पर कुछ दिन शोर मचता है। मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा होने के बाद सब शांत हो जाता है।दुर्घटनाएं रोकने की कोई योजना नही बनती।नही फैक्ट्री के श्रमिकों को दुर्घटना होने के समय की चुनौती बताई जाती हैं। दुर्घटना होने के समय की चुनौती के समय के लिए प्रशिक्षित भी नही किया जाता।

दुर्घटना होने पर क्या किया जाए इसका भी प्रशिक्षण नही दिया जाता। फैक्ट्री लगती है किंतु उनका तकनीकि निरीक्षण नही होता। निरीक्षण करने वाली अधिकारी पैसे के बल पर अपने आफिस में ही बैठकर रिपोर्ट बना देते है। सही मायने में फैक्ट्रियों में होने वाली दुर्घटनाओं और उनमें होने वाली मौत का जिम्मेदार वह अमला भी है जो समय −समय पर इनके सुरक्षा तंत्र का निरीक्षण करता है।

श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फ़ैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान (DGFASLI) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत के पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई है और 11 घायल होते हैं।नवंबर 2022 में आरटीआई जवाब के अनुसार, भारत में रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों में हर साल होने वाली दुर्घटनाओं में 1,109 वर्करों की मौत हो गई और 4,000 से अधिक वर्कर घायल हुए। ये 2017 से 2020 के बीच आंकड़ों के आधार पर है।वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्रों में होने वाले हादसों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाती है।

निदेशालय जनरल फैक्ट्री एडवाइस सर्विस एंड लेबर इंस्टीट्यूट्स की रिपोर्ट, 2022 के अनुसार 2021 में, महाराष्ट्र में 6,492 खतरनाक फैक्ट्रियों में से केवल 1,551 का निरीक्षण किया गया, जिससे 23.89 प्रतिशत निरीक्षण दर प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त, 39,255 पंजीकृत फैक्ट्रियों में से केवल 3,158 का निरीक्षण किया गया। इससे 8.04 प्रतिशत निरीक्षण मिली। अन्य प्रमुख औद्योगिक राज्यों में भी यह प्रवृत्ति दिखाई देती है। तमिलनाडु में सामान्य निरीक्षण दर 17.0 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 25.39 प्रतिशत थी। गुजरात में सामान्य निरीक्षण दर 19.33 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 19.81 मिली।। 2021 के लिए अखिल भारतीय आंकड़े सामान्य निरीक्षणों के लिए 14.65 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों के लिए 26.02 प्रतिशत थे। उपर्युक्त विवरण से लिया गया है।

खराब निरीक्षण दरों का एक कारण कर्मचारियों की कमी है। महाराष्ट्र में निरीक्षकों की नियुक्ति दर केवल 39.34 प्रतिशत थी। इसमें 122 स्वीकृत अधिकारियों में से केवल 48 कार्यरत थे। गुजरात में नियुक्ति दर 50.91 प्रतिशत रही , तो तमिलनाडु में यह 53.57 प्रतिशत थी। अखिल भारतीय नियुक्ति दर 67.58 प्रतिशत थी। स्वीकृत पदों की संख्या पंजीकृत फैक्ट्रियों की संख्या के सापेक्ष वार्षिक निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त रही है। 2021 में, अखिल भारतीय स्तर पर 953 स्वीकृत निरीक्षकों में से प्रत्येक को वार्षिक रूप से 337 पंजीकृत फैक्ट्रियों का निरीक्षण करना पड़ता है ।

मई 2024 में, महाराष्ट्र इंडस्ट्री डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने एक मीडिया रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सुरक्षा निरीक्षण और प्रमाणन अक्सर ऑडिटरों और फैक्ट्री मालिकों या प्रबंधकों के बीच “समझ” के आधार पर किए जाते थे। यह संकेत देता है कि नियोक्ता भी श्रम निरीक्षकों के समान ही दोषी हैं, और भ्रष्ट प्रथाओं की “आपूर्ति पक्ष” को संबोधित करना “मांग” पक्ष के सुधार के समान ही महत्वपूर्ण है।

प्रदेश सतर पर विशिष्ट सीमा मात्रा के साथ खतरनाक रसायनों और ज्वलनशील गैसों की एक सूची स्थापित की जानी चाहिए।प्रत्येक राज्य को प्रमुख खतरे वाले कार्यस्थलों की सूची बनाए रखनी चाहिए। समें सुविधा का प्रकार, उपयोग किए गए रसायन और संग्रहीत मात्रा का विवरण हो। खतरनाक सामग्री की सूची और इन्वेंट्री को एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत करें, जिस तक नियामक निकाय, आपातकालीन प्रतिक्रियाकर्ता, और जनता आसानी से पहुंच सकें।

निरीक्षण प्रणाली को उदार बनाने के बजाय, सरकारों को आईएलओ सम्मेलन के प्रावधानों का पालन करके मजबूत श्रम बाजार शासन सुनिश्चित करना होगा। प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति और खतरनाक और रासायनिक पदार्थों के उपयोग को देखते हुए, सख्त निरीक्षणों की आवश्यकता है।

औद्योगिक आपदाओं की पुनरावृत्ति सरकार की विफलता को दर्शाती है कि उसने पिछले घटनाओं से सबक नहीं सीखा है। सुधारों और कमजोर शासन के नाम पर, राज्य अपने मूल कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता कि वह एक सुरक्षित कार्य और जीवन सुनिश्चित करे। एक प्रभावी और नैतिक श्रम निरीक्षण प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए सार्थक सुधारों की आवश्यकता है जो श्रमिकों और समुदाय की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही फैक्ट्री श्रमिकों का आपदा के समय सुरक्षा के उपाए, कैसे बचाव करें आदि का बार −बार प्रशिक्षण देना होगा। सभी उद्योगों के निरीक्षण के लिए तकनीकि विशेषज्ञों की टीम बनानी होगी। उन्हें नियमित निरीक्षण के निर्देश करने होंगे। इससे किसी दुर्घटना होने पर मौत और घायलों का आंकड़ा कम किया जा सकता है। दुर्घटना होने के हालात में इन तकनीकि अधिकारियों की जिम्मेदारी भी फिक्स करनी होगी।देखने में आ रहा है कि निरीक्षण स्टाफ की फेक्ट्री स्वामियों से मिलीभगत होने के कारण उद्योग स्वामी प्रायः प्रशिक्षित स्टाफ नही रखते ।

उत्तर प्रदेश के अमरोहा के अगवानपुर की दुर्घटना ग्रस्त पटाखा फैक्ट्री का भी ये ही कारण रहा। फैक्ट्री स्वामी ने सस्ते के चक्कर में फैक्ट्री के आसपास रहने वाली महिलाएं रख रखी थी। उन्हें वह मात्र तीन सौ रूपया रोज मजदूरी देता था। उनकी सामजिक सुरक्षा आदि का भी प्रबंध नही था।

केंद्र ही नही प्रदेश सरकारों को भी उद्योग स्वामियों को बताना होगा कि उनके यहां काम करने वाले श्रमिक और तकनीकि विशेषज्ञ देश की धरोहर है। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उद्योग के साथ देश और समाज की भी है।घटना होने पर मात्र जांच के आदेश और मुआवजा देने से ही काम नही चलेगा। दुर्घटना के लिए जिम्मेदारी भी तै करनी होगी। जिम्मेदार लोगों को दंडित भी करना होगा तभी जाकर ये दुर्घटनाएं रूकेगी। एक बात और यदि उद्योग में सुरक्षा मानक कड़े हों, उद्योग श्रमिकों को समय −समय पर सुरक्षा संबधी प्रशिक्षण मिले तो दुर्घटनाएं ही न हों। हों तो मौत और घायलों की संख्या बहुत कम रहे। दुर्घटनाएं न हो तो उद्योग भी न मरे।दुर्घटनाएं होने से श्रमिकों के साथ एक प्रकार से संबधित उद्योग भी मर जाता है। अधिकतर दुर्घटनाग्रस्त उद्योग के स्वामी दुर्घटना के कारण हुए नुकसान ,श्रमिकों को मुआवजा आदि देने के कारण बर्बाद हो जाते हैं। वे दुबारा से मुश्किल से ही काम को जोड़ पाते हैं। इससे देश का एक व्यापारी,एक व्यवसायी भी एक प्रकार से मर जाता है।उसका आर्थिक रूप से मरना देश की प्रगति को भी नुकसान देता है।

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