भरत चतुर्वेदी
मानव जवन में सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक है उदारता। यह केवल एक भाव नहीं, बल्कि एक ऐसा मानवीय मूल्य है, जो व्यक्ति को सामान्य मनुष्य से महानता की ओर ले जाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी अमर कहानी ‘मुक्तिधन’ में इसी उदारता को मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी बताया है।
प्रेमचंद कहते हैं कि इंसान जब स्वार्थ, लालच, और नीचे गिरने वाली प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर दूसरों के हित में सोचने लगता है, तब वह फरिश्ता बन जाता है। लेकिन जब वही इंसान केवल अपनी इच्छाओं, अपने लाभ को सर्वोपरि मानता है, तो उसका पतन तय होता है — और वह शैतान जैसी प्रवृत्तियों का शिकार हो जाता है।
‘मुक्तिधन’ कहानी का मुख्य पात्र इस अंतर को भली-भांति समझता है। उसके सामने जब धन, ईर्ष्या और व्यक्तिगत अधिकार का मोह खड़ा होता है, तब भी वह नैतिकता और मानवता को चुनता है। यही प्रेमचंद का संदेश है — कि असली धन उदारता है, न कि वह जो तिजोरी में बंद हो।
आज की भौतिकवादी दुनिया में जहाँ लोग दूसरों को पीछे छोड़ने में गर्व महसूस करते हैं, वहाँ प्रेमचंद का यह विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
उदार व्यक्ति न केवल अपने आसपास के लोगों के जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि वह समाज को भी एक नैतिक दिशा देता है।
वह दूसरों के दुख को अपना दुख मानता है, और सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है।
मुंशी प्रेमचंद ने ऐसे समय में ‘मुक्तिधन’ जैसी कहानी लिखी जब समाज जाति, गरीबी और स्वार्थ की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि नैतिक जागरण का साधन बनाया। उनके पात्र साधारण होते हुए भी, उनके कर्म असाधारण होते हैं।
‘मुक्तिधन’ में हम यह सीखते हैं कि इंसान मुक्ति तब पाता है जब वह धन के मोह से मुक्त होकर, उदारता के भाव में बंध जाता है।
आज जब समाज टूट रहा है, व्यक्ति अलग-थलग हो रहा है, और अहंकार, स्वार्थ तथा हिंसा बढ़ रही है — उस समय प्रेमचंद की यह पंक्ति हर भारतीय के लिए आईना बन सकती है:
“मनुष्य उदार हो, तो फरिश्ता है…”
आज जरूरत है ऐसे फरिश्तों की, जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करें, समाज को जोड़ें, और सच्ची मनुष्यता की अलख जगाएं।
प्रेमचंद की ‘मुक्तिधन’ केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक विचारधारा है — जो सिखाती है कि उदारता ही इंसान की सबसे बड़ी पूंजी है। ऐसे उदार व्यक्तित्व ही समाज को संवरते हैं, और मानवता की सच्ची पहचान बनते हैं।