शरद कटियार
उत्तर प्रदेश के जनपद हरदोई (Hardoi) से सामने आया यह प्रकरण केवल एक पेट्रोल पंप (petrol pump) पर हुए छोटे-से विवाद की घटना नहीं है, बल्कि यह हमारी वर्तमान सामाजिक संरचना, पारिवारिक मूल्यों, युवा पीढ़ी के आचरण और कानून व्यवस्था के प्रति आम नागरिक की सोच पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है। एक बेटी (Daughter) द्वारा अपने पिता की ‘बेइज्जती’ के नाम पर खुलेआम रिवॉल्वर (revolver) तान देना, यह बताता है कि हम बतौर समाज किस ओर जा रहे हैं। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि उस मानसिकता की झलक है जो धीरे-धीरे सामान्य होती जा रही है—जहां सम्मान की रक्षा के नाम पर कानून हाथ में लेना एक त्वरित विकल्प बन गया है।
बीते रविवार की शाम हरदोई के बिलग्राम थाना क्षेत्र के सांडी रोड स्थित एक सीएनजी स्टेशन पर एहसान खान अपनी पत्नी हुसनबानो और बेटी अरीबा के साथ पहुंचे। कार में बैठी अरीबा ने हाल ही में NEET की परीक्षा दी थी। गैस भरवाने को लेकर सुरक्षा कारणों से पंपकर्मी ने सभी को वाहन से नीचे उतरने को कहा। एहसान और उनकी पत्नी उतर गए, लेकिन बेटी के न उतरने पर जब पंपकर्मी ने उसे भी उतरने को कहा, तो पिता और पंपकर्मी के बीच बहस हो गई। बात बढ़ी और पंपकर्मी द्वारा कथित रूप से धक्का दिए जाने पर बेटी अरीबा ने गाड़ी से रिवॉल्वर निकाली और पंपकर्मी के सीने पर तान दी।
उसने कथित तौर पर धमकी दी—“इतनी गोली मारूंगी कि घरवाले पहचान नहीं पाएंगे।” इस पर लोगों ने बीच-बचाव किया और परिवार वहां से चला गया। बाद में पंपकर्मी ने थाने में तीनों के खिलाफ शिकायत दी, जिसके आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की है। इस पूरे मामले का प्रारंभ एक साधारण नियम से हुआ—सीएनजी पंप पर सुरक्षा के लिहाज से सभी यात्रियों को गाड़ी से नीचे उतरने की आवश्यकता होती है। यह नियम भारत समेत दुनिया के कई देशों में लागू है, क्योंकि सीएनजी एक अत्यंत ज्वलनशील गैस है, और उसमें ज़रा-सी चूक गंभीर हादसे को न्योता दे सकती है।
पंपकर्मी का कहना था कि सभी लोग उतरें, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित हो। जब अरीबा नहीं उतरी, तो उसके पिता ने कह दिया—“बेटी नहीं उतरेगी।” यहीं से मामला टकराव की दिशा में मुड़ गया। प्रश्न यह उठता है कि क्या नियमों का पालन करने में व्यक्तिगत सम्मान आड़े आना चाहिए? क्या सुरक्षा नियमों को टालना “इज्जत का सवाल” बन सकता है?
सबसे चिंताजनक पक्ष यह रहा कि एक किशोरी, जो हाल ही में NEET की परीक्षा दे चुकी है, यानी एक उच्च शिक्षित वर्ग से संबंधित है, वह इस स्तर की हिंसा पर उतर आई कि उसने अपने पिता की लाइसेंसी रिवॉल्वर उठाकर एक सार्वजनिक स्थान पर उसे किसी के सीने पर तान दिया। यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि एक मानसिकता का प्रतीक है जो समाज में पनप रही है—कि यदि मेरा अपमान हुआ है, तो मैं कुछ भी कर सकता/सकती हूं। यह सोच, खासकर युवा पीढ़ी में, बेहद खतरनाक है।
यह सवाल उठता है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था केवल परीक्षा पास कराने तक सीमित हो गई है, या यह भी सिखा रही है कि क्रोध पर नियंत्रण और कानून का सम्मान कैसे किया जाए? यह घटना यह भी सोचने को मजबूर करती है कि क्या आज के माता-पिता अपने बच्चों को सामाजिक नियमों, शिष्टाचार और क़ानून का महत्व समझा पा रहे हैं? यहां जिस प्रकार से बेटी को यह विश्वास था कि वह रिवॉल्वर निकाल सकती है और कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ेगा, यह कहीं न कहीं पारिवारिक प्रशिक्षण पर भी सवाल उठाता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि रिवॉल्वर पिता की थी, लाइसेंसी थी, और संभवतः बेटी को इसका प्रयोग करने की जानकारी पहले से रही होगी। फिर भी किसी भी परिस्थिति में उसका सार्वजनिक प्रदर्शन, वह भी धमकी के रूप में, पूरी तरह अस्वीकार्य है। थाना प्रभारी द्वारा आर्म्स एक्ट और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना आवश्यक था और यह पुलिस की त्वरित कार्यवाही को दर्शाता है। लेकिन बड़ी तस्वीर यह है कि क्या समाज अब केवल पुलिसिया कार्यवाही से सुधरेगा?
