फर्रुखाबाद। नगर क्षेत्र में आधुनिक तकनीक से अंतिम संस्कार की सुविधा देने के उद्देश्य से वर्षों पहले उठी विद्युत शवदाहगृह (Electric Crematorium) की मांग अब ठंडी पड़ गई है। न कोई योजना बनी, न कोई निर्माण शुरू हुआ। जबकि अन्य शहरों में ऐसे शवदाहगृह पर्यावरण की दृष्टि से कारगर साबित हो रहे हैं, फर्रुखाबाद में यह अब भी महज एक सपना बना हुआ है।
वर्ष 2015 से 2017 के बीच उस समय के सदर विधायक विजय सिंह ने विधानसभा और नगर पालिका बैठकों में विद्युत शवदाहगृह की स्थापना की जोरदार पैरवी की थी। नेविलर रोड और पंचाल घाट को संभावित स्थल मानकर नगर पालिका ने प्रस्ताव भी तैयार किया था, लेकिन बजट आवंटन न होने के चलते कार्य प्रारंभ नहीं हो सका।
8 साल में न बना ढांचा, न दोबारा उठी मांग वर्ष 2017 से 2025 तक के बीच इस मुद्दे को न तो किसी जनप्रतिनिधि ने दोबारा उठाया और न ही प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम उठाया गया। नगर पालिका परिषद की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोई भी नया प्रस्ताव इस दिशा में गत वर्षों में पारित नहीं हुआ। जबकि हर साल नगर क्षेत्र में औसतन 3,200 से अधिक अंतिम संस्कार होते हैं, जिनमें लकड़ी की अत्यधिक खपत होती है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जरूरी
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, एक पारंपरिक चिता में औसतन 300 से 400 किलोग्राम लकड़ी की आवश्यकता होती है, जिससे 1 शव पर लगभग 400 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है। यदि विद्युत शवदाहगृह कार्यशील होता, तो इससे प्रति वर्ष करीब 1,200 टन CO₂ उत्सर्जन कम किया जा सकता था।
स्थानीय नागरिकों की भी रही मांग
स्थानीय समाजसेवी अनिल वाजपेयी का कहना है, “शहर में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, मगर अंतिम संस्कार की आधुनिक सुविधा अब भी सपना है। बिजली से शवदाह एक पर्यावरण-संवेदनशील उपाय है, जिसे अब प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”
नगर पालिका के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “इस दिशा में कोई ताजा निर्देश नहीं मिला है। न बजट प्रस्तावित हुआ और न ही कोई स्थल चयन। जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति न हो, यह कार्य शुरू नहीं हो सकता।”
आधुनिक शवदाहगृह की जरूरत पर वर्षों पहले बनी सहमति अब प्रशासनिक सुस्ती और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता की भेंट चढ़ चुकी है। फर्रुखाबाद जैसे शहर को पर्यावरण-संवेदनशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने के लिए विद्युत शवदाहगृह की स्थापना अत्यंत आवश्यक है। सवाल यह है कि क्या आने वाले समय में कोई जनप्रतिनिधि या संगठन इस मुद्दे को फिर से गरमाने का साहस करेगा?