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Sunday, June 22, 2025

मक्का: बहुउपयोगी फसल की नई क्रांति

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भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अनाजों की विविधता और उपयोगिता देश की अर्थव्यवस्था से लेकर पोषण सुरक्षा तक में केंद्रीय भूमिका निभाती है। इन्हीं अनाजों में एक प्रमुख नाम मक्का (मकई/कार्न) का भी है, जिसे विश्वभर में “फसलों की रानी” कहा जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार की हालिया नीतिगत प्राथमिकताओं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2027 तक मक्का उत्पादन को दोगुना करने की मंशा, न सिर्फ एक दूरदर्शी कृषि नीति का प्रतीक है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ठोस कदम भी है।

मक्के की सबसे बड़ी खूबी इसका बहुआयामी उपयोग है। यह न केवल मानव आहार के रूप में उपयोगी है, बल्कि औद्योगिक उत्पादन, पशु एवं कुक्कुट आहार, औषधीय उत्पादों, कागज और एल्कोहल उद्योगों में भी इसकी मांग निरंतर बढ़ रही है। भुट्टा, बेबी कॉर्न, मक्का आटा, पॉपकॉर्न जैसे खाद्य उत्पादों के अलावा, मक्का इथेनॉल उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत बनता जा रहा है। इथेनॉल सम्मिश्रण नीति को सफल बनाने की दिशा में मक्का की भूमिका निर्णायक हो सकती है, जिससे देश की तेल पर निर्भरता भी घटाई जा सकती है।

मक्का की सबसे बड़ी ताकत इसकी लचीलापन है। यह लगभग हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, बशर्ते जल निकासी की व्यवस्था बेहतर हो। मक्का तीनों प्रमुख कृषि सीजन—खरीफ, रबी और जायद—में उगाया जा सकता है। खरीफ में मक्का की बुआई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त माना गया है, जबकि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे मई के दूसरे या तीसरे सप्ताह में भी बोया जा सकता है। पौधों की स्वस्थ वृद्धि के लिए पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 20 सेमी की दूरी आदर्श मानी जाती है। यदि बेड प्लांटर जैसे आधुनिक उपकरण उपलब्ध हों, तो मक्का उत्पादन और भी आसान व वैज्ञानिक हो सकता है।

वर्तमान में उत्तर प्रदेश में मक्का की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 21.63 क्विंटल है, जबकि तमिलनाडु जैसे अग्रणी राज्य में यह आंकड़ा 59.39 क्विंटल है। राष्ट्रीय औसत 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह अंतर यह संकेत करता है कि उत्तर प्रदेश में उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि वैज्ञानिक तकनीकों, उन्नत बीजों, संतुलित उर्वरकों और समयबद्ध सिंचाई व्यवस्था को अपनाया जाए, तो प्रति हेक्टेयर 100 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए किसानों को आधुनिक प्रशिक्षण, सरकार से तकनीकी सहायता और समय पर वित्तीय सहयोग की आवश्यकता होगी।

योगी सरकार ने मक्का को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे में लाकर किसानों को आश्वस्त किया है कि उन्हें अपने उत्पाद का न्यायोचित मूल्य मिलेगा। यही नहीं, सरकार लगातार खरीफ गोष्ठियों, कृषि मेलों, प्रायोगिक खेतों और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को उन्नत खेती की जानकारी उपलब्ध करवा रही है। हाल में लखनऊ में आयोजित राज्य स्तरीय खरीफ गोष्ठी में भी कृषि मंत्री ने मक्का, अरहर और सरसों जैसी बहुपयोगी फसलों के उत्पादन को प्राथमिकता देने की अपील की।

यदि मक्के के औद्योगिक उपयोग की श्रृंखला को विस्तार दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन की भी अपार संभावनाएं हैं। मक्का आधारित मिनी प्रोसेसिंग यूनिट्स, इथेनॉल डिस्टिलरी, पोल्ट्री फीड मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, बेबीकॉर्न और पॉपकॉर्न पैकेजिंग जैसी इकाइयों को ग्राम उद्योगों के अंतर्गत बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे जहां किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा, वहीं गांवों में रोजगार भी सृजित होंगे और पलायन रुकेगा।

एक और महत्वपूर्ण बिंदु है—जलवायु परिवर्तन। सूखे, अनियमित वर्षा और भूमि की घटती उर्वरता की स्थिति में मक्का एक व्यवहारिक विकल्प बनकर उभरा है। मक्का अपेक्षाकृत कम जल में भी उग सकता है और इसके रोगों व कीटों से लड़ने की क्षमता भी अपेक्षाकृत बेहतर मानी जाती है। यदि सरकार मक्का को “क्लाइमेट रेसिलिएंट क्रॉप” के रूप में प्रचारित करे, तो यह आने वाले वर्षों में पर्यावरणीय संकटों से जूझने में भी कारगर सिद्ध होगा।

मक्के में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, मैग्नीशियम और फाइबर पाया जाता है। यह पौष्टिकता के लिहाज से भी बेहद मूल्यवान फसल है। कुपोषण से ग्रस्त क्षेत्रों में यदि मक्का आधारित आहार को मिड-डे मील और पोषण आहार योजनाओं में शामिल किया जाए, तो बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।

राज्य सरकार को चाहिए कि वह कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य बीज निगम के सहयोग से मक्का की उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों को जनसामान्य तक पहुंचाए। मक्का की ऐसी किस्में जो सूखा, कीट और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हों, उन्हें प्राथमिकता दी जाए। इसके साथ-साथ कृषि इनपुट्स की समय पर आपूर्ति और खेत से बाजार तक की कड़ी को भी मजबूत किया जाना जरूरी है।

मक्का उत्पादन बढ़ाने के लक्ष्य को तभी सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है जब किसान संगठनों और सहकारी समितियों को भी सक्रिय किया जाए। समूह आधारित खेती (Cluster Farming), कृषक उत्पादक संगठन (FPOs) और सहकारी बिक्री केंद्रों के जरिए मक्के की उपज को एकत्र कर उसका मूल्य संवर्धन एवं उचित विपणन सुनिश्चित किया जा सकता है।

मक्के के बहुपयोग, आर्थिक संभावनाओं और पोषण संबंधी खूबियों को लेकर राज्य सरकार को मीडिया, सोशल मीडिया और ग्रामीण जनसंचार माध्यमों के जरिए किसानों में जागरूकता फैलानी चाहिए। कृषि मेलों, रेडियो कार्यक्रमों, कृषि चैनलों एवं मोबाइल ऐप्स का उपयोग कर मक्का को भविष्य की फसल के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
मक्का केवल एक फसल नहीं, बल्कि एक संपूर्ण आर्थिक, औद्योगिक और पोषणीय अवसर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह पहल कि मक्का उत्पादन को 2027 तक दोगुना किया जाए, एक ठोस और यथार्थवादी लक्ष्य है, बशर्ते इसके पीछे सुनियोजित नीतियों, किसानों की भागीदारी, वैज्ञानिक तरीकों, औद्योगिक सहयोग और प्रशासनिक इच्छाशक्ति का समुचित समावेश हो। उत्तर प्रदेश मक्का के उत्पादन में एक नई क्रांति की ओर बढ़ रहा है—और यह क्रांति सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं, बल्कि गांवों, उद्योगों और थालियों तक असर डालेगी।

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