यह ज़रूरी है कि समाज के स्तर पर नागरिकों में यह जागरूकता लाई जाए कि हथियार केवल आत्मरक्षा के लिए होते हैं, न कि “सम्मान की रक्षा” के लिए। साथ ही, सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे हथियारों का प्रदर्शन न केवल गैरकानूनी है बल्कि भयावह सामाजिक प्रभाव भी डालता है। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। इसमें स्पष्ट देखा जा सकता है कि किस तरह एक लड़की गुस्से में हथियार निकालती है और सामने खड़ा युवक स्तब्ध होकर पीछे हटता है। प्रश्न यह भी है कि क्या ऐसे वीडियो का प्रसार समाज में भय पैदा करेगा या केवल “हिट न्यूज़” बनकर रह जाएगा?
मीडिया को चाहिए कि वह इस मुद्दे को केवल सनसनीखेज खबर के रूप में न दिखाकर, इससे जुड़ी सामाजिक और नैतिक चुनौतियों को भी उजागर करे। कुछ लोग इस घटना को “बेटी के साहस” से जोड़कर देखने की कोशिश भी कर सकते हैं। लेकिन यह दृष्टिकोण न केवल घातक है, बल्कि महिला सशक्तिकरण के वास्तविक अर्थ को भी विकृत करता है।
महिला सशक्तिकरण का मतलब यह नहीं है कि महिलाएं हथियार उठाकर सम्मान की रक्षा करें, बल्कि यह है कि वे न्याय, समानता और संवैधानिक अधिकारों के तहत अपनी बात मजबूती से रखें। अरीबा का यह कदम कानून और समाज, दोनों के खिलाफ है। इस घटना से हमें यह सबक लेना चाहिए कि— लाइसेंसी हथियारों का प्रयोग और रखरखाव केवल उसके मालिक द्वारा ही होना चाहिए। यह आवश्यक है कि परिवार में अन्य सदस्य उसके उपयोग के लिए अधिकृत न हों।
युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य और क्रोध प्रबंधन को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। आज के समय में तनाव और असहिष्णुता एक बड़ी समस्या बन चुकी है।शिक्षा में नैतिक मूल्यों का समावेश अनिवार्य होना चाहिए। केवल प्रतियोगी परीक्षाएं पास कराना शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिए।सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा नियमों के पालन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। पंपकर्मियों की सुरक्षा के लिए कैमरे और सुरक्षाकर्मी आवश्यक हैं।
हरदोई की यह घटना केवल पुलिस रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है, यह एक आइना है—हमारे समाज की मानसिकता, हमारे मूल्यों और हमारे भविष्य की दिशा का। बेटी द्वारा पिता की ‘इज्जत’ की रक्षा के लिए उठाया गया यह कदम न तो नैतिक है, न ही कानूनसम्मत, और न ही प्रेरणादायक। यह वह समय है जब समाज, परिवार, शिक्षा संस्थान और प्रशासन को मिलकर आत्ममंथन करना चाहिए कि कहां चूक हो रही है। वरना ऐसे दृश्य आम होते जाएंगे, जहां तर्क और शांति की जगह रिवॉल्वर और धमकियां लेंगी। हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना होगा जहां सम्मान का मतलब हो—सच्चाई, संयम और समझदारी। और जहां हर बेटी यह समझे कि उसकी सबसे बड़ी ताकत उसका विवेक है, न कि हथियार।
शरद कटियार
प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया