शरद कटियार
भारत (India) जिस रफ्तार से डिजिटल (Digital) युग में प्रवेश कर रहा है, उसी तेजी से एक नया और खतरनाक संकट उसकी युवा पीढ़ी को अपने शिकंजे में ले रहा है—ऑनलाइन गेमिंग (Online gaming) के नाम पर चल रहा गोरखधंधा। यह समस्या केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अब मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तर पर गहराता जा रहा खतरा बन चुकी है।
आज ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में क्रिकेट सट्टेबाजी, एविएटर, कलर प्रेडिक्शन और फैंटेसी जैसे गेम्स ने जुए और सट्टेबाजी को वैधता का मुखौटा पहना दिया है। यह खेल न केवल युवा मन को भ्रमित कर रहे हैं, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से बीमार, आर्थिक रूप से तबाह और सामाजिक रूप से अलग-थलग कर रहे हैं। इसके साथ ही, इन प्लेटफॉर्म्स के जरिए बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी और साइबर अपराध को भी अंजाम दिया जा रहा है।
ऑनलाइन गेमिंग का मूल विचार, मनोरंजन और कौशल विकास का था। लेकिन धीरे-धीरे इसमें लालच और त्वरित मुनाफे की भावना इस कदर हावी हो गई कि यह खेल अब जुए के मैदान में तब्दील हो गए हैं। खासकर ‘फैंटेसी क्रिकेट’, ‘एविएटर गेम’, ‘कलर प्रेडिक्शन’, और ‘स्लॉट गेम्स’ जैसे प्लेटफॉर्म्स ने लोगों को इस तरह फंसा लिया है कि वे इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे।
इन खेलों का प्रारंभिक आकर्षण छोटे निवेश में बड़े रिटर्न का झांसा देता है। लेकिन धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है और फिर लत। यह लत युवा वर्ग को आर्थिक, मानसिक और सामाजिक पतन की ओर धकेल रही है। कई मामलों में आत्महत्या, घरेलू हिंसा, अवसाद और अपराध जैसे परिणाम सामने आए हैं। इस डिजिटल जुए की सबसे बड़ी मार हमारे युवाओं पर पड़ रही है। कॉलेज छात्र, बेरोजगार युवा और यहां तक कि स्कूली बच्चे भी इन ऐप्स की चपेट में आ रहे हैं।
इन ऐप्स की पहुंच इतनी सरल है कि कोई भी इन पर एक क्लिक से रजिस्टर होकर गेमिंग शुरू कर सकता है। कोई केवाईसी या सत्यापन की सख्ती नहीं। झूठे विज्ञापन, सोशल मीडिया के प्रभावशाली चेहरे और फर्जी प्रमोशन से इन ऐप्स को वैधता और लोकप्रियता मिलती है। उद्योग से जुड़े कुछ अंदरूनी सूत्रों की मानें तो बड़ी संख्या में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और छोटे-बड़े सेलेब्रिटीज मोटी रकम लेकर इन गेमिंग ऐप्स का प्रचार करते हैं। इनसे जुड़े प्लेटफॉर्म्स 22% से अधिक कमीशन पर इनकी सेवाएं खरीदते हैं।
इस प्रचार के माध्यम से आम लोगों, विशेषकर युवाओं को यह दिखाया जाता है कि कैसे ये गेम्स ‘समझदारी से’ खेलकर कमाया जा सकता है। लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है। इन प्लेटफॉर्म्स की आड़ में चल रहा असली खेल है—मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी। कंपनियां गरीबों और बेरोजगारों से उनके बैंक खाते किराए पर लेती हैं। इन खातों के जरिए करोड़ों रुपए का लेन-देन होता है और खाताधारकों को मात्र 4-5% का कमीशन थमा दिया जाता है। असली रकम कंपनियों के हवाले हो जाती है।
इस तरह इन प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिदिन अनुमानित ₹800 करोड़ से अधिक का लेनदेन हो रहा है, जिसका कोई ठोस हिसाब सरकार के पास नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनका संचालन अधिकतर दुबई, सिंगापुर, मॉरीशस जैसे टैक्स हेवन देशों से हो रहा है। भारतीय एजेंसियों की पकड़ से यह तंत्र काफी हद तक बाहर है। यह केवल आंकड़े नहीं, बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक सेहत के लिए खतरे की घंटी हैं।
ऑनलाइन गेमिंग की लत केवल व्यक्ति विशेष की नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समाज की समस्या बन चुकी है। साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि एविएटर और कलर प्रेडिक्शन जैसे गेम्स युवाओं में न केवल नशे जैसी आदत पैदा करते हैं, बल्कि उनमें हार जीत को लेकर अजीब-सी बेचैनी और अवसाद का भाव भर देते हैं। नतीजा: मानसिक तनाव, रिश्तों में दरार, शिक्षा और करियर से मोहभंग। यह केवल एक डिजिटल आदत नहीं, बल्कि एक सामाजिक महामारी बन चुकी है।
देश में अभी तक ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कोई ठोस और सुसंगत कानून नहीं है। कुछ राज्य इसे जुए की श्रेणी में रखते हैं, तो कुछ राज्यों में इसे ‘स्किल गेम’ मानकर अनुमति दे दी जाती है। केंद्र सरकार ने भले ही कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हों, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनकी प्रभावशीलता नगण्य है। यह स्थिति कानून के दोहरेपन और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है।
साइबर सेल और आयकर विभाग तक जब कभी शिकायतें पहुंचती भी हैं, तो प्रभावशाली नेटवर्क और राजनीतिक पकड़ के चलते जांच अधूरी ही रह जाती है। क्या होनी चाहिए सरकार की प्राथमिकताएं? अब वक्त आ गया है कि इस संकट को मनोरंजन या व्यापार के नजरिए से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपदा के रूप में देखा जाए।
ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है:
सभी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स का सघन साइबर और आर्थिक ऑडिट। रेंटल अकाउंट्स के ट्रांजैक्शन की जांच और ऐसे खातों को अविलंब सील किया जाए। कलर प्रेडिक्शन, एविएटर जैसे खेलों को सीधे जुए की श्रेणी में डालकर बैन किया जाए। सोशल मीडिया पर गेमिंग प्रमोशन करने वाले इन्फ्लुएंसर्स पर सख्त कार्रवाई। टैक्स चोरी में शामिल कंपनियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अपराध की धाराओं में एफआईआर। युवाओं के लिए परामर्श केंद्रों और डि-एडिक्शन प्रोग्राम्स की शुरुआत।
केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज, माता-पिता, शिक्षक और मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि इस समस्या को गंभीरता से लें। बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर नजर रखें, स्कूल-कॉलेजों में डिजिटल जागरूकता अभियान चलाएं और सोशल मीडिया पर झूठे प्रचार के खिलाफ आवाज उठाएं।
डिजिटल इंडिया के सपनों को साकार करने का रास्ता ईमानदारी, पारदर्शिता और विवेक से होकर जाता है। लेकिन यदि उस रास्ते में ऑनलाइन गेमिंग जैसे गंदे गड्ढे होंगे, तो हमारी पूरी युवा पीढ़ी उसमें गिरकर बर्बादी का शिकार हो जाएगी। देश की तरक्की तभी संभव है, जब उसकी युवा शक्ति सुरक्षित, संयमित और सशक्त हो। सरकार, एजेंसियों और नागरिक समाज को एकजुट होकर इस गोरखधंधे पर लगाम लगानी होगी। यह केवल ऑनलाइन गेमिंग पर अंकुश लगाने की बात नहीं, यह राष्ट्र के भविष्य को बचाने की पुकार है।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया