आतंकवाद (Terrorism) एक ऐसा घाव है जो सीमाओं की परवाह नहीं करता, लेकिन जब यह किसी राष्ट्र की संप्रभुता, नागरिक सुरक्षा और मानवीय मूल्यों को सीधे चुनौती देता है, तब वह राष्ट्र किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरत सकता। जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में हाल ही में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या ने न केवल समूचे भारत को झकझोर दिया, बल्कि एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि आतंकवाद (terrorism) को शह देने वाले देशों से किस प्रकार निपटा जाए।
इस हमले के ठीक बाद भारत सरकार ने जो कदम उठाया, वह न केवल व्यावहारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह एक स्पष्ट राजनीतिक और कूटनीतिक संदेश भी देता है। भारत ने पाकिस्तान से चल रही डाक और पार्सल सेवा को तत्काल प्रभाव से पूरी तरह से निलंबित कर दिया है। यह कदम न केवल एक सेवा का स्थगन है, बल्कि यह आतंक के प्रति भारत की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का प्रतीक है।
हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच डाक सेवाएं पहले ही सीमित स्तर पर संचालित हो रही थीं, फिर भी इस सेवा के माध्यम से सीमापार बसे परिवारों, व्यापारियों और नागरिक समूहों के बीच न्यूनतम संवाद बना हुआ था। लेकिन अब, जब भारत सरकार (Government of India) ने इसे भी रोक दिया है, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आतंकवाद के खिलाफ अब केवल शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस और निर्णायक नीतियों के माध्यम से लड़ाई लड़ी जाएगी।
यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं है; यह आतंकवाद को समर्थन देने वालों के लिए एक चेतावनी है कि भारत अब हर स्तर पर दबाव बनाएगा—चाहे वह व्यापार हो, संचार हो या सांस्कृतिक विनिमय। जब तक पाकिस्तान अपनी ज़मीन से आतंकवाद को पनाह देता रहेगा, तब तक भारत उसके साथ किसी भी प्रकार के सामान्य संबंधों को बनाए रखने के लिए बाध्य नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के बीच डाक सेवाओं का इतिहास हमेशा राजनीतिक रिश्तों के उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ा रहा है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पाकिस्तान ने एकतरफा रूप से डाक सेवाएं बंद कर दी थीं। बाद में सीमित स्तर पर सेवाएं बहाल की गईं, लेकिन अब भारत ने इन सेवाओं को पूरी तरह से बंद कर यह दिखा दिया है कि अब ‘धैर्य की सीमा’ समाप्त हो चुकी है।
2019 के पुलवामा हमले के बाद भी भारत ने पाकिस्तान से आयात पर 200% शुल्क लगाया था, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग समाप्त हो गया था। अब जब आयात पहले ही 0.5 मिलियन डॉलर के न्यूनतम स्तर तक आ चुका है, डाक सेवा का निलंबन इस ओर इशारा करता है कि भारत अब प्रतीकात्मक नहीं, व्यावहारिक और रणनीतिक कदमों से आतंकवाद का जवाब दे रहा है।
डाक सेवा बंद होने का असर सबसे पहले उन आम नागरिकों पर पड़ेगा जो सीमापार बसे अपने रिश्तेदारों से पत्र, दस्तावेज या पार्सल के माध्यम से संपर्क में रहते थे। यह मानवीय दृष्टि से एक कठिन निर्णय है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि आतंकवाद को रोकने की नीति में जब तक कठोरता नहीं दिखाई जाएगी, तब तक परिणाम नहीं मिल सकते। भारत यह जानता है कि आतंकवाद की जड़ें केवल बंदूक और बारूद तक सीमित नहीं हैं; वे संवाद, व्यापार और सहानुभूति की आड़ में भी फैलती हैं।
पाकिस्तान से आने वाले कुछ सामानों जैसे सेंधा नमक आदि की आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा, लेकिन ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार इन वस्तुओं की उपलब्धता भारत के अंदर या अन्य देशों से की जा सकती है। इसका अर्थ है कि भारत अब किसी भी दृष्टिकोण से पाकिस्तान पर निर्भर नहीं है—न व्यापार में, न संचार में और न ही कूटनीति में।
