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Friday, June 20, 2025

प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और शिक्षा का व्यापार

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प्रशांत कटियार

आज के दौर में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों के साथ हो रही लूट और शोषण की घटनाएँ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। यह न केवल शिक्षा के मूल उद्देश्य को ध्वस्त करता है, बल्कि अभिभावकों के लिए यह आर्थिक संकट भी उत्पन्न कर रहा है। सरकारी नियम और कानून प्राइवेट स्कूलों के आगे कमजोर साबित हो रहे हैं, और निजी स्कूलों का संचालन अब शुद्ध व्यापार बन चुका है, जिससे शिक्षा का मंदिर अब मुनाफे का अड्डा बन गया है।

प्राइवेट स्कूलों की फीस और अतिरिक्त शुल्क

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार, प्राइवेट स्कूलों को हर वर्ष एडमिशन फीस नहीं लेनी चाहिए, लेकिन बावजूद इसके प्राइवेट स्कूलों में यह नियम खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। इसके अलावा, एडमिशन फीस के साथ-साथ स्कूलों में मेंटेनेंस चार्ज, इन्फ्रास्ट्रक्चर चार्ज, डेवेलपमेंट चार्ज जैसी अनगिनत अतिरिक्त फीस वसूली जाती है। इस सबका कोई कानूनी आधार नहीं है, फिर भी इन स्कूलों के संचालक इन शुल्कों को बाध्यता की तरह लागू कर रहे हैं।

स्कूलों द्वारा किताबों का बाजार

एक और प्रमुख मुद्दा प्राइवेट स्कूलों में किताबों की बिक्री से जुड़ा है। अभिभावकों को हर साल किताबें बदलने के लिए मजबूर किया जाता है। यह बदलाव अधिकांशतः केवल चैप्टर की संख्या में होता है, लेकिन पुस्तक के कवर को नया बना कर उसे फिर से बाजार में उतार दिया जाता है। ऐसा करके निजी स्कूल और प्रकाशक दोनों ही मुनाफा कमाते हैं। यह एक व्यवस्थित धोखाधड़ी है, जो हर साल अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ाती है।कभी-कभी तो स्कूलों के अंदर ही किताबों की दुकाने खोली जाती हैं, जहां से अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। और जो माता-पिता इन किताबों को खरीदने से इंकार करते हैं, उन्हें अपने बच्चे का नाम स्कूल से कटवा देने की धमकी दी जाती है। इस दबाव के चलते अभिभावक किताबें खरीदने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

एनसीईआरटी की किताबों की अनदेखी

भारत सरकार ने 2021 में सभी प्राइवेट स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें ही अपनाने का निर्देश दिया था, लेकिन इसका पालन कहीं भी नहीं हो रहा है। अधिकांश प्राइवेट स्कूल अब भी निजी प्रकाशकों की किताबों को ही प्राथमिकता देते हैं, और यह नियमों का उल्लंघन करते हैं। निजी प्रकाशकों के साथ सांठ-गांठ के कारण स्कूलों में इन किताबों की बिक्री हो रही है, जिससे स्कूलों और प्रकाशकों को मोटा मुनाफा हो रहा है। इससे यह साफ संकेत मिलता है कि शिक्षा अब व्यापार का रूप ले चुकी है, और उसका उद्देश्य अब छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता से अधिक लाभ कमाना हो गया है।

अभिभावकों की बढ़ती चिंता

अभिभावकों का कहना है कि उन्हें हर साल बच्चों की किताबें, कॉपी, और अन्य सामग्रियाँ खरीदने में भारी खर्च करना पड़ता है। इससे मध्यम वर्गीय परिवारों पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ता है। बच्चों के लिए अच्छे शिक्षा की चाह रखने वाले अभिभावक केवल इस उम्मीद पर बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलवाते हैं कि उनकी शिक्षा का स्तर उच्च होगा, लेकिन आजकल की स्थिति में यह सिर्फ एक व्यापार बन चुका है, जो केवल बच्चों के शिक्षा से ज्यादा किताबों, फीस, और अन्य अनावश्यक खर्चों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

कानूनी और नीतिगत सुधार की आवश्यकता

प्राइवेट स्कूलों की इस लूट को रोकने के लिए तत्काल नीति और कानूनी सुधार की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को ज्ञान देना हो, न कि मुनाफा कमाना। इसके लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, जिनमें किताबों की बिक्री में पारदर्शिता हो, स्कूलों द्वारा अनावश्यक फीस और चार्जेज की वसूली पर रोक हो, और एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए।इसके अलावा, अभिभावकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें और स्कूलों के मनमाने दामों और नियमों के खिलाफ आवाज उठा सकें। सरकार को भी इस मामले में सख्त कदम उठाने होंगे और किसी भी प्राइवेट स्कूल को नियमों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

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