शरद कटियार
भारत में सामाजिक न्याय और हक-अधिकार की राजनीति को नई दिशा देने वाला मुद्दा जातिगत जनगणना बन चुका है। बिहार से इसकी शुरुआत हुई, लेकिन धीरे-धीरे यह एक राष्ट्रीय बहस बन गया। इस ऐतिहासिक कदम को लेकर देश के कई प्रमुख नेताओं की भूमिका सामने आई है, जिनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, और कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रमुख हैं।
2022 में जब बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना का निर्णय लिया, तब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे। उन्होंने विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कराया, बजट दिया और यह स्पष्ट किया कि “जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व ही सच्चा न्याय है”। केंद्र की आपत्ति के बावजूद उन्होंने अपने फैसले पर अडिग रहते हुए सर्वे पूरा कराया।
तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को युवाओं, छात्रों, और पिछड़े वर्गों के बीच ले जाकर इसे आंदोलन का रूप दिया। उनके नारों और बयानों ने जातीय जागरूकता को मजबूती दी। उन्होंने बार-बार कहा, “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी जरूरी है”, जिससे वंचित वर्गों को अपनी आवाज बुलंद करने का अवसर मिला।
केंद्रीय मंत्री रहते हुए अनुप्रिया पटेल ने लगातार जातिगत जनगणना की मांग की। उनकी खासियत यह रही कि उन्होंने सत्ता के दबाव में चुप न रहकर पिछड़ों के अधिकारों की बात संसद और मंचों से मजबूती से रखी। उन्होंने कहा था, “बिना जातीय आंकड़ों के ओबीसी को न्याय नहीं मिल सकता”। उनकी संघर्षशील राजनीति ने उन्हें इस मुद्दे की सबसे प्रामाणिक महिला नेता बना दिया है।
अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना को अपनी राजनीति की धुरी बना लिया। उन्होंने इसे पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ से जोड़ा और 2024 लोकसभा चुनावों में इसका लाभ उठाया। जब उन्हें संगठनात्मक स्तर पर इस मुद्दे की राजनीतिक उपयोगिता समझ आई, तो उन्होंने इसे आंदोलनात्मक शक्ल दी और यूपी में तेज़ी से इसे फैलाया।
राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया। उन्होंने संसद से लेकर जनसभाओं में बार-बार मांग की कि “देश को जानने के लिए जातीय आंकड़े जरूरी हैं”। कांग्रेस पार्टी ने उनके नेतृत्व में इसे पार्टी का प्रमुख एजेंडा बनाया और सरकार को निर्णय लेने को मजबूर किया।
राजनीति में श्रेय की लड़ाई
वर्तमान में जब जातिगत जनगणना को लेकर अलग-अलग नेता श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह समझना जरूरी है कि यह किसी एक व्यक्ति या पार्टी का नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। नीतीश कुमार ने प्रशासनिक निर्णय लिया, तेजस्वी ने जनसमर्थन जुटाया, अनुप्रिया ने सत्ता में रहकर आवाज उठाई, अखिलेश ने रणनीति दी, और राहुल ने इसे राष्ट्रीय विमर्श बनाया।
जातिगत जनगणना एक ऐतिहासिक और सामाजिक न्याय को बल देने वाला कदम है, जिसकी बुनियाद कई नेताओं की सहभागिता से बनी।
नीतीश कुमार इसके निर्णायक प्रशासकीय सूत्रधार रहे,तेजस्वी यादव जनांदोलन का चेहरा बने,अनुप्रिया पटेल सत्ता में रहकर संघर्ष की प्रतीक बनीं,अखिलेश यादव ने जातीय गणना को पीडीए से जोड़कर ठोस रणनीति बनाई,
और राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रव्यापी बहस का विषय बना दिया।
इन सबकी मिलीजुली भूमिका ने इस मुद्दे को न केवल हवा दी, बल्कि राजनीतिक परिवर्तन का आधार भी बनाया।