भारत का यह कदम सिर्फ एक द्विपक्षीय नीति नहीं है, बल्कि यह वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ उसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र, जी20, और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत बार-बार यह मुद्दा उठाता रहा है कि आतंकवाद को शह देने वाले देशों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। अब जब भारत स्वयं पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को सीमित कर रहा है, तो वह अन्य देशों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।
भारत का यह रुख अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह सोचने पर मजबूर करेगा कि क्या वे भी पाकिस्तान के साथ सामान्य कूटनीतिक संबंध बनाए रखें, जबकि वह लगातार आतंकी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। भारत का यह कदम एक ‘पॉलिसी स्टैंड’ है, जो कूटनीति से अधिक नैतिकता और वैश्विक सुरक्षा का पक्षधर है।
भारत का रुख अब बदल चुका है। जहां पहले हर आतंकी घटना के बाद केवल निंदा और बयानबाजी तक ही प्रतिक्रिया सीमित थी, अब हर हमला एक रणनीतिक प्रतिक्रिया को जन्म दे रहा है। यह केवल पाकिस्तान से संवाद या सेवाएं बंद करने की बात नहीं है, बल्कि एक समग्र नीति का हिस्सा है—जहां भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि आतंकवाद से अब बिना कोई समझौता किए निपटा जाएगा।
सरकार द्वारा लिए गए ये निर्णय अब केवल आंतरिक राजनीतिक दबावों का परिणाम नहीं हैं, बल्कि वे एक सुदृढ़ राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा हैं। यह रणनीति न केवल सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि भारत के नागरिकों की सुरक्षा, राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक साख को भी सुनिश्चित करती है। यह निर्णय राजनीतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इससे देशवासियों को यह संदेश जाता है कि सरकार आतंकवाद के प्रति संवेदनशील है और वह केवल भाषणों तक
सीमित नहीं रहेगी। यह एक ऐसा कदम है जो जनता के आक्रोश और संवेदनाओं को गंभीरता से लेते हुए लिया गया है। साथ ही, यह पाकिस्तान के अंदर के उस वर्ग के लिए भी एक संदेश है जो शांति और सद्भाव चाहता है। भारत यह दिखाना चाहता है कि अगर पाकिस्तान की सरकार अपने यहाँ पनप रहे आतंकवाद को रोकने में असफल रहती है, तो उसके परिणाम हर स्तर पर भुगतने होंगे।
भारत अब उस युग में प्रवेश कर चुका है जहां वह केवल प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि पहले से नीति बनाकर उसके अनुसार कार्रवाई करता है। पाकिस्तान से डाक और पार्सल सेवा को बंद करना एक छोटा कदम प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसका प्रभाव दूरगामी है। यह कदम केवल एक सेवा को निलंबित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की आतंकवाद के खिलाफ ‘नो टॉलरेंस’ नीति का एक ठोस और सार्वजनिक रूप है।
जब तक पाकिस्तान अपनी नीति में बदलाव नहीं करता, आतंकवाद को पनाह देना बंद नहीं करता और सीमा पार से होने वाले हमलों को नहीं रोकता, तब तक भारत जैसे कदम उठाता रहेगा। यह केवल देश की सुरक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा की दिशा में भी एक योगदान है। भारत की यह कार्यवाही उन तमाम राष्ट्रों के लिए भी एक सीख है जो आतंकवाद को राजनीतिक हथियार मानते हैं। अब समय आ गया है कि हर देश आतंक के खिलाफ खड़ा हो और भारत के इस साहसी कदम का समर्थन करे। तभी एक सुरक्षित, शांतिपूर्ण और स्थायी वैश्विक व्यवस्था की कल्पना की जा सकती है।